Header Ads Widget

Responsive Advertisement

कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)

महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में सांगली के निकट खिद्रपुर गांव जो पञ्चगंगा और कृष्णा नदी के सुन्दर तीर पर स्थित है में प्राचीन और कलात्मक हिन्दू मंदिर, जिसे कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple) के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त स्थित है। जिसके अलंकरण भगवान शिव व भगवान विष्णु है। मंदिर की सबसे प्रमुख विशेषता वहां स्थित दो शिवलिंग है। पहला शिवलिंग क्रोधित भगवान शिव ( क्रोध अर्थात कोप ) के कारण कोपेश्वर तथा दूसरा शिवलिंग शान्त और धीर भगवान विष्णु के धोपेश्वर स्वरुप में स्थित होना है। इस प्रकार का पूरे भारत में यह एक मात्र मंदिर है जिसमें पालनकर्त्ता व संहारकर्त्ता एक ही रुप में स्थित हैं।  
 
कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)
कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)
Image Source Google Images   
https://hinducosmos.tumblr.com

कोपेश्वर मंदिर से जुडी पौराणिक कथा (Mythology Related To Kopeshwar Temple)

कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)
कोपेश्वर और गोपेश्वर शिवलिंग 
Image Source - Google Image  
धार्मिक पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें उन्होंने समस्त देवगणों, ॠषि मुनियों और देव गन्धर्वों सभी को आमन्त्रित किया। परन्तु अपने जमाता त्रिपुण्डधारी श्मशानवासी महादेव को इसमें आमंत्रित नहीं किया। जब इस यज्ञ के आयोजन की सूचना देवी सती को हुई। तब उन्होंने भगवान शिव से भी उस यज्ञ में चलने की विनती की परन्तु शिव जी ने बिना निमन्त्रण न जाने को कहां। जिस पर सती ने पिता के घर जाने की जिद करनी प्रारम्भ कर दी। तब शिव जी ने उन्हें पुनः समझाने का प्रयास किया, परन्तु देवी सती नहीं मानी। तब शिव जी ने उन्हें नन्दी व अन्य गणों के साथ उन्हें अपने पिता के यहाँ जाने की आज्ञा दे दी। जब सती अपने पिता के घर पहुंची तो यज्ञस्थल पर ही उनके पिता ने उनका व उनके पति का अपमान सबके सामने करने लगे। जिसे सहन न कर पाने के कारण उन्होंने यज्ञ की अग्नि में स्वयं का आत्मदाह कर लिया। जब भगवान शिव को इस घटना की जानकारी हुई तो उन्होंने क्रोध में प्रजापति दक्ष का शीश उनके धड़ से अलग कर दिया। तब क्रोधित भगवान शिव को भगवान विष्णु उस यज्ञस्थल से लेकर कृष्णा नदी के तट पर आ गये। जहां उन्होंने व देवताओं ने क्रोधित भगवान शिव को शान्त करने का प्रयास किया। तब भगवान शिव ने कृष्णा नदी के इस सुन्दर प्रदेश में शिवलिंग रुप में निवास करना पसंद किया। जहां उन्हें एक असमान्य सा नाम कोपेश्वर प्राप्त हुआ। जिसका शाब्दिक अर्थ हैं - क्रोधित देवता। भगवान शिव से इसी रुप के कारण इस मंदिर का नाम कोपेश्वर मंदिर पड़ा।   

कोपेश्वर मंदिर की रचनात्मक सौंदर्य (Creative Beauty Of Kopeshwar Temple)

कोपेश्वर मंदिर का निर्माण रहस्यात्मक है, कुछ इतिहासकार इसे बादामी चालक्युओं द्वारा ७वीं ईस्वी में निर्मित बताते है, तो कुछ कल्याणी चालक्युओं द्वारा ९वीं ईस्वी में निर्मित बताते है। परन्तु स्रोतों की जाँच के आधार पर इसे १२वीं में शिलाहर शासकों द्वारा निर्मित माना जाता है। मंदिर में उपस्थित १२ शिलालेख, जिसमें ११ तो प्राचीन कन्नड़ लिपि में है तथा एक शिलालेख देवनागरी लिपि में है। परन्तु उनमे भी किसी भी प्रकार की निर्माण तिथि व किसने मंदिर के निर्माण में अपना योगदान किया, का वर्णन नहीं है। परन्तु एक शिलालेख ऐसा भी है जो मंदिर के १२०४ में देवगिरि के यादव शासकों के अधीन किये गए जीर्णोद्धार को वर्णित करता है। इससे सिद्ध होता है मंदिर का अस्तिव १२वीं के पूर्व का है। 

कोपेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार
कोपेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार

कोपेश्वर मंदिर की संरचना ४ भागों में बँटी हुई है -
१. स्वर्ग मण्डप  
२. सभा मण्डप
३. अंतराल कक्ष  
४. गर्भगृह 

बाहर से प्रवेश द्वार को देख किसी अविस्मरणीय दुनिया में प्रवेश की कल्पना कर पाना भी असंभव है। परन्तु पत्थर की कठोर बेसाल्ट चट्टाने जो सह्याद्रि पर्वत माला में मिलती है को उस समय में इतनी दूर यहाँ तक लाना एक अद्भुत यातायात तंत्र के होने का जीवंत प्रमाण प्रस्तुत करता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पूर्व, उत्तर और दक्षिण में प्रवेश द्वार है। प्रवेश द्वार से भीतर प्रवेश करते ही ऐसा लगता है, जैसे किसी जन्नत में प्रवेश किया हो।  

कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)
स्वर्गमण्डप

प्रवेश करते ही पहली संरचना, स्वर्ग मण्डप एक गोलाकार संरचना है। जो ४८ नक्काशीदार गोल ऊँचे स्तम्भों पर टिकी हुई है। स्वर्गमण्डप को बाहर से देखने पर लगता है। जैसे कोई उल्टा कमल का पुष्प हो। स्वर्ग मण्डप में प्रवेश के लिए चार प्रवेश द्वार है। स्वर्ग मण्डप के गोलाकार घेरे की संरचना स्तम्भों की तीन पंक्तियों पर स्थित है। जिसमें पहले आंतरिक घेरे में १२ स्तम्भ, दूसरे धेरे में १६ स्तम्भ तथा तीसरे घेरे में १२ स्तम्भ जो पैराफीट शिला पर स्थित है। इसके अतिरिक्त दो-दो स्तम्भों का सेट जो चारों द्वारों पर स्थित है। इन ४८ स्तम्भों पर अलग अलग ऊंचाई पर ऊपर से नीचे अलग अलग आकार गोल, वर्गाकार और षटकोण में सुन्दर नक्काशी की गयी है। छत का मध्य भाग जो की १३ फीट व्यास का है, आकाश की तरफ खुला हुआ है। जहां से सीधा आकाश (स्वर्ग) का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। इसलिए इसे स्वर्ग मण्डप कहा जाना अनुचित नहीं है। छत के नीचे काले पत्थर की पट्टी है जिसे रंग शिला कहा जाता है। स्वर्ग मण्डप की परिधि में भगवान गणेश, यमराज, कार्तिकेय, कुबेर , इन्द्र आदि देवताओं की सुन्दर नक्काशीदार मुर्तिया, जिसने इस मंदिर की सुंदरता को एक अद्भुत रुप प्रदान करती है। 

कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)
सभा मण्डप मुख्य प्रवेश द्वार

सभा मण्डप जिसमें प्रवेश के लिए तीन मुख्य द्वार है। पहला मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में स्वर्ग मण्डप से तथा अन्य दो उत्तर तथा दक्षिण दिशा में स्थित है। द्वार के शीर्ष पर देवी सरस्वती तथा दोनों ऊपरी किनारों पर पूर्ण कलश की नक्काशी की गयी है। इसके अतिरिक्त द्वार के दोनों तरफ ५ द्वारपाल की पंक्ति जो बड़ी ही सुन्दरता से सुशोभित है। इनकी गदा टूट जाने पर भी उनकी सुंदरता में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आयी हैं। सभा मण्डप में भी, स्वर्ग मण्डप जैसी डिजाइन का अनुसरण किया गया है। ६० स्तम्भों को ३ परतों में अलंकृत किया गया है। सभा मण्डप का मध्य भाग वर्गाकार आकृति का है। साथ ही साथ इस कक्ष की चारो कोनों के मुख्य स्तम्भ अन्य स्तम्भों से आकर में कुछ बड़े है। प्रत्येक स्तम्भ नीचे से चौकोर आकृति के है तथा उनमे सुन्दर नक्काशीदार मूर्ति जिन्हें कीर्तिमुख कहाँ जाता है से सुशोभित है। स्तम्भों पर सुन्दर नक्काशीदार छवियों के माध्यम से प्राचीन कथाओं को भी दर्शाया गया है। 

कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)
कीर्तिमुख

सभा मण्डप में भी स्वर्ग मण्डप की ही भांति एक सुन्दर रंगशिला है। तथा कोने में सप्त मातृकाओं तथा भैरव की सुन्दर अलंकृत छवियाँ हैं। 

सभा मण्डप तथा गर्भगृह के मध्य के भाग को अंतराल कक्ष कहा जाता है। जहां लोग गृभगृह में प्रवेश के पूर्व एकत्र होते है। 

मन्दिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए नक्काशीदार चन्द्रशिला जिस पर  मगर व शंख की नक्काशी है को पार करना पड़ता है। द्वार के शीर्ष पर देवी आदिलक्ष्मी तथा चारों ओर पूर्ण कुम्भ, मयूर, मगर तथा जीवन को चित्रित करती नक्काशी है। यह एक दुर्भाग्य है कि उनमे से अधिकतर अब टूट चुकी है। गर्भगृह में दो शिवलिंग स्थापित है। जिनमें से एक भगवान चंद्रमौली के क्रोधित स्वरुप - कोपेश्वर तथा दूसरा भगवान विष्णु के शान्तिकर्त्ता  घोपेश्वर रूप को प्रदर्शित करता है। जो की पूरे भारत में एक ही मंदिर में देखने को मिलता है। 


कोपेश्वर एवं गोपेश्वर शिवलिंग
कोपेश्वर एवं गोपेश्वर शिवलिंग   

कोपेश्वर मंदिर (Kopeshwar Temple)
मंदिर का बाह्य भाग भी आंतरिक की भांति बड़ा ही अनोखा है। ९२ हाथियों वाला एक पैनल जिसे देख कर एहसास होता है कि मंदिर इन हाथियों द्वारा कही ले जाया जा रहा है। इस हाथियों में से प्रत्येक को एक अलग ही तरह से तराशा गया है तथा प्रत्येक पर एक अलग ही देवता सवार है। इस पैनल का ही अनुकरण दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में किया गया है। इसके अतिरिक्त सभा मण्डप की बाह्य दीवारें ब्रह्मा, विष्णु, गणपति, यदुवंशी भगवान कृष्ण, शिव, देवियों, भैरव, बामन , चन्द्र-सूर्य, महिषासुर मर्दिनी, रामायण तथा महाभारत के अतुलनीय छवियों से सुसज्जीत है। 

कोपेश्वर मंदिर का समय व मनाये जाने वाले पर्व (Timing & Festivals Of Kopeshwar Temple)

मंदिर के द्वार भक्तों के प्रिय देवता भगवान कोपेश्वर और घोपेश्वर के दर्शन हेतु प्रातः ७:००  बजे से रात्रि ८ बजे तक खुले रहते है। मंदिर में सोमवार, प्रत्येक एकादशी, त्रयोदशी व द्वादशी भगवान के प्रिय दिवस बड़ी ही धूमधाम से मनाये जाते है। 

वार्षिक पर्व के रूप में श्रावण मास व महाशिवरात्रि का एक अलग ही दर्शनीय आनन्द है। जिसमें जैसा की दही और चावल की विशेषता है की यह दोनों ही शीतल होते है, अतः भगवान कोपेश्वर का अभिषेक भी पुजारियों द्वारा दोनों के मिश्रण से ही किया जाता है। इस प्रकार का अभिषेक भी मंदिर की ही तरह अनोखा है। यह दही-भात का अभिषेक महाशिवरात्रि के दिन से प्रारम्भ होकर आषाढ़ शुक्ल पंचमी तक  प्रतिदिन पुजारियों के द्वारा किया जाता है। इसमें दही-भात से शिवलिंग पर भगवान शिव की आकृति, एक नन्दी और प्रथम पूज्य भगवान गणेश का निर्माण किया जाता है, जिसमें ४ घण्टे का समय लगता है। इस अभिषेक का दर्शन करने के लिए मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। 

कोपेश्वर मंदिर को विशेष बनाने वाले क्षण (Moments That Makes Kopeshwar Temple Special)

कोपेश्वर मंदिर का एक खगोलीय महत्व है जिसे नजरअंदाज करना असंभव है, स्वर्ग मण्डप जिसकी छत आकाश की ओर खुली हुई है का निर्माण कुछ इस प्रकार किया गया है कि त्रिपुरी पूर्णिमा की ठीक मध्य रात्रि को चन्द्रमा ठीक मण्डप के केंद्र में आ जाता है। इतने वर्ष पूर्व किये गए इस निर्माण में उस काल के ज्योतिष तथा वास्तुकला की उत्कृष्टता का ज्ञान मिलता है की आज भी ठीक त्रिपुरी पूर्णिमा की मध्य रात्रि जो पूरे वर्ष में सिर्फ एक बार ही आती है को चन्द्रमा एक बिंदु पर कैसे निर्धारित होगा। इसका सटीक ज्ञान उस काल में लोगो द्वारा कैसे किया गया। 

कोपेश्वर मंदिर में जाने से पहले यात्री युक्तियाँ (Travelers Tips Before Visiting Kopeshwar Temple)

  • खिद्रपुर चूँकि एक गर्म स्थल है अतः मंदिर में जाने के सबसे अनुकूल समय सर्दियों का है। 
  • अपने साथ पानी की उचित मात्रा रखे। 
  • मंदिर में भारतीय वेशभूषा को धारण कर ही दर्शन प्राप्त करें तथा मंदिर की मर्यादा का ध्यान रखते हुए मंदिर के अंदर निषेद्ध स्थलों पर फोटोग्राफी न करें। 
  • मंदिर एक खुला मंदिर है अतः समुचित समय के साथ मंदिर की सुन्दर नक्काशी का आनंद ले। 

कोपेश्वर मंदिर में होना (How To Reach Kopeshwar Temple)

कोपेश्वर मंदिर खिद्रपुर में स्थित है जो महाराष्ट्र और कर्नाटक का सीमाक्षेत्र है अतः खिद्रपुर पहुंचने के लिए हवाई  मार्ग के विकल्प में कर्नाटक का बीजापुर हवाई अड्डा सबसे निकटतम हवाई अड्डा है जहां से खिद्रपुर लगभग ३५ किमी दूर है। मंदिर के लिए हवाई अड्डे से निजी टैक्सियां आसानी से उपलब्ध है। यदि आप रेल मार्ग का चुनाव करते है तो कोल्हापुर सबसे निकटवर्ती रेलवे स्टेशन है। जहां से मंदिर की दूरी लगभग ६० किमी है। सड़क मार्ग से जाने के लिए कोल्हापुर से नरसिंघवाड़ी बस अड्डा जहां से मंदिर लगभग २५ किमी तथा कर्नाटक के बेलगाम से ७५ किमी हैं।  कोल्हापुर और बेलगाम बस अड्डों से प्रतिदिन निर्धारित समय पर खिद्रपुर के लिए समुचित बस व्यवस्था उपलब्ध है। 

कोपेश्वर मंदिर गूगल मैप्स में (Kopeshwer Temple in Google Maps)


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ