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दक्षिणेश्वर काली मंदिर (Dakshineswar Kali Temple)

 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर (Dakshineswar Kali Mandir) भारत की ब्रिटिश राजधानी ( १९११ तक, जब तक ब्रिटिश राजधानी दिल्ली स्थानन्तरित नहीं की गयी थी ) कोलकाता में १८वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प का एक अद्भुत उदाहरण है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर अद्भुत वास्तुशिल्प के चमत्कार होने के साथ ही साथ देवी के ५१ शक्तिपीठों में से भी एक है। मान्यता है इस स्थल पर देवी सती के बायें पैर का अंगूठा गिरा था। जिसके कारण यह स्थल जीवन्त रूप से देवी का निवास स्थल बन गया है।    

दक्षिणेश्वर काली मंदिर कोलकाता के २४ परगना जिले में स्थित दक्षिणेश्वर नाम के कस्बे में गंगा नदी के तट पर स्थित देवी काली के सौम्य स्वरुप माँ भवतारिणी को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। जो कोलकाता शहर के प्राचीन सांस्कृतिक रूप को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता है। १८वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में गंगा नदी के किनारे स्थित घने वन दक्षिणेश्वर में एक प्रसिद्ध सवर्ण रॉय चौधरी परिवार के सदस्य श्री दुर्गाप्रसाद रॉय चौधरी और भवानीप्रसाद रॉय चौधरी आकर बस गए थे। इसी सवर्ण परिवार की भक्ति का परिणाम कालान्तर में स्थित माँ भवतारिणी का अद्भुत निवास स्थल है। मंदिर को जग में प्रसिद्धि माँ के परमप्रिय भक्त और धार्मिक स्वामी रामकृष्ण परमहंस जिनकी प्रसिद्धि भारतीय प्रायद्वीप के अतिरिक्त यूरोपीय देशों में भी है।  

कैसे हुआ दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण (How Dakshineswar Kali Temple was Build)

कोलकाता का प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर मंदिर, जिसमे माँ काली का निवास है, कि स्थापना एक सपने ने की थी। जिसकी कथा इस प्रकार है। देवी रश्मोनी, जिनके पति रॉय चौधरी परिवार के स्वामी और भगवती काली के भक्त थे, भगवती के एक मंदिर का निर्माण करवाना चाहते थे। परन्तु होनी तो ठहरी बलवान उनकी असमय मृत्यु ने पूरे परिवार को अस्थिर कर दिया। अपने पति की आसमयिक मृत्यु ने रानी को भी विचलित कर दिया परन्तु सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने अपने पति की समस्त जिम्मेदारियों के निर्वाहन के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर दिया। 

चूंकि सम्पूर्ण विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहां नारी को देवी स्वरुप मानकर उसकी पूजा की जाती रही है। सभी ने रानी रश्मोनी के इस निर्णय का खुले मन से स्वागत किया। जिसका परिणाम उन्हें एक उदार शासक के रूप में मिला। रानी रश्मोनी ने अपनी प्रजा के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये जिनमें से मुख्य सन्ना धाट का निर्माण, सुवर्ण रेखा नदी से पुरी तक की यात्रा का मार्ग, इम्पीरिअल लाइब्रेरी ( कालांतर में राष्ट्रीय पुस्तकालय ) और हिन्दू कालेज  ( कालांतर में  प्रेसीडेंसी कॉलेज ) रहे। 

प्राचीन दक्षिणेश्वर मंदिर
प्राचीन दक्षिणेश्वर मंदिर
Image Source - Google Image by Navrang India  

किन्तु सांसारिक माया से मुक्त देवी रश्मोनी का मन काशी की तीर्थयात्रा का करने लगा और जिस दिन उन्हें अपनी इस यात्रा का शुभारम्भ करना था उसके एक दिन पूर्व जगकल्याणी माँ ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर इस यात्रा को न करके उसके स्थान पर गंगा के किनारे एक मन्दिर के निर्माण और उनकी मूर्ति स्थापना का आदेश दिया। देवी परब्रम्ह स्वरूपा के इस दर्शन और उनके द्वारा कहे गए वाक्य "मैं स्वयं को छवि रूप में प्रकट करुंगी तथा उस स्थान पर की गयी पूजा को स्वीकार करुंगी" ने रानी रश्मोनी को झकझोर दिया और उन्होंने अपने छोटे जमाई तथा कुछ विशेष अनुचरों को मन्दिर के निर्माण के लिए उपयुक्त भूमी की खोज करने का कार्य सौंपा। एक बड़ी खोज के बाद दक्षिणेश्वर गांव में एक २० एकड़ के कछुए के कूबड़ जैसी भूमि का चयन किया गया। परन्तु अभी भी समस्या खत्म नहीं हुई थी, चयन की गयी भूमि का आधा भाग एक यूरोपीय ईसाई का था और आधे भाग पर मुस्लिम कब्रिस्तान का हिस्सा था। देवी ने दोनों धर्मों को एकीकृत करके ५४.५ बीधा पर नवरत्न शैली का प्रयोग करके सुन्दर काली मंदिर का निर्माण करवाया। जिसका औपचारिक नाम श्री श्री जगदीश्वरी महाकाली मन्दिर दिया गया। 

इस प्रकार देवी रश्मोनी के एक मात्र स्वप्न ने पूरे विश्व को भगवती काली का एक दुर्लभ मंदिर प्रदान किया। जिसके बनने में लगभग ८ साल (१८४५-१८५५ ) की अवधि तथा अनुमानित ९ लाख रुपये का खर्च आया। जिसमे १८५५ में मन्दिर की स्थापना के दिन मात्र २ लाख रुपए खर्च किये गए थे, जिसमें देश के कोने कोने से लगभग १ लाख से अधिक ब्राह्मण उपस्थित हुए थे। श्री श्री जगदीश्वरी महाकाली मन्दिर में देवी-देवताओं की मूर्तियों की स्थापना के लिए स्न्नान यात्रा का शुभ दिन (३१-मई-१८५५) की तिथि का निर्धारण किया गया था। 

क्या है दक्षिणेश्वर काली मंदिर का मुख्य आकर्षण ( What is the Main Attraction of Dakshineswar Kali Temple) 

मुख्य दक्षिणेश्वर काली मंदिर (Main Temple of Dakshineswar Kali Temple)

दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण बंगाल की सबसे प्राचीन वास्तुकला शैली जिसे नवरत्न के नाम से जाना जाता था, में किया गया है। जो धरती के किसी भी कोने से आने वाले स्त्री-पुरुष को बरबस ही अपनी ओर मोहित कर लेती है। गहरे लाल और पीले रंग की संरचना जिसमें जिसकी तीन मंजिला इमारत में से दो मंजिलो में नौ शिखरों में बंटा हुआ है। मुख्य द्वार से प्रवेश के बाद प्रांगण के केन्द्र में देवी भवतारिणी का मुख्य मन्दिर है। जो लगभग ४६ वर्ग फुट के क्षेत्र में एक ऊँचे मंच पर स्थित है। जिससे मन्दिर की ऊंचाई १०० फीट (मंदिर के शिखर सहित) हो जाती है। दर्शन की प्रतीक्षा में आने वाले भक्तगणों की सुविधा के लिए एक संक्रीण ढका हुआ बरामदा है। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में स्थित देवी भवतारणी
देवी भवतारणी

मंदिर के गर्भगृह में देवी भवतारिणी की काले पत्थर की बनी मूर्ति चांदी की वेदी पर हजारों पंखुड़ी वाले चांदी के कमल के आसन पर सुशोभित है। देवी भवतारिणी की इस मूर्ति में चार हाथ है जिसमें से दाहिनी भुजायें अभय मुद्रा में है जबकि बायीं भुजायें बुराई के नाश का प्रतिनिधित्व करती है।

 देवी के चरणों में उनके पति भगवान महादेव की प्रतिमा है जो लेटी हुई अवस्था में है। देवी के चेहरे पर क्रोध मुद्रा में रक्त लाल, अग्नि के समान बुराई का नाश करने वाले नयन तथा ललाट पर तीसरा नेत्र सुशोभित है तथा माता की रक्त पिपासु जिव्हा होठों से बाहर निकली हुई है। देवी की मूर्ति के गले में स्वर्ण निर्मित मुण्डमाला तथा शरीर पर सुन्दर बनारसी साड़ी तथा स्वर्ण आभूषण सदा ही सुस्जित रहते है। देवी के शीश पर स्वर्ण मुकुट तथा पीछे चांदी का प्रभामण्डल शोभायमान है जिससे इस मूर्ति की सुन्दरता कई गुणित हो जाती है। विशेष अवसरों पर देवी को फूलों के मुकुट था आभूषणों से सजाया जाता है। जिसे आने वाले भक्त अपलक देखते रह जाते है। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में स्थित १२ शिव मंदिर (12 Shiv Temples in Dakshineswar Kali Temple)

देवी के इस मुख्य मंदिर के अतिरिक्त प्रांगण में १२ समान शिव मंदिर, जो की कुठी बाड़ी के सामने गंगा नदी के तट पर स्थित है। मुख्य मंदिर के सामने स्थित इन सभी १२ मंदिरों के मुख पूर्व दिशा की तरफ है तथा इन सभी को चाडनी ( नदी के किनारे ) द्वारा विभाजित किया जाता है अर्थार्त बाई ओर ६ मंदिर तथा दाई ओर ६ मंदिर स्थित है। इन सभी मंदिरों को बंगाल की विशिष्ट वास्तुकला "आट चला" में निर्मित किया गया है। 
12 Shiv Temples in Dakshineswar Kali Temple
दक्षिणेश्वर मंदिर में स्थित शिव मंदिर 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर से सम्बंधित यह १२ शिवलिंग है - योगेश्वर, जटेश्वर, जतिलेश्वर, नकुलेश्वर, नाकेश्वर, निर्जारेस्वर, नरेश्वर, नंदीश्वर, नागेश्वर, जगदीश्वर, जलेश्वर और यज्ञेश्वर। मंदिर का आंतरिक भाग श्वेत और श्याम पत्थरों से मिला कर किया गया है परन्तु गर्भगृह में उपस्थित सभी १२ शिवलिंग एक समान काले पत्थर से निर्मित है। जिनकी प्रतिदिन पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि रामकृष्ण परमहंस के द्वारा आत्मज्ञान की साधना इन्ही मंदिरों में की जाती थी।  

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में स्थित विष्णु मंदिर (Vishnu Temple in Dakshineswar Kali Temple)

vishnu mandir
भगवान विष्णु का मंदिर 

राधा कृष्ण की मूर्ति वाला एक विष्णु मंदिर जो कि मंदिर के उत्तर-पूर्व में स्थित है को राधा कान्ता कहा जाता है। जो कि एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। राधा कान्ता मंदिर में चांदी के सिंहासन पर स्थित भगवान कृष्ण की मूर्ति २१.५ इंच तथा राधा रानी की मूर्ति १६ इंच की है। जिनकी पूजा अर्चना प्रतिदिन की जाती है। गर्भगृह के बगल के कक्ष में भगवान कृष्ण की मूल प्रतिमा है जिसे बार बार पैर टूटने के कारण १९३० में देबोत्तर एस्टेट द्वारा वर्तमान मूर्ति से बदल दिया गया था। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में दर्शन का समय (Darshan Timings at Dakshineswar Kali Temple)

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में दर्शन का समय प्रातः ६:०० बजे से अपराह्न १२:३० बजे तक तथा सायं ३:३० बजे से रात्रि ७:३० बजे तक है। इस समयावधि में अनेक दैनिक अनुष्ठान किया जाते है जिनका समय ऋतुओं और विशेष पर्वों के दिनों में बदलता रहता है। प्रतिदिन ३ प्रकार की आरती से देवी की विशेष सेवा की जाती है। जो इस प्रकार है -

मंगल आरती (ग्रीष्मकालीन) - प्रातः ४:०० बजे

मंगल आरती (शीतकालीन) -  प्रातः ५:०० बजे 

भोग आरती -  अपराह्न १२:०० बजे 

संध्या आरती (ग्रीष्मकालीन) - रात्रि ७:०० बजे

संध्या आरती (शीतकालीन) - रात्रि ६:३० बजे

दक्षिणेश्वर काली मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि पूजा का कोई भी निश्चित प्रारूप नहीं है। इसलिए आप किसी भी प्रकार की भावना को रखते हुए मंदिर में प्रवेश कर सकते है परन्तु मंदिर का सात्विक परिवेश आपको देवी के चरणों में झुकने को और उनके अस्तित्व को स्वीकार ने को बाध्य कर ही देगा। मंदिर में भक्तों के द्वारा जो भी प्रसाद देवी को चढ़ाया जाता है उसे पुजारी द्वारा उन्हें ही आशीर्वाद के साथ ही वापस कर दिया जाता है। यदि कोई भी भक्त कोई मूल्यवान वस्तु का दान करना चाहता हो तो उसे परिसर में मौजूद मंदिर कार्यालय में सम्पर्क करना पड़ेगा। 

किसी आगन्तुक दर्शनार्थी के लिए देवी को अर्पित भोग (प्रसाद) जिसे मायर प्रसाद कहा जाता है, का कुछ हिस्सा अपने साथ ले जाने के लिए कार्यालय से सम्पर्क करके एक कूपन प्राप्त करना होता है। जिसके बाद सामुदायिक भोजन कक्ष से उस भोग को प्राप्त किया जा सकता है। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में मनाये जाने वाले समारोह (Festivals Celebrated at Dakshineswar Kali Temple)

कल्पतरु (Kalptaru)

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार, जिसको अंग्रेजी पंचांग (कैलेंडर) के पहले दिन अर्थात १ जनवरी को मनाया जाता है। इस त्योहार में रामकृष्ण मिशन या रामकृष्ण परमहंस जी को मानने वाले उनके अनुनायी बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते है। 

नवरात्रि और दुर्गा पूजा (Navratri and Durga Pooja)

दुर्गा पूजा
देवी का श्रृंगार दुर्गा पूजा के दिनों में 
चूंकि दुर्गा पूजा बंगाल में मनाया जाने वाला सबसे भव्य त्यौहार है। इसलिए दक्षिणेश्वर काली मंदिर में मनाया जाने वाला दूसरा सबसे महत्वपूर्ण त्योहार नवरात्रि के ९ दिन है। इन नौ दिनों में मन्दिर को विशेष सज्जा के साथ सजाया जाता है तथा कुमारी पूजा का आयोजन भी किया जाता है। कार्तिक माह में पड़ने वाले नवरात्र के ९वें दिन अयोध्या पूजा का आयोजन होता है जिसमे भक्त जीवन में सफलता के लिए अपने अपने आजीविका के उपकरणों की पूजा करते है। छठ (नवरात्रि का छठवा दिन) से लेकर दशमी तक पुजारी पांच दिन तक देवी के पवित्र ग्रंथो का संस्कृत में पाठ करते है। इन दिनों मन्दिर की शोभा अकथनीय होती है। 

काली पूजा (Kali Pooja)

काली पूजा
काली पूजा के समय मंदिर सज्जा
Image Source - Google by Social News XYZ 
दीपावली के समय पर आयोजित होने वाली काली पूजा मंदिर का सबसे प्रमुख आकर्षण होता है। इस समय मंदिर रंग बिंरंगे फूलों और प्रकाश से सजाया जाता है। भक्त प्रातः सूर्य की पहली किरण के साथ ही पूजा के लिए मंदिर में एकत्र होने लगते है। इस समयावधि में मंदिर में बजने वाले भजन और देवी पाठ के स्वर मंदिर के सात्विक वातावरण की शोभा को चार चाँद लगा देते है। 

अमावस्या (Amawasya)

महीने की प्रत्येक अमावस्या (सबसे अंधेरी रात) की रस्म होती है। जिसमे भक्त एक दिन के उपवास के साथ अपनी प्रार्थना करते है तथा पुजारी द्वारा यज्ञ कराने के बाद उपवास खोलते है। जेष्ठ माह में पड़ने वाली अमावस्या की रात को फलाहारिणी काली पूजा का आयोजन किया जाता है। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य (Interesting Facts About Dakshineswar Kali Temple)

  • मंदिर का निर्माण देवी रश्मोनी ने स्वपन में देवी के दिए गए निर्देशों के अनुरूप ही निर्मित कराया। 
  • स्न्नान यात्रा के दिन जब मूर्ति स्थापना होनी थी में देश के कोने कोने से १ लाख से अधिक ब्राह्मण आये किन्तु भोज के समय रानी की कम जन्म को लेकर विवाद उत्पन हो गया जिससे उन ब्राह्मणों ने भोज स्वीकार करने से मना कर दिया तब रानी रश्मोनी ने मंदिर को अपने गुरु को अर्पित कर दिया जिससे मंदिर से उनका स्वामित्व समाप्त हो गया। 
  • मंदिर के प्रथम पुजारी रामकुमार चट्टोपाध्याय थे परन्तु मंदिर को जगत में ख्याति उनके भाई रामकृष्ण परमहंस के पुजारी काल में प्राप्त हुई। 

  • रामकृष्ण परमहंस और उनकी पत्नी शारदा देवी का इस मंदिर से एक गहरा रिश्ता है। मान्यताओं की माने तो रामकृष्ण का इसी मंदिर में देवी कलिका का सक्षात्कार हुआ था। 

  • मंदिर के उद्घाटन के बाद रानी रश्मोनी केवल पांच वर्ष और नौ माह तक ही जीवित रही। 
  • १८६१ में गंभीर रुप से बीमारी ने उन्हें पकड़ लिया तब अपनी मृत्यु को निकट जानकर उन्होंने मंदिर के रखरखाव के लिए खरीदी गयी दीनाजपुत (कालांतर में बांग्लादेश का एक हिस्सा) मंदिर ट्रस्ट को सौंपने का विचार किया था इस कार्य के पूरा होते ही उनका यह जीवन देवी भवतारिणी के चरणों में विलीन हो गया। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर के अन्य आकर्षण (Other Attraction of Dakshineswar Kali Temple)

गाजी ताला (Gazi Tala)

दक्षिणेश्वर काली मंदिर जाने के लिए दक्षिणेश्वर स्टेशन से निकलते ही पश्चिम में स्थित रानी रश्मोनी रोड के द्वारा जब विवेकानंद द्वार की ओर अपने पग बढ़ाते है तो मंदिर के बाई ओर एक पोखर (तालाब) पड़ता है जिसे "गाजी पुकुर" के नाम से जाना जाता है। जिसकी लम्बाई २६० फीट और चौड़ाई १२० फीट है। इस पोखर के उत्तर पूर्व में गाजी ताला है। जब दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण किया गया तो रानी रश्मोनी ने इस स्थल को संरक्षित किया ताकि हिन्दू मुस्लिम एकता बनी रहे और दोनों ही धर्म के लोग सम्भाव से पूजा कर सके। कालांतर में मंदिर गाजी ताला का रख रखाव देबोत्तर एस्टेट के द्वारा किया जाता है। 

कुठी बारी (Kuthi Bari)

कालन्तर में भक्तो की सुरक्षा के लिए स्थापित पुलिस कैंप जिसका निर्माण ब्रिटिश शासन के दौरान मूल रूप से गंगा के उत्तर की ओर लार्ड हेस्टिंग के द्वारा करवाया गया था, को कुठी बारी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है, की जब भी रानी रश्मोनी दक्षिणेश्वर काली मंदिर आती थी तो अपनी पुत्री और दामाद के साथ कुठी बारी में ही रुकती थी।  १८५५ से १८७० तक इसके भूतल में स्वामी रामकृष्ण परमहंस निवास किया करते थे। 

नहबत खाना (Nahabat Khana)

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में दो नहबत खाने है - एक दक्षिणी उद्यान में तथा दूसरा कुठी बारी के पश्चिम में स्थित है। प्राचीनकाल में यहाँ से आरती के समय विभिन्न वाद्य यंत्रो को बजाया जाता था परन्तु कालांतर में सिर्फ शंख, ढोल और ताशे का ही प्रयोग किया जाता है। नहबत खाने के नीचे ही देवी शारदा (रामकृष्ण परमहंस की पत्नी) का कक्ष है जहां वह अपने प्रारंभिक दिनों में रहती थी। आज भी उनकी यहाँ प्रतिदिन पूजा की जाती है। 

नट मंदिर (Nat Mandir)

५० फीट लम्बा और ७५ फीट चौड़ा १६ स्तम्भों वाला एक खुला मण्डप (हॉल) है। जिसमे भगवान शिव की एक प्रतिमा है। जिसके विषय में बताया जाता है, कि रामकृष्ण जब भी काली मन्दिर में जाते थे तो यही भगवान शिव की प्रतिमा के सामने प्रार्थना करते थे तथा ऐसी कक्ष में एक धार्मिक सभा के दौरान भैरवी ब्राह्मणी योगेश्वरी देवी ने शास्त्रानुसार रामकृष्ण को सिद्ध किया था। 
 

ठाकुर जी का कक्ष (Room of Thakur Ji)

रामकृष्ण परमहंस जी
रामकृष्ण परमहंस जी का कक्ष 
दक्षिणेश्वर काली मंदिर के उत्तर पश्चिम हिस्से में स्थित कक्ष में श्री रामकृष्ण परमहंस जी का कक्ष है जिसमे उन्होंने अपने अंतिम १४ वर्षो तक निवास किया। १८७२ में ऐसी स्थल पर श्री रामकृष्ण जी द्वारा "फलाहारिणी काली पूजा" का प्रारम्भ किया था, जब उन्होंने शारदा माँ को देवी माँ मानते हुए उनकी पूजा की थी। इस कक्ष में उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली सामग्री तथा विभिन्न लेख जिन्हे उनके द्वार लिखा गया था को जनमानस के दर्शन हेतु रखा गया है। 

बकुल ताला घाट (Bakul Tala Ghat)

नहबत खाना के सामने स्थित गंगा नदी का तट जिसके किनारे एक बकुल का वृक्ष है। जहां पर भैरवी ब्राह्मणी योगेश्वरी देवी ने तंत्र साधना के लिए रामकृष्ण को शिष्य रूप में स्वीकार किया था। इस स्थान का एक विशेष महत्व है इसी तट पर देवी शारदा प्रतिदिन स्न्नान करने के लिए आती थी। 

पंचवटी (Panchwati)

बकुल ताल के उत्तर में एक विस्तृत खुला स्थ है जहां रामकृष्ण के निर्देश में वृन्दावन के राधा कुंड और श्याम कुंड से मिट्टी लाकर ५ पेड़ बरगद, पीपल, नीम, अमलकी और वुडप्पल के वृक्ष लगाए गए थे। श्री तोतापरी जी के संरक्षण में उन्होंने वेदान्तिक संस्कारों अनुसार सन्यास लिया तथा १२ वर्ष इसी स्थान एक झोपडी बना कर व्यतीत किये। इस कुटीया को बाद में शांति कुटी में बनाया गया। जिसके पास एक शिव मंदिर है। जिसमे प्रतिदिन पूजा की जाती है। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर दर्शन के पूर्व ध्यान रखने योग्य विचार (Consideration Before Visiting Dakshineswar Kali Temple)

  • काली पूजा के लिए मंगलवार और शनिवार के दिन सबसे उत्तम दिन है इस कारण इन दिनों में मंदिर में भक्तों की भीड़ होती है। यदि आप कुछ समय सुकून से देवी के सानिध्य में बिताना चाहते है तो जहाँ तक संभव हो सके तो इन दिनों में मंदिर में दर्शन करने से बचें। 
  • मंदिर में दर्शन के पूर्व सुनिश्चित करें की जहाँ तक संभव हो सके संध्या आरती का आनन्द ले। जिसका एक अलग ही आकर्षण है। 
  • यूँ तो दक्षिणेश्वर काली मंदिर में किसी भी प्रकार का ड्रेसकोड नहीं है परन्तु प्रयास करे की आप पारम्परिक भारतीय पोशाकों को पहन कर मंदिर में प्रवेश करें जिससे मंदिर की मर्यादा बनी रहे। 

  • मंदिर में सुरक्षा की दृष्टि से बैग और मोबाइल लेकर जाना मना है अतः उन्हें कार्यालय द्वारा स्थापित काऊंटर पर जमा करे। यूँ तो मंदिर में दर्शन के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं है परन्तु काऊंटर पर उपस्थित व्यक्ति आप से कुछ निर्धारित शुल्क प्राप्त कर आपके बैग और कीमती सामान को सुरक्षित रखते है। 

  • कोलकाता की मिठाई और मिष्टी दोही देश के कोने कोने में प्रसिद्ध है। उन्ही मिठाइयों में से एक सबसे प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर पेड़ा मंदिर के आसपास के क्षेत्र में मिलता है। इसका स्वाद लेना बिलकुल भी न भूले। यही वो चीज है जो मंदिर की यात्रा की थकान भुला यात्रा को एक नया रोमांच प्रदान करती है।  
  • मंदिर के अंदर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। 
  • चाहे तो स्थानीय भक्तों के साथ आप भी गंगा नदी में स्न्नान कर सकते है। इसलिए अपने साथ अतिरिक्त वस्त्र अवश्य रखें। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में होना (Being in Dakshineswar Kali Temple)

हवाई जहाज से (By Air) सबसे निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता का नेताजी सुभाष चंद्र बोस हवाई अड्डा है। जिसकी दूरी मंदिर से ११ किमी के लगभग है। हवाई अड्डे से बाहर निकल कर आप पीली टैक्सी के द्वारा बड़ी ही सुगमता से मंदिर पहुंच सकते है। 

रेल मार्ग से (By Train) - सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन दक्षिणेश्वर रेलवे स्टेशन है जहा से पैदल ही दक्षिणेश्वर काली मंदिर तक पंहुचा जा सकता है। अन्य विकल्प के रूप में देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टशनों से जुड़ा हुआ हावड़ा जंक्शन, जिसकी दक्षिणेश्वर काली मंदिर से दूरी ११.५ किमी तथा संतरागाछी जंक्शन, जिसकी दक्षिणेश्वर काली मंदिर से दूरी २० किमी है, का भी चुनाव किया जा सकता है। 

सड़क मार्ग से (By Road) -  इस पूरे क्षेत्र में कैब सेवा की प्रचुरता है। इसके अतिरिक्त एसी बसे जो एस्प्लेनेड टर्मिनल से मिलती है। आप निजी वाहन भी प्रयोग कर सकते है क्योकि दक्षिणेश्वर काली मंदिर के आसपास पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है। 

कोलकाता मेट्रो से - निकटतम मेट्रो स्टेशन नोपारा मेट्रो स्टेशन है। इसके अतिरिक्त अन्य विकल्प के रूप में दम दम मेट्रो स्टेशन ४ किमी और बेलगछिया मेट्रो स्टेशन ४ किमी तथा श्याम बाजार मेट्रो स्टेशन है।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर गूगल मैप में (Dakshineswar Kali Temple in Google Map)

दक्षिणेश्वर काली मंदिर से जुड़े प्रमुख व्यक्तित्व  (Major Personalities Assocoates with Dakshineswar Kali Temple)

  • देवी रश्मोनी
  • रामकृष्ण परमहंस 
  • शारदा देवी 
  • विवेकानन्द 


दक्षिणेश्वर काली मंदिर के आसपास दर्शनीय स्थल (Attractions Around Dakshineswar Kali Temple)

बेलूर मठ (Belur Math)

बेलूर मठ
बेलूर मठ 
गंगा नदी के तट पर स्थित बेलूर मठ रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है। मठ में स्थित श्री रामकृष्ण परमहंस जी का अद्भुत मंदिर, जिसकी शान्ति और सुंदरता कुछ देर वहां समय व्यतीत करने के लिए मस्तिष्क को प्रेरित करने लगती है। रामकृष्ण मिशन धर्म, आध्यात्म और दर्शन से जुडी आने पुस्तकें प्रकाशित करती है जिसके किये उनका स्वयं का पब्लिकेशन हाउस भी है। जिसकी पुस्तकें सरलता  मिल जाएँगी। 

आद्यपीठ मंदिर (Adyapith Mandir)

आद्यपीठ मंदिर
आद्यपीठ मंदिर 

९०० मीटर की दूरी पर स्थित सफेद संगरमर से बना हुआ आद्यपीठ मंदिर एक अद्भुत दर्शनीय स्थल है। जिसमें ऊर्ध्वाधर स्तम्भ में तीन प्रकार की मूर्तियां व्यवस्थित है। प्रवेश करते ही आप को स्वामी रामकृष्ण परमहंस उसके ऊपर जग अधिष्ठाती माँ भगवती का काली रूप तथा सबसे ऊपर राधा रानी और भगवान कृष्ण की मुर्तियों के मनोरम दर्शन प्राप्त होते है। 

निष्कर्ष (Conclusion)

दक्षिणेश्वर काली मंदिर और उसके आस पास की यात्रा उनके लिए एक यादगार अनुभव बनती है, जो एक विलुप्त सी होती हुई बंगाल की वास्तुकला को देखना पसंद करते है। मंदिर का प्रबंधन उत्कृष्ट कोटि का है। इसमें कोई भी मत भेद नहीं है क्योकि जब आप मंदिर के द्वार पर पहुंचते है तो मंदिर की स्वछता और दर्शन की पंक्ति में न होने वाली किसी भी प्रकार की धक्का मुक्की आपको देवी की दिव्य आभा का प्रमाण प्रस्तुत करती है। यदि आप देवी के दर्शन करना चाहते है और किसी भी प्रकार की जानकरी प्राप्त करना चाहते है तो Comment बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताये।  

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