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लिंगराज मन्दिर (Lingraj Temple)

भारत के ओडिशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर जिसका प्राचीनकाल से ही अपना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसी श्रृंख्ला में भुवनेश्वर में स्थित भगवान शिव को समर्पित लिंगराज मन्दिर (Lingraj Temple) या लिंगेश्वर मन्दिर एक मील का पत्थर है, जो प्राचीन होने के साथ ही साथ भुवनेश्वर का एक सबसे विशाल मन्दिर है, जिसकी भव्य वास्तुकला शिव भक्तों को अनायास ही मोहित होने से रोक नहीं पाती हैं। लिंगराज मन्दिर (Lingraj Temple) की यही विशेषता उसे भुवनेश्वर का प्रमुख पर्यटक आकर्षण बनाता हैं। चूंकि मंदिर का शिवलिंग अन्य शिवलिंगो से भिन्न एक वर्गाकार आकृति में है, इसलिए इसे लिंगो के राजा होने का गौरव प्राप्त हुआ। जिसने इस मंदिर को लिंगराज मन्दिर का नाम व सम्मान प्रदान किया।    

लिंगराज मन्दिर (Lingraj Temple)
लिंगराज मन्दिर (Lingraj Temple)

लिंगराज मन्दिर से जुडी पौराणिक दन्तकथा (Mythological Story Related To Lingraj Temple)

लिंगराज मन्दिर का वर्णन अनेक प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित है, जिसमें सर्वाधिक प्रचलित दन्त कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव काशी से अर्दश्य हो गये व माता पार्वती भोलेनाथ को ढूंढ़ते हुए भुवनेश्वर की धरती, जो भोलेनाथ को काशी से भी ज्यादा प्रिय थी। भगवान शिव इसे गुप्त काशी भी कहते थे, से असंतुष्ट देवी ने तथ्यों की सत्यता को जानने की इच्छा से एक पशुपालक स्त्री  का रुप धारण किया और भुवनेश्वर की धरती पर इधर उधर विचरण करने लगी। जब देवी पार्वती विचरण कर रही थी, उसी समय दो असुर कृति और वासा उनके रूप पर मुघ्द हो गए तथा उन्होंने देवी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। जिसे देवी ने मना कर दिया। लगातार देवी द्वारा मना किये जाने पर भी वह असुर नहीं माने और देवी का पीछा करते रहे। तब देवी ने अपनी रक्षा के लिए उन दोनों असुरों का अपने पैरों के नीचे दबा कर उनका अंत कर दिया। तब वहां भोलेनाथ प्रकट हुए और असुरों से युद्ध में थकी और प्यासी देवी पार्वती के लिए एक झील का निर्माण किया तथा देवी पार्वती को सदा के लिए उस स्थल पर निवास करने का वरदान प्रदान किया।   

लिंगराज मन्दिर का इतिहास ( History Of Lingraj Temple) 

प्राचीनकाल से भुवनेश्वर वैष्णव और शैव मत के अनुयायियों के मध्य आकर्षण का केन्द्र रहा है। इतिहासकारों के मतानुसार मन्दिर ६वीं शताब्दी से पूर्व भी किसी अन्य रुप में एक अस्तित्व में था। परन्तु ब्रह्म पुराण में वर्णित है कि मन्दिर ७वीं शताब्दी से जब शैव मत भुवनेश्वर में अपने चरम पर था अस्तित्व में आया। जिसका मूल व वर्तमान स्वरुप ११वीं शताब्दी में हुए जीर्णोद्धार के बाद मिला। जिसे राजा जाजति केशरी द्वारा करवाया गया था। उस समय तक मन्दिर में विष्णु और शिव दोनों की समान रुप से ही पूजा की जाती थी। वैष्णव मत के वर्चस्व में आने के बाद १२वीं शताब्दी में जगन्नाथ मन्दिर के निर्माण हुआ। किन्तु आज भी एक शालिग्राम लिंगराज मन्दिर में स्थापित है। जो उनके सहअस्तित्व को सार्थक करता है। भगवान शिव को कीर्तिवास, हरिहरा तथा लिंगराज आदि नामो से भी प्रसिद्धि प्राप्त हैं। 

लिंगराज मन्दिर का रचनात्मक सौन्दर्य (Creative Beauty Of Lingraj Temple) 

लिंगराज मंदिर की वास्तु सुंदरता अपने आप में ही अनोखी व मन्त्रमुघ्द करने वाली है। इसीलिए प्रसिद्ध चीनी इतिहासकार और आलोचक जेम्स फर्ग्यूसन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान मन्दिर की सुंदरता को देखते हुए "भारत में विशुद्ध हिन्दू मन्दिर के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है" ऐसा अपने अनुभव में लिखा है। मन्दिर एक ५२०*४६५ फीट के विशाल क्षेत्र में स्थित है। जिसके चारों तरफ ७.५ फीट मोटी दीवार की प्राचीर है जो बाहरी आक्रमण से मन्दिर को सुरक्षा प्रदान करती है। जिसमें अनेक छोटे बड़े मंदिर स्थापित है। 

मन्दिर में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं। मुख्य प्रवेश पूर्व दिशा में स्थित है तथा उत्तर और दक्षिण में प्रवेश के लिए दो अन्य छोटे प्रवेश है। मुख्य द्वार के दोनों तरफ सिंह के आकृतियां है तथा द्वार के ऊपर भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों की आकृतिया बनायीं गयी है। मन्दिर का निर्माण कलिंग वास्तुशैली में किया गया है। जिसमे ४ मुख्य भाग होते है जो एक सरल रेखा में है, इस प्रकार है - 

१. गर्भगृह युक्त संरचना अथवा विमान 
२. सभा हाल अथवा जगमोहन 
३. उत्सव भवन अथवा नट मन्दिर 
४. प्रसाद भवन अथवा भोग-मण्डप 

मन्दिर की दीवारें सुन्दर कलाकृतियों से भरी हुई है। जिसमे स्त्री पुरुष तथा पशुओं की सुन्दर मूर्तियां बनी हुई है। मंदिर की छत आकर में एक पिरामिड के सामान है जिसके शीर्ष भाग पर एक उल्टे घण्टे तथा एक सुन्दर कलश की स्थापना की गयी है। जगमोहन में प्रवेश के लिए दो द्वार उत्तर व दक्षिण दिशा में है। 

मन्दिर का मुख्य गर्भगृह जिसमें एक स्वयंभू ८ इंच ऊँचा तथा ८ फीट व्यास का एक शिवलिंग हैं। जिसके मघ्य में एक सुन्दर श्वेत शालिग्राम उपस्थित है जो इस शिवलिंग को हरिहरा नाम प्रदान करता है। चूंकि पौराणिक मान्यताओं को माना जाये तो  कहा जाता है भगवान शिव, भगवान विष्णु के स्वामी है और भगवान विष्णु बाबा भोलेनाथ के स्वामी। यहाँ भगवान शिव के हृदय में शालिग्राम इसी तथ्य की पुष्टि करता है। इसी लिए यहाँ भगवान लिंगराज को हरि का हरण अर्थार्त हृदय में निवास करने के कारण हरिहरा बोला जाता है। 

मन्दिर में आयताकार सरोवर है जिसे देवीपगहारा तालाब कहा जाता है। यह वही स्थल है जहां देवी ने दोनों असुरो को अपने पैरों के नीचे दबा कर मोक्ष प्रदान किया था। जिस तक पहुंचने के लिए कुछ सीढ़िया उतरने की मेहनत करनी पड़ती है। इस सरोवर के चारों ओर अनेक छोटे बड़े मंदिर है। 

लिंगराज मन्दिर का समय (Timings Of Lingraj Temple)

लिंगराज मन्दिर भक्तों के लिए प्रातः ६:०० बजे से रात्रि ९:०० बजे तक पूरे सप्ताह खुला रहता है।जिसमें भक्तों से दर्शन के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है। परन्तु ओडिशा के अन्य मंदिरों की तरह भगवान हरिहर को अर्पित भोग और प्रसाद को वहां के पुजारियों द्वारा एक बड़े हॉल रुपी कक्ष जिसे भोग मण्डप कहाँ जाता है, में एकत्र किया जाता है। जहां से भक्त भोग को उसका उचित मूल्य देकर प्राप्त कर के वही कक्ष में ग्रहण कर सकते है तथा साथ ही साथ घर ले जा सकते है। घर ले जाने के लिए प्रसाद मिट्टी के पात्र में ही दिया जाता है। जो तरीका अपने आप में बड़ा ही अनूठा है। 

प्रातः से रात्रि तक लिंगराज के छवि रुप को कई बार जल स्नान कराया जाता है। जिसे महास्नान कहा जाता है। इसके बाद भगवान का अभिषेक किया जाता है जिसमे चन्दन, पुष्प, वस्त्र, विल्व पत्र और तुलसी दल इत्यादि शामिल होते है। 

मन्दिर का मुख्य गर्भगृह जिसका द्वार जो चन्दन की लकड़ी से बने है। भगवान को समय समय पर भोग अर्पण के लिए बंद किये जाते है। भोग अर्पण के बाद भगवान को महा स्नान कराया जाता है। रात्रि में देवता को भोजन अर्पण के बाद महाश्रृंगार व भव्य आरती की जाती है इसके बाद मन्दिर को भगवान विश्राम के लिए बंद कर दिया जाता है।

लिंगराज मन्दिर का विशेष दिन (Special Day's In Lingraj Temple) 

लिंगराज मन्दिर में भगवान शिव का प्रिय दिवस सोमवार, त्रयोदशी इत्यादि पर दर्शन करने का एक विशेष महत्व है इसके अतिरिक्त मन्दिर में महाशिवरात्रि, अशोकाष्टमी तथा चंदनयात्रा जैसे पर्वों के विशेष दिवस पर मंदिर की भव्यता अवर्णनीय होती है। 

महाशिवरात्रि 

प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास में पड़ने वाली महाशिवरात्रि लिंगराज मन्दिर में मनाया जाने वाला सबसे भव्य पर्व है। जिसमे भक्त भगवान लिंगराज का उपवास रखते है तथा दूर दूर से दर्शन के लिए आते है। मुख्य उत्सव रात्रि में प्रारम्भ होता है। जिसमे भक्त पूरी रात बड़े ही मनोभाव से भगवान लिंगराज की प्रार्थना करते है। उपवास का उद्यापन महादीपक की ज्योति के दर्शन के बाद किया जाता है।

अशोकाष्टमी 

अशोकाष्टमी लिंगराज मंदिर में मनाये जाने वाले पर्वों में दूसरा सबसे बड़ा पर्व है। भगवान लिंगराज के रथ उत्सव को चैत्र मास की अष्ठमी तिथि पर मनाया जाता है, जिसे अशोकाष्टमी कहते है। भगवान लिंगराज को रथ में आरुण कर रेमेश्वर देउला मंदिर में ले जाया जाता है। जिसे मौसी माँ मन्दिर भी कहा जाता है। जहां उनका व उनकी बहन रुक्मणि का सुसज्जित रथ भक्तों के द्वारा बड़ी ही श्रद्वा से खींचा जाता है। यहाँ ४ दिन के निवास के बाद भगवान लिंगराज को वापस उनके मंदिर लाया जाता है परन्तु मन्दिर में आने के पूर्व उन्हें बिंदु सरोवर में स्नान कराया जाता है। 

चन्दनयात्रा 

चन्दनयात्रा मन्दिर में मनाया जाने वाला एक अद्भुत उत्सव है। जिसे चन्दन समारोह के नाम से भी जाना जाता है। जिसे प्रति वर्ष अक्षय तृतीया के दिन बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। २२ दिन तक चलने वाले इस उत्सव में लिंगराज भगवान को बिन्दुसार तालाब के मध्य स्थित मन्दिर में ले जाया जाता है। यह वही सरोवर है जिसका निर्माण भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से देवी पार्वती को प्यास लगने पर बनाया था। इसमें मान्यतानुसार सभी देव नदियों, तीर्थों और झरनों के जल के मिश्रण से बना होने के कारण इसमें कभी में जलस्तर कम नहीं होता। यहाँ भगवान को स्नान करने के बाद उन्हें तथा उनके सेवकों को गर्मी से बचाने के लिए उन पर चन्दन का लेप लगाया जाता है।   

लिंगराज मन्दिर में जाने से पहले यात्री युक्तियाँ (Travelers Tips Before Visiting Lingraj Temple)

  • लिंगराज मन्दिर में कठोर परम्पराओं का पालन करते हुए हिन्दुओं के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है।  परन्तु यदि वे दर्शन करना चाहते है तो उसकी भी व्यवस्था एक मंच के द्वारा की गयी है।  जहां से भगवान लिंगराज के दर्शन सुलभ होते है। 
  • लिंगराज मन्दिर में पारम्परिक भारतीय वस्त्र पहन कर ही दर्शन की आज्ञा है।
  • मन्दिर परिसर में मोबाइल, कैमरे, चमड़े की बनी किसी भी प्रकार की वस्तु तथा पालीथीन का प्रयोग व अपने पास रखना वर्जित है। अतः यात्रा के दौरान इस नियम का पालन करे। 
  • मन्दिर प्रशासन के द्वारा बिना स्नान किये, वह स्त्री जो मासिक धर्म से है अथवा वह परिवार जीनके घर में पिछले कुछ दिनों में मृत्यु हुई है का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबंधित है। अतः इन दिनों में भी यात्रा करने से बचें। 
  • पूजा सेवा देने की बात करने वाले किसी भी अजनबी से बचने की सलाह दी जाती है। मन्दिर में किसी भी प्रकार की पूजा करवाने के लिए मन्दिर प्रशासन से संपर्क करें। 
  • मन्दिर में सोमवार व शनिवार को अन्य दिनों से कुछ ज्यादा भीड़ होती है। अतः यदि इन दिनों में दर्शन करने जा रहे है तो कुछ अतिरिक्त समय ले कर जाएं।  

लिंगराज मन्दिर से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting Facts Related To Lingraj Temple) 

  • लिंगराज मन्दिर के अधिपति भगवान लिंगराज जो त्रिभुवन के स्वामी है जिन्हें त्रिभुवनेश्वर कहा जाता है, के नाम पर ओडिशा की राजधानी का नाम भुवनेश्वर पड़ा। 
  • लिंगराज मन्दिर वैष्णव व शैव दोनों मतों के एक साथ आने का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • किसी भी शिव मन्दिर में आमतौर पर भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित किये जाते है परन्तु यहाँ बिल्व पत्र के साथ ही साथ तुलसी दल भी अर्पित किया जाता है। 
  • माना जाता है बिन्दुसार सरोवर में स्नान करने से समस्त शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। 
  • बिन्दुसार सरोवर में स्न्नान के बाद, भुवेनश्वर के क्षेत्रपति अनन्त वासुदेव के दर्शन, फिर गणेश, गोपालनी देवी तथा  नन्दी की पूजा के बाद ही लिंगराज के दर्शन प्राप्त किये जा सकते है। 
  • मन्दिर के दायी तरफ एक छोटा सा कुंआ है जिसे मरीचि कुंड कहा जाता है। मान्यता है इस कुंड के जल से स्नान करने से से महिलाओं की सन्तान सम्बन्धी रोगों से मुक्ति मिल जाती है। 
  • मन्दिर परिसर में छोटे बड़े लगभग १५० मंदिर है। 

लिंगराज मन्दिर में होना (How To Reach Lingraj Temple)

लिंगराज मन्दिर भुवनेश्वर का एक प्रसिद्ध देव स्थल होने के कारण देश के कोने कोने से हजारों की संख्या में भक्त भगवान लिंगराज की कृपा पाने के लिए आते है। परन्तु भुवनेश्वर आने का सबसे सही समय नवंबर से मार्च का है जब मौसम सुहाना तथा सुखद होता है। अतः लिंगराज मन्दिर प्रसिद्ध होने के कारण देश के किसी भी कोने से यहाँ पहुंचना भी बड़ा ही आसान है। 

वायु मार्ग द्वारा 

बिजूपटनायक अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भुवनेश्वर का मुख्य हवाई अड्डा है जहां से देश के प्रमुख हवाई अड्डों के लिए अनेक घेरलू उड़ाने उपलब्ध है। बिजूपटनायक अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से लिंगराज मन्दिर की दूरी मात्र ३ किमी है। जिसे बाहर निकल कर मिलने वाली निजी टैक्सी से आसानी से पूरा किया जा सकता है। 

रेल मार्ग द्वारा 

देश के सभी भागों से एक व्यवस्थित रेल तंत्र से जुड़ा हुआ भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन लिंगराज मन्दिर पहुंचने का सबसे सुगम साधन है। रेलवे स्टेशन से लिंगराज मन्दिर की दूरी मात्र ५ किमी है। जिसे स्थानीय बस, किराये पर उब्लब्ध ऑटो, टैक्सी तथा निजी टैक्सी से भी तय कर के भक्त मन्दिर में भगवान लिंगराज के दर्शन प्राप्त कर सकते है। 

सड़क मार्ग द्वारा 

राष्ट्रीय राजमार्ग ५ (NH-5) के द्वारा भुवनेश्वर देश के सभी बड़े बस स्थानकों से जुड़ा होने के कारण सड़क मार्ग से भगवान लिंगराज के दर्शन करना अति सुगम है। शहर में अनेक निजी तथा सरकारी बसें बड़ी ही सुगमता से उपलब्ध है। जो इस तीर्थयात्रा और भी सुगम बनाने का कार्य करती है।   

गूगल मैप में लिंगराज मन्दिर (Lingraj Temple In Google Maps) 



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