उग्रतारा मन्दिर असम राज्य के गुवाहाटी जिले के लतसिल शहर में जुरपुखुरी जलकुण्ड के पश्चिमी किनारे पर स्थित एक देवी मन्दिर या शक्ति मन्दिर है। माना जाता है, की देवी उग्रतारा बौद्ध धर्म में भी पूजित है तथा उन्हें वहां टीका-कान्ता या एक जटा के नाम से वर्णित किया गया है। ऐसा स्थानीय मान्यता है की स्थल पर जहां देवी सती की नाभि गिरी थी उसी स्थल पर इस देवी उग्रतारा का मन्दिर बनाया गया था।
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प्रवेश द्वार देवी उग्रतारा मन्दिर |
उग्र तारा मन्दिर से जुडी दन्तकथा
कलिका पुराण के अनुसार कामाख्या शक्ति पीठ और उसके आसपास के क्षेत्र में छः अन्य शक्ति पीठ है। इन्ही पिठों में से एक की देवी दिक्कारा वासिनी है जिनके दो ज्ञात स्वरुप है - देवी तीक्ष्णकान्था और देवी ललिताकान्था। देवी तीक्ष्णकान्था की देह का रंग काला व उदर विशाल हैं। उनके इस रूप को देवी उग्र तारा या एकजाता कहा जाता है। देवी दिक्कारा वासिनी के ऐसी रूप को समर्पित गुवाहाटी में यह शक्ति पीठ है। वही देवी ललिताकान्था का रूप अत्यंत सौम्य है, उन्हें ताम्रेश्वरी भी कहा जाता है।
एक अन्य स्थानीय मान्यता के अनुसार, एक बार नरक के स्वामी यमराज ने बह्मा जी से प्रार्थना की, कि कामरुप क्षेत्र की पवित्रता के कारण उस क्षेत्र में मरने वाला अत्यंत व्यभिचारी और दुराचारी मानव भी नरक में नहीं आ रहा है जिससे संतुलन बिगड़ रहा है। अतः इसे रोकने का कोई उपाय करे। इस पर ब्रह्मा जी उन्हें लेकर विष्णु जी के पास गए ताकि वह इस समस्या का समाधान कर सके परन्तु ब्रह्मा जी की ही तरह वह भी इसका समाधान न ढूंढ पाने कारण वह यमराज और ब्रह्मा जी को साथ में लेकर समाधान के लिये देवाधिदेव महादेव के पास गए। तब भगवान शिव ने देवी उग्रतारा को कामरूप क्षेत्र से भगाने के लिए सेना के साथ भेजा। मार्ग में घटित अप्रत्याशित घटना ने उन्हें वामाचार साधना की देवी बना दिया।
उग्र तारा मन्दिर का निर्माण
१७२५ में अहोम शासक शिव सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान जुरपुखुरी जलकुण्ड और मन्दिर का निर्माण करवाया। असम में आये विनाशकारी भूकम्प ने जलकुण्ड को तो क्षति नहीं पहुंची परन्तु मन्दिर का एक हिस्सा पूरी तरह नष्ट हो गया। जिसे स्थानीय लोगो की सहायता से पुनः बनाया गया।
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देवी की गर्भगृह में देवी उग्रतारा की कोई मूर्ति नहीं है। एक जल से भरें छोटे से गड्ढे को देवी का स्वरुप माना जाता है। मन्दिर परिसर में देवी के मन्दिर के निकट ही भगवान शिव का देवालय है। दोनों मन्दिर के पीछे ही जलकुंड है।
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उग्र तारा मन्दिर में की जाने वाली पूजा अर्चना और समारोह
देवी उग्र तारा की सभी पूजा माँ कामाख्या की पूजा की ही तरह की जाती है। देवी को मांस, मदिरा, मोदक, नारियल और गन्ना भोग में अर्पित किया जाता है। मन्दिर में मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा का उत्सव मन्दिर का प्रमुख उत्सव है। जिसमे बड़ी संख्या में देवी के भक्त मन्दिर में पूजा के लिए पहुंचते है। देवी की प्रसन्नता के लिए मन्दिर में भैसों, बकरियों, कबूतरों और बत्तखों की बलि देने की प्रथा है। मन्दिर में देवी के अन्य अवतारों से जुड़े पर्वों को भी विधिवत रूप से मन्दिर में मनाया जाता है।
उग्र तारा मन्दिर में दर्शन करने का सबसे उत्तम समय
उग्र तारा मन्दिर में भक्तों का ताँता तो पूरे वर्ष ही लगा रहता है परन्तु जाने का सबसे बेहतरीन समय दुर्गा पूजा का है जब मन्दिर पूरी तरह से रोशनी के समुद्र में डूबा हुआ सा होता है। दूर दूर से देवी के भक्त इस समय देवी की पूजा और अर्चना के लिए मन्दिर में आते है और होने वाली देवी पूजा का आनंद लेते है। इस दौरान देवी को शान्त और सौम्य रखने के लिए अनेकों भैसों की बलि दी जाती है।
उग्र तारा मन्दिर कैसे पंहुचा जाये?
उग्र तारा मन्दिर पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा गुवाहाटी का गोपीनाथ बोरदोलोई हवाई अड्डा हैं। जहा से मन्दिर की दूरी २३ किमी है। इसी प्रकार गुवाहाटी रेलवे स्टेशन जो देश के विभिन्न शहरों व असम के शहरों से जुड़ा हुआ है, से मंदिर की दूरी मात्र २ किमी के लगभग है। जिससे मन्दिर पहुंचना बहुत ही आसान है। परिवहन के लिए राज्य सरकार की बसें और ट्रेवल्स की बसें व किराये पर उपलब्ध दो पहिया और चार पहिया वाहन और ऑटो व टैक्सियां उपलब्ध है।
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