शक्ति पंथ के भक्तों के लिए कामाख्या मन्दिर के बाद अगर गुवाहाटी में कोई स्थल है तो वह निश्चित रूप से कोई और नहीं सिर्फ और सिर्फ देवी शक्ति का सदियों प्राचीन देवस्थल दीर्घेश्वरी मन्दिर (Dirgheshwari Temple) हैं। उत्तरी गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित दीर्घेश्वरी मन्दिर देवी के भक्तो को ही अपनी ओर आकर्षित नहीं करता है, अपितु उन्हें भी अपनी ओर खींचता है, जिन्हें इतिहास से प्रेम है या फिर जिनका मन शान्त स्थल की खोज करता रहता है जहां उन्हें दैनिक भीड़ भाड़ से दूर मानसिक शान्ति की प्राप्ति हो सके।
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दीर्घेश्वरी मन्दिर |
दीर्घेश्वरी मन्दिर से जुड़ी दंतकथा (Legend Behind the Dirgheshwari Temple)
प्राचीन हिन्दू महाग्रंथों में भगवान शिव और देवी सती के उस समय का वर्णन है, जब श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ जनक दुलारी की खोज में वन वन भटकते हुए अपनी मानवलीला को कर रहे थे। तब देवी सती को शिव जी के द्वारा मना किया जाने पर भी श्रीराम को परब्रह्म होने पर सन्देह हो आया और उन्होंने श्री राम की परीक्षा लेने का मन बना लिया। जिसके लिए उन्होंने सीता का रूप धारण कर राम के समक्ष प्रकट हो गयी। श्रीराम के द्वारा उन्हें पहचान लिया गया और सब तरफ उन्हें स्वयं को प्रकट कर राम द्वारा उनके सन्देह को समाप्त कर दिया गया। और देवी सती भगवान शिव के पास वापस आ गयी। उनसे भगवान शिव ने पूछा आप मेरे स्वामी की परीक्षा ले आयी इस पर उन्होंने उनसे मिथ्या ( झूठ ) बोला परन्तु शिव तो ठहरे आदियोगी, उन्होंने अपनी योगमाया से सब जान लिया। उनके ह्रदय में देवी सती के प्रति ग्लानि हो गयी क्योंकि उन्होंने देवी सीता का रूप धारण किया था। इसलिए उन्होंने कैलाश पहुंच कर देवी को तो कुछ नहीं कहा किन्तु देवी का परित्याग कर वे समाधि में बैठ गए। देवी सती भी अपनी शक्ति से प्रभु द्वारा किये गए त्याग को जान परब्रम्ह श्री राम से अपनी इस देह के त्याग के लिए प्रार्थना करने लगी जिसे श्रीराम द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
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देवी के चरण |
परिणाम स्वरुप देवी सती ने अपने पिता के द्वारा किये गए यज्ञ में अपने पति की निंदा को जानकर स्वयं को योगाग्नि से स्वयं को समाप्त कर लिया। उनके शोक में देवी का शव अपने कन्धे पर लिए हुए भगवान शिव सृष्टि में इधर उधर भटकने लगे। जिस पर उन्हें इस कष्ट से मुक्त करने के लिए जग के पालक श्री हरी ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी के शव के टुकड़े टुकड़े कर दिए। शव के टुकड़े जहां जहां गिरे वहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। देवी की जंघा का कुछ भाग सीताचल पर्वत की इस हिस्से पर गिरे जिससे इस स्थल को देवी के दिव्य शक्तिपीठ का गौरव प्राप्त हुआ।
एक अन्य स्थानीय किंवदंती के अनुसार, देवी भक्त महान ऋषि मार्कंडेय ने बाद में इस स्थल का भ्रमण किया तथा घोर तपस्या की। फलस्वरूप देवी ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। तथा यह स्थल देवी पूजा का महत्वपूर्ण स्थल बन गया।
दीर्घेश्वरी मन्दिर का इतिहास (History of Dirgheshwari Temple)
प्राचीन काल और प्रारम्भिक मध्यकालीन युग में दीर्घेश्वरी मन्दिर के होने के कोई भी प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। मन्दिर का निर्माण १७१४ से १७४४ सीई के मध्य अहोम शासन काल में किया गया ऐसा मन्दिर के पिछले द्वार के पास मौजूद एक शिलालेख पर लिखे अहोम शासक व उसके मंत्री के नामों को देख कर अनुमान किया गया है।
दीर्घेश्वरी मन्दिर का आर्किटेक्चर (Architecture of Dirgheshwari Temple)
अहोम शासक स्वर्गदेव सिबा सिंघा ने इस दिव्य स्थल के लिए भूमि प्रधान की तथा और उनके महामंत्री तरुण दुवारा बरफुकन की देखरेख में इस मंदिर का निर्माण कार्य ईंटो का उपयोग करके किया गया है। १७५६ सीई में राजा स्वर्ग देव राजेश्वर सिंह के इस क्षेत्र में किये गए राजसी दौरे के दौरान मन्दिर स्थल का भी दौरा किया तथा मन्दिर के उचित रख रखाव के लिए पुजारियों, भूमि तथा सेवकों की नियुक्ति की। इस यात्रा में राजा स्वर्ग देव राजेश्वर सिंह के द्वारा मंदिर में चांदी का एक छत्र देवी को अर्पित किया गया। जिसका उपयोग वर्तमान समय में देवी दुर्गा की मुख्य मूर्ति के लिए किया जाता है।
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मन्दिर प्रवेश
मन्दिर के साथ ही साथ कई प्राचीन चित्र जिन्हे चट्टानों पर खोद कर बनाया गया है, एक दर्शनीय वास्तु निधि है । परिसर में जल का एक छोटा सा कुंड भी है जिसमे छोटी छोटी सुन्दर मछलियां और कछुआ देखने को मिलते है। परिसर में ही एक स्थल पर दो पैरों के चिन्ह दर्शित होते है, जिन्हे देवी के पद चिन्हो के रूप में माना जाता है। सबसे रोचक तथ्य परिसर में पायी जाने वाली एक नौकाकार पत्थर की संरचना है, जिसके लिए स्थानीय लोग बताते है की यह एक नौका है जिसका प्रयोग अप्सराओं के द्वारा जलक्रीड़ा के लिए किया जाता था।
जैसा की हिन्दू धर्म में मान्यता है किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ भगवान श्री गणेश के दर्शन व पूजा के साथ ही होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अहोम शासकों द्वारा प्रवेश द्वार पर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा एक विशाल चट्टान पर बनवायी गयी थी।
दीर्घेश्वरी मन्दिर का समय (Timing of Dirgheshwari Temple)
मन्दिर प्रतिदिन भक्तों के लिए प्रातः ६:०० बजे से रात्रि ७:०० बजे तक खुला रहता है। जिसमें दीर्घेश्वरी मन्दिर के पुजारियों द्वारा विभिन्न प्रकार के दैनिक कर्मकांड किये जाते है।
दीर्घेश्वरी मन्दिर में मनाया जाने वाला वार्षिक त्यौहार (Annual Celebrations Which Are Celebrated in Dirgheshwari Temple)
एक औपनिवेशिक युग के अंत के बाद दीर्घेश्वरी मन्दिर में आने वाले भक्तों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है। अन्य देवी मन्दिरों की ही भांति दीर्घेश्वरी मन्दिर में भी देवी पूजा का अपना ही महत्त्व है। वार्षिक पूजा के रूप में की जाने वाली दुर्गा पूजा जिसमे दूर दूर से शक्ति पंथ के अनुयायी यहाँ आते है तथा स्वास्थ्य लाभ, दीर्घायु और विवाह में आने वाली समस्याओं के निवारण के लिए अपनी मन्नतें मांगते है। दीर्घेश्वरी मन्दिर में दुर्गा पूजा का मुख्य आकर्षण यहाँ दी जाने वाली भैसों की बलि है। बलि में छोटे पशुओं जैसे बकरी आदि की भी बलि देने की प्रथा है।
दीर्घेश्वरी मन्दिर में महत्व (Importance of Dirgheshwari Temple)
- दीर्घेश्वरी मन्दिर को एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा मान्यता प्रदान करने के बाद इसके संरक्षण के लिए एक अप्रत्याशित व सराहनीय कदम उठाये गए है।
- मान्यता है गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मन्दिर में दर्शन के उपरान्त, दीर्घेश्वरी मन्दिर में देवी के दर्शन करना अनिवार्य है अन्यथा कामाख्या देवी के दर्शन का फल प्राप्त नहीं होता।
चट्टानों पर बनाई गयी सुंदर मुर्तिया
दीर्घेश्वरी मन्दिर कैसे पहुंचे ? (How To Reach Dirgheshwari Temple?)
हवाई मार्ग के द्वारा दीर्घेश्वरी मन्दिर (Dirgheshwari Temple by Air)
हवाई मार्ग के द्वारा दीर्घेश्वरी मन्दिर (Dirgheshwari Temple by Air)गुवाहाटी का प्रमुख हवाई अड्डा गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, जिससे दीर्घेश्वरी मन्दिर की दूरी लगभग ३० किमी की दूरी पर स्थित है। गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के सभी प्रमुख हवाई अड्डों से नियमित फ्लाइट के द्वारा जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग के द्वारा दीर्घेश्वरी मन्दिर (Dirgheshwari Temple by Train)
गुवाहाटी से निकटतम रेलवे स्टेशन कामाख्या रेलवे स्टेशन है। कामाख्या रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख रेलवे स्टशनों से जुड़ा हुआ है। जिससे दीर्घेश्वरी मन्दिर की दूरी लगभग २३ किमी की दूरी पर स्थित है।
सड़क व नदी मार्ग के द्वारा दीर्घेश्वरी मन्दिर (Dirgheshwari Temple by Road)
दीर्घेश्वरी मन्दिर गुवाहाटी के सभी प्रमुख शहरों से पर्यटक व स्थानीय बसों, ऑटो, किराये पर उपलब्ध गाड़ियों व निजी वाहनों से जुड़ा हुआ है। यदि आप इस यात्रा का वास्तविक आनन्द लेना चाहते है तो आप ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट से मोटरबोट ले तथा नदी मार्ग की सुंदरता का भरपूर आनन्द लें।
दीर्घेश्वरी मन्दिर गूगल मैप की नजर में (Dirgheshwari Temple in Google Maps)
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