विभिन्न संस्कृतियों और परम्पराओं से परिपूर्ण भारत का प्रत्येक राज्य, जिसमें उपस्थित अनेकों छोटे-बड़े देवस्थल, तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल उस क्षेत्र की विशेषता और सुंदरता को दर्शाते है। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित हारे का सहारा, खाटू श्याम का विश्व विख्यात मन्दिर खाटू श्याम मंदिर (Khatu Shyam Temple) एक ऐसा ही देवस्थल जहां वर्ष भर धरती के कोने कोने से आने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है। खाटू श्याम मंदिर (Khatu Shyam Temple) की सबसे प्रमुख विशेषता उसकी मान्यता है, जिसमे कहा जाता है कि बाबा खाटू श्याम के आशीर्वाद से उनके दर्शन करने वाले के सभी दुःख दूर हो जाते है।
कौन हैं खाटू श्याम जी? (Who Is Khatu Shyam Ji?)
द्वापर युग के आरम्भ के पूर्व सृष्टि मूर नाम के दैत्य के अत्याचारों से पीड़ित थी। तब भू देवी, गौ रुप को धारण कर देवराज इन्द्र की सभा में उपस्थित हुई तथा देवगणों को सम्बोधित करते हुए अपनी व्यथा बताने लगी, वह बोली - "हे सृष्टि संचालकों, हरि कृपा से मैं सभी प्रकारों के संताप को सहन करने में सक्षम हूँ। विशाल पर्वतों, नदियों, पशु-पक्षियों और समस्त मानव जाति के भार को सहर्ष सहन करती हुई मैं त्रिदेवों द्वारा निर्धारित की गयी अपनी समस्त दैनिक क्रियाओं को भली भाँति संचालित करती हूँ, पर दैत्य मूर के अत्याचार अब असहनीय होते जा रहे है। आप लोग उस दुराचारी से मेरी रक्षा करिये, अब मैं आप की शरण में हूँ।"
भू देवी की करुण पुकार को सुनकर देवसभा में एकदम सन्नाटा सा छा गया। इस गहन तन्द्रा को तोड़ते हुए चतुर्मुखी ब्रह्मा जी बोले की इस समस्या के निवारण के लिए हमें भगवान श्री नारायण की शरण में चलना चाहिए। तब देवसभा में उपस्थित यक्षराज सुर्यवर्चा देवगणों को सम्बोधित करते हुए बोला - "हे देवगण ! मूर दैत्य इतना शक्तिशाली नहीं है कि उसका संहार सिर्फ विष्णु जी ही कर सकें। छोटी-छोटी बात के लिए उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिये। यदि आज्ञा हो तो मैं ही उसका वध कर देता हूँ।" इतना सुनना था कि ब्रह्मा जी क्रोध में भरकर बोले - " हे नादान! अहंकारवश तूने इस देवसभा को ही चुनौती दे दी है। जिसका दण्ड तुझे अवश्य ही मिलेगा। अपने को श्री विष्णु जी से श्रेष्ठ समझने वाले अज्ञानी! तुम इसी समय देवसभा से विस्थापित हो धरती पर जा गिरोगे और तुम्हारा जन्म एक राक्षस योनि में होगा। जब द्वापर के अंतिम चरण में एक भीषण धर्मयुद्ध होगा तब तुम्हारा शिरोच्छेदन स्वयं श्री नारायण के द्वारा ही होगा।"
ब्रह्मा जी के अभिशाप के फलस्वरूप यक्षराज सुर्यवर्चा का झूठा गर्व चूर चूर हो गया तथा वह ब्रह्मा जी के श्री चरणों में गिर गया तथा विनम्र भाव से बोला - " त्राहिमाम ! त्राहिमाम ! रक्षा करिये प्रभु !, भूलवश निकले इन शब्दों के लिए मैं क्षमा मांगता हूँ, मुझ शरणागत पर दया करें।" उसकी इस निर्मल विनती से प्रसन्न ब्रह्मा जी बोले -"मैं अभिशाप तो वापस नहीं ले सकता परन्तु उसमें संशोधन करता हूँ। जब तुम्हारा शीश भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से तुम्हारा शिरोच्छेदन करेंगे, तब देवियों द्वारा तुम्हारे शीश का अभिसिंचन होगा तथा कलयुग में तुम्हें भगवान कृष्ण के द्वारा देवताओं के सामान पूजा जाने का वरदान प्राप्त होगा। "
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इस पर ब्राह्मण रुपी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा अगर तुम इस पीपल के वृक्ष के सभी सूखे पत्तों को छेद देगा तो उन्हें उस पर विश्वास हो जायेगा। यह कहते हुए उन्होंने एक पत्ता अपने चरण के नीचे छिपा लिया। जैसे ही बर्बरीक ने अमोघ शर का संधान किया तो सभी सूखे पत्तों को छेदता हुआ तीर ब्राह्मण के पैर पर आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने उनसे कहा कि आप अपना चरण हटा ले अन्यथा बाण उनके पैर में भी छेद कर देगा। देवी आदिशक्ति का मान रखने हेतु कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया तथा बर्बरीक से प्रश्न किया कि वह किसके पक्ष से युद्ध करेगा। बर्बरीक ने उत्तर देते हुए कहा मैने अपनी माँ को वचन दिया है कि मैं इस युद्ध में निर्बल पक्ष की तरफ से युद्ध करूँगा। अतः कृष्ण रुपी ब्राह्मण को यह समझते देर न लगी की यदि बर्बरीक को रोका न गया तो पांडवों की पराजय निश्चित है। अतः उन्होंने बर्बरीक से दान की याचना की। बर्बरीक ने वचन देते हुए कहा कि वह मनवांछित वस्तु मांग सकते है। ब्राह्मण रुपी कृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश उन्हें प्रदान करने की भिक्षा मांगी। जिसे सहर्ष ही बर्बरीक ने स्वीकार किया तथा अपना शीश उन ब्राह्मण रूपी कृष्ण को प्रदान कर दिया परन्तु उसने उन ब्राह्मण देव को अपने वास्तविक रुप के दर्शन देने को कहा। तब कृष्ण अपने वास्तविक स्वरुप में प्रकट हुए तथा उसे वरदान मांगने को कहा। जिस पर बर्बरीक ने उनसे विनती करते हुए कहा की वह यह युद्ध अंत तक देखना चाहते है। इस पर कृष्ण ने उनका शीश एक ऊँची पहाड़ी पर अलंकृत करते हुए उन्हें ब्रह्मा जी द्वारा निर्धारित श्राप कि की उनका शीश देवताओं के सामान पूजनीय होने का वरदान देते हुए कहा कि कलयुग में तुम मेरे नाम खाटू श्याम(Khatu Shyam) के नाम से जाने जाओगे। साथ ही साथ चूंकि तुम निर्बल पक्ष की तरफ से युद्ध करना चाहते थे इस लिए तुम हारों का सहारा और मुझे अपना शीश दान करने का कारण शीश के दानी आदि नाम से भी प्रसिद्ध होंगे।
खाटू श्याम मन्दिर के निर्माण की कथा (The Story of the Construction of Khatu Shyam Temple)
महाभारत के युद्ध के समाप्त होने पर पाण्डु पुत्र भीम के पौत्र बर्बरीक को भगवान कृष्ण तथा पाण्डवों के द्वारा आशीर्वाद प्रदान करते हुए उनके शीश को रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया गया। कलिकाल में घटि, एक अनोखी घटना, एक गाय जो दूध देने में असमर्थ थी, एक बार चरते चरते एक श्मशान के निकट चली गयी जहां एक स्थान पर उसके थनों से अचानक दूध की धार निकलने लगी। आश्चर्यचकित भोले भाले ग्रामीणों ने जब यह देखा तो उन्होंने उस स्थल पर जिज्ञासावश खुदाई करना प्रारम्भ कर दिया। खुदाई में उन्हें एक बिना शरीर के शीश की प्राप्ति हुई। जिसे एक ब्राह्मण को गांव वालों ने दे दिया। वह स्थल जहां शीश मिला ततकालीन खाटू गाँव ही था। इधर शीश मिला उधर रात्रि में खाटू के तत्कालीन राजा रुपसिंह चौहान को स्वप्न में एक मन्दिर का निर्माण कराने तथा उसमे गाँव में मिले शीश को स्थापित करने का देव आदेश प्राप्त हुआ। देव आदेश के अनुसार ही मंदिर का निर्माण १०२७ ई. में राजा रुपसिंह चौहान और उनकी सहधर्मी नर्मदा कंवर के द्वारा कराया गया तथा उसमे शीश की स्थापना की गयी तथा इस प्रकार खाटू श्याम के मूल मन्दिर की स्थापना हुई। मन्दिर का जीर्णोद्धार देव आदेश पर मारवाड़ के शासक के प्रमुख दीवान अभय सिंह ने १७२० ई. में करवाया गया। वर्तमान मंदिर वास्तुकला में बेजोड़ है। जिसके गर्भगृह की शोभा खाटूश्याम की सुन्दर मूर्ति है।
खाटू श्याम मन्दिर की वास्तुकला (Architecture of Khatu Shyam Temple)
सफेद संगमरमर का बना मन्दिर वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। जो आने वाले भक्तों को बरबस ही अपनी ओर खींचने ने नहीं रोक पाता है। पौराणिक कथाओं से चित्रित दीवारों से घिरा प्रार्थना कक्ष जिसे जगमोहन कहा जाता है, में प्रवेश करते ही एक अलौकिक दुनिया में होने का अनुभव कराता है। प्रवेश और निकास द्वार संगमरमर के बने हुए है जिनमे सुंदर पुष्पों को उकेरा गया है। चांदी की परतों से आच्छादित गर्भगृह के द्वार मंदिर की शोभा को दुगना करने में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं करते है।
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खाटू श्याम मन्दिर का समय (Timings of Khatu Shyam Temple)
ग्रीष्म ऋृतु में मंदिर का समय (Timings In Summer)
- प्रातः ५:०० बजे से अपराह्न १२:३० बजे तक
- संध्या ४:०० बजे से रात्रि १०:०० बजे तक
शरद ऋृतु में मंदिर का समय (Timings In Winter)
- प्रातः ५:३० बजे से अपराह्न ०१:०० बजे तक
- संध्या ५:०० बजे से रात्रि ०९:०० बजे तक
खाटू श्याम मन्दिर में की जाने वाली पूजा की विधि व सामग्री (Method and Material of Worship Done In Khatu Shyam Temple)
पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री
- अक्षत
- रोली
- मीठा पान
- चूरमे का लड्डू
- देशी घी के लड्डू
- खीर
- एक मुठी साबुत अक्षत
आरती का समय
आरती सेवा मंगला आरती शृंगार आरती भोग आरती संध्या आरती विश्राम आरती | ग्रीष्मकालीन समय प्रातः ४:३० बजे प्रातः ७:०० बजे अपराह्न १२:३० बजे सायं ७:३० बजे रात्रि १०:०० बजे | शीतकालीन समय प्रातः ५:३० बजे प्रातः ८:०० बजे अपराह्न १२:३० बजे सायं ६:३० बजे रात्रि ९:०० बजे |
खाटू श्याम मन्दिर का विशेष पूजा दिन (Special Pooja Day of Khatu Shyam Temple)
खाटू श्याम मन्दिर में दर्शन के पूर्व ध्यान रखने योग्य बातें (Things To Keep In Mind Before Visiting Khatu Shyam Temple)
- यदि आप बाबा के दर्शन करना चाहते है तो भीड़ से बचने के लिए टिकट अवश्य ले अन्यथा बाबा के दर्शन आपको दूर से करना पड़ेगा।
- १८ वर्ष से कम आयु का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा।
- मंदिर में किसी भी प्रकार की वस्तु को लेकर प्रवेश नहीं कर सकते अतः आप को अपनी कीमती चीज अपने धर्मशाला या होटल के कमरे में ही सेफ रख कर जाना चाहिए।
- पूजा के पहले श्यामकुण्ड में स्न्नान करें तथा उसके बाद लाइन में लग कर बाबा खाटू श्याम के दर्शन करे।
- मंदिर में भीड़ होने की अवस्था में किसी भी प्रकार के नियम न तोड़े तथा मंदिर प्रशासन की व्यवस्थाओं में सहयोग करते हुए मंदिर की गरिमा बनाये रखे।
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