राजस्थान के बीकानेर से ३० किमी दूर देशनोक शहर में देवी को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। जिसकी अधिष्ठाता देवी करनी है। इस कारण से मंदिर को करनी माता का मंदिर (Karni Mata Temple) या कर्णी महाराज का मंदिर(Karni Maharaj Temple) के नाम से जाना जाता है। लेकिन मंदिर को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि चूहों वाले मंदिर (Rat Temple) के नाम से मिली है।
शक्ति के इस महापर्व पर कोने कोने में स्थित माता के भक्त उनका आशीर्वाद प्राप्त होने की भावना को मन में लिए हुए उनके पावन शक्तिपीठों और सिद्धपीठों पर दर्शन के लिए पहुंचते है। हिंगलाज माता का मंदिर (कालांतर में पाकिस्तान में स्थित एक प्रसिद्ध देवी मंदिर ) जहां चरणी सगतियों के भक्त विभाजन के पूर्व पूजा किया करते थे। वहां तक पहुंचने में असमर्थ होने पर उनके दूसरे प्रमुख तीर्थ स्थल करनी माता मंदिर (Karni Mata Mandir) में दर्शन हेतु पहुंचने लगे, तथा देवी की कृपा से उनके सभी कष्ट मिटने से समय के साथ मंदिर देवी के भक्तों में धीरे धीरे प्रसिद्धि पाने लगा।
कौन है देवी करनी ?(Who is Goddess Karni?)
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करनी माता Image Source - Google by Pinterest |
क्या है करनी माता मंदिर में इतने चूहों के पीछे की कहानी (What is the Story Behind So Many Rats In Karni Mata Temple)
करनी माता मंदिर को विश्व में प्रसिद्धी सिर्फ वहां पर मौजूद चूहों के कारण मिली है जिसकी वजह से इसे चूहों वाले मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे प्रसिद्ध किंवदंती जो है वह इस प्रकार है -
प्रथम किंवदंती - करनी माता मंदिर का इतिहास बहुत विस्तृत है। सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय किवदंती के अनुसार, करनी माता चूंकि सतिका (ब्रह्मचर्य) में रहती थी। इसलिए उनके पति का दूसरा विवाह उन्ही की छोटी बहन से कर दिया गया। जिनसे उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। उनका सबसे छोटा पुत्र लक्ष्मण को घूमने का बहुत शौक था। वर्ष १४६७ ई. में कार्तिक मास की सुदी चतुर्दशी को लगे कोलायत मेले में स्न्नान करते समय वह तालाब में डूब गया। उसके शव को देशनोक लाया गया। जब लक्ष्मण की माँ ने अपने पुत्र के शव को देखा तो वह उसे लेकर अपनी बहन करनी के पास पहुंची। करनी ने शव को अपनी कुटिया में रख लिया और कुटिया का द्वार बंद कर लिया। द्वार तीन दिन तक बंद रहा और इस समयावधि में देवी ने किसी को भी अपना दर्शन प्रदान नहीं किया। लक्ष्मण को पुर्नजीवित करने के लिए करनी माता ने यमलोक की यात्रा की तथा यमराज से अपने पुत्र लक्ष्मण के जीवन को वापस करने को कहा। यमराज ने असमर्थता व्यक्त करते हुए बताया की यह ब्रह्म के बनाये हुए नियमो के विरुद्ध होगा।
एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को पुनः मनुष्य का शरीर प्राप्त करने के लिए अनेकों योनियों से गुजरना पड़ता है। माता करनी परन्तु अपनी बात पर अड़ी रही कि वह लक्ष्मण को वापस ले जाए बिना नहीं जायेंगी। इस पर यमराज ने कहा, यदि वह ऐसा करते है तो लक्ष्मण के जन्म का चक्र टूट जायेगा। तब माता करनी ने यमराज ने से कहा कि अब से उनके चरण भक्त, अपनी मृत्यु के बाद मनुष्य शरीर धारण करने से पहले देशनोक में चूहों के रूप में पुर्न जन्म लेंगे।
चौथे दिन सूर्योदय के साथ लक्ष्मण ने द्वार खोला और सबको विस्मित करते हुए कुटिया से बाहर आ गया। बहन गुलाब बाई को आश्वत करने के लिए करनी माता ने अपने पुत्रों के जीवन की अवधी के दौरान रक्षा करने का वचन दिया।
दूसरी किंवदंती - एक कम प्रसिद्ध स्थानीय किंवदंती के अनुसार, एक बार २०००० सिपाही लड़ाई के मैदान से पीठ दिखाकर देशनोक में छिप गए। चूंकि उस समय युद्ध के मैदान से भागे हुए सिपाहियों को मौत की सजा दी जाती थी, क्योंकि इस कृत्य को उस काल में महापाप मन जाता था। इसलिए उन्होंने करनी माता से अपने जीवन की प्रार्थना की। माता ने उन्हें चूहों के रूप में बदल दिया तथा मंदिर में रहने के लिए आज्ञा दे दी। उन सैनिकों ने हमेशा देवी की सेवा करने का वचन दिया और तब से अब तक वह सभी माता की सेवा करते है।
चूहें जो करनी माता मंदिर को बनाते है विश्व में अद्वितीय (Rats That Make Karni Mata Temple Unique in World)
काबा के नाम से प्रसिद्ध, मंदिर में २५००० के आसपास चूहे निवास करते है। इन्हें इतना पवित्र माना जाता है, कि करनी माता मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर में इनकी पूजा करते है। मंदिर परिसर में यह चूहें स्वतत्रं रुप से इधर उधर घूमते हुए देखे जा सकते है। उनकी सुरक्षा के लिए मंदिर में इधर उधर जाली की रेलिंग लगायी गयी है। यह छोटे से दिखने वाले देवी के प्रिय जीव, जो देवी के वंशज मने जाते है दीवारों और फर्शों की दरारों से प्रकट होते है और देवी के दर्शन करने की पंक्ति में लगे भक्तों के नंगे पैरों पर से कभी भी गुजर जाते है।
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करनी माता मंदिर |
करनी माता मंदिर की वास्तुकला (Architecture of Karni Mata Temple)
करनी माता मंदिर के निर्माण की आधारशिला १५वीं शताब्दी में राजपूत राजाओं ने रखी थी। बीकानेर के चौथे राजा, राजा राव जैतसी ने गुंभरा के चारों और एक संरचना का निर्माण जिसे दमांड कहा जाता है। जिसे बाद में राजा सूरत सिंह ने पक्का स्वरुप प्रदान किया। गर्भगृह का स्वर्ण द्वार अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह ने माता को भेंट किया। कालांतर की संरचना २०वीं शताब्दी में, बीकानेर के राजा गंगासिंह जी के द्वारा मुगल वास्तुशैली में करवाई गयी थी। ठोस चांदी के दरवाजों और संगमरमर का मिश्रण इस मंदिर को एक अद्भुत सुंदरता प्रदान करता है। जब मुख्य द्वार से गर्भगृह की ओर बढ़ते है तो आप को चांदी से बने अन्य दरवाजे दिखाई पड़ते है। जिसपर देवी से सम्बंधित अनेक कथायें उभरी हुई है। देवी की मूर्ति हाथ में त्रिशूल लिए हुई ७५ सेमी लम्बी है। जिनके शीश पर मुकुट और गले में माला सुशोभित है। देवी की मूर्ति के साथ उनकी बहनों की मूर्ति दोनों ओर है।
१९९९ में हैदराबाद के देवी भक्त करणी जौहरी कुन्दनलाल वर्मा जी ने मंदिर का विस्तार तथा जीर्णोद्धार करवाया।
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करनी माता मंदिर में चूहों का जूठा प्रसाद, दिया जाता है प्रसाद में (Rat's Leftovers Are Given in the Prasad in Karni Mata Temple)
आमतौर पर हमारे घरों, कार्यक्षेत्रों में चूहें दिखाई पड जाते है। यहाँ तक कि कुछ लोग सफेद चूहों को अपने घरों में पालते भी है परन्तु यदि वह किसी भोजन की वस्तु को झूठा कर दे तो उस वस्तु को फेंक दिया जाता है। परन्तु इसके विपरीत करनी माता मंदिर में मान्यता है कि प्रसाद जिसे चूहों द्वारा झूठा कर दिया जाता है। उनके झूठा होते ही पवित्र हो जाता है और उसे ग्रहण करने से किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती है। इसलिए मंदिर में पुजारी द्वारा देवी को लगाया गया भोग जिसे चूहें पहले खा लेते है के बचे हुए भाग को प्रसाद स्वरुप भक्तो में बांटा जाता है।
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Image Source - Google by Pooja Bhakti |
करनी माता मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य (Interesting Facts about Karni Mata Temple)
- मंदिर से जुडी हुई अनेक किंवदंती है। उत्तर पश्चिम भारत के राजपूत और चरण जाति के लोग करनी माता मंदिर के चूहों को अपना पूर्वज मानते है तथा उनकी पूजा करते है।
- उत्तर पश्चिम भारत के राजपूत और चरण जाति के लोगों का मानना है कि मृत्यु के बाद वे भी चूहे के रूप में जन्म लेकर देवी की सेवा करेंगे।
- मान्यता के अनुसार चूहों के द्वारा खाया गया भोजन जिसे प्रसाद के रूप में दिया जाता है। पाने वाले भक्त के घर में सौभाग्य के आगमन का सूचक होता है।
- मंदिर में लगभग ४ सफेद चूहे है जिनका दिखना आकस्मिक होता है।
- मंदिर में होने वाली प्रातः और सायं आरती में मंदिर के सभी चूहें अपने अपने बिलों से निकल कर आरती में समलित होते है।
- मंदिर में चूहों की इतनी अधिक संख्या में होने के कारण पैर घसीट का चलना पड़ता है।
- मंदिर में जगह जगह पर चूहों के भोजन के लिए पात्र रखे गए है। जिसमे भक्त उन्हें दूध और पकवान का भोग लगते है।
- मंदिर में इतनी बड़ी संख्या में चूहों के होने के बावजूद किसी भी प्रकार की दुर्गन्ध नहीं आती तथा इन चूहों से किसी भी प्रकार की बीमारी होने का भी इतिहास नहीं है।
- मंदिर को मॉर्गन स्परलॉक द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री रैट्स, जो २०१६ में प्रदर्शित हुई थी में दिखाया गया है। इसके अतिरिक्त मंदिर को अमेरिकी रियलिटी शो द अमेजिंग रेस सीजन वन में भी दिखाया गया है।
- देशनोक में सबसे बड़ा चरण वंश देपावतो का है जिनमें कुल मिलकर ५०० से अधिक परिवार है।
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करनी माता मंदिर का समय व आयोजित समारोह (Timing of Karni Mata Temple and Ceremonies Organized)
करनी माता मंदिर प्रतिदिन प्रातः ५:०० बजे से रात्रि १०:०० बजे तक भक्तो के लिए खुला रहता है। जिसमें मंगला आरती और देवी को भोग अर्पित किया जाता है। भक्तो द्वारा मंदिर को जो भी दान इत्यादि दिया जाता है। उसे मंदिर प्रशासन द्वारा दो भागों में विभक्त किया जाता है। एक भाग जिसे कलश भेंट कहा जाता है का प्रयोग मंदिर ट्रस्ट द्वारा मंदिर के रख रखाव और विकास के लिए किया जाता है। दूसरा भाग जिसे द्वार भेंट कहा जाता है जिसका प्रयोग मंदिर के पुजारियों द्वारा आजीविका के रुप में किया जाता है।
करनी माता मंदिर में दो बार मेले का आयोजन किया जाता है। देवी उत्सवों का सबसे बड़ा व मुख्य समय नवरात्रि जो हिन्दू माह के चैत्र माह की शुल्कपक्ष के पहले दिन से प्रारम्भ हो कर दशमी तक मनाया जाने वाला पहला और सबसे बड़ा मेला वर्ष का सबसे बड़ा मेला है। दूसरा सबसे बड़ा मेला अश्विन माह में पड़ने वाली नवरात्रि के समय मनाया जाता है। ें दोनों समय पर मंदिर एक छोटे से देश में बदल जाता है। जगह जगह बजने वाले देवी के भक्ति गीत इस उत्सव को और भी आनंद में भर देता है।
करनी माता मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय (Best Time to Visit Karni Mata Temple)
यूं तो किसी भी देवस्थल पर जाने और दर्शन करने का कोई भी समय अशुभ नहीं होता किन्तु सबसे अच्छा समय उसे माना जाता है, जब मंदिर में सबसे ज्यादा भक्तगण हो क्योंकि की इस समय वह स्थल एक छोटे से देश में बदल जाता है जिसमे भांति भांति की संस्कृतिया और लोग सम्मिलित होते है। ऐसा ही समय मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर का है जब मंदिर में मेले और त्यौहार अपने चरम पर होते है।
करनी माता मंदिर कैसे पहुंचे (Being in Karni Mata Temple)
हवाई मार्ग से (By Air) - करनी माता मंदिर के सबसे निकटतम हवाई अड्डा बीकानेर का सिविल एयरबेस है। जहाँ से मंदिर की दूरी १७ किमी के लगभग है। अन्य विकल्प के रुप में जोधपुर हवाई अड्डा (मंदिर से दूरी २२० किमी) तथा जयपुर हवाई अड्डा (मंदिर से दूरी ३५० किमी) है। बीकानेर हवाई अड्डे से बाहर निकलकर स्थानीय व राज्य परिवहन की मदद से आप मंदिर तक पहुंच सकते है।
रेल मार्ग से (By Rail) - यदि आप की योजना रेल सेवा का प्रयोग करते हुए मंदिर पहुंचने की है। तो सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन बीकानेर जंक्शन है जो देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनो से भली भांति जुड़ा हुआ है। बीकानेर जंक्शन से बाहर निकलकर स्थानीय व राज्य परिवहन की मदद से मंदिर तक पहुंच सकते है।
सड़क मार्ग से (By Road) - बीकानेर सड़क मार्ग से आसपास के शहरों और देश के प्रमुख राज्यों से एक सुनियोजित तरह से जुड़ा हुआ है। अतः सड़क मार्ग से मंदिर पहुंचने के लिए किसी भी प्रकार की समस्या से रुबरु नहीं होना पड़ता है। बीकानेर और जोधपुर से नियमित बसें करनी माता मंदिर के लिए उपलब्ध है।
गूगल मैप में करनी माता मंदिर (Karni Mata Temple in Google Maps)
निष्कर्ष (Conclusion)
राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में देवी करनी के अनेक मंदिर है किन्तु उनमे सबसे ज्यादा प्रसिद्धि देशनोक में स्थित करनी माता के मंदिर को मिली। वास्तव में मंदिर प्रकृति में मनुष्य और जीव के संतुलन को स्थापित करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आप जब मंदिर में दर्शन के लिए जाये तो इन छोटे से जीवों को पूरा सम्मान प्रदान करें। जब आप देशनोक की तीर्थ यात्रा करें तब स्थानीय विक्रेताओं के द्वारा मिलने वाले स्थानीय भोजन का आनंद लेना न भूले।
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