रुद्रेश्वर मन्दिर असम राज्य के गुवाहाटी जिले के ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर रुद्रेश्वर गांव में स्थित एक शिव मन्दिर है। अहोम-मुगल स्थापत्य कला की मिश्रित शैली में निर्मित रुद्रेश्वर मन्दिर, अहोम शासक प्रमत्त सिंह के द्वारा अपने स्वर्गीय पिता स्वर्गदेव रूद्र सिंह की स्मृति में निर्मित किया था। जिसमें उन्होंने इस मन्दिर को मुगल समाधि की नकल जैसा बनाने का प्रयास किया है।
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रुद्रेश्वर शिवलिंग |
रुद्रेश्वर मन्दिर का इतिहास
राजा स्वर्गदेव रुद्रसिंह के शासनकाल में अपने क्षेत्र का विस्तार गंगा नदी के क्षेत्र तक करने के प्रयोजन से लगभग चार लाख सैनिकों की एक फौज एकत्र की। क्योकि उस समय बंगाल पर मुस्लिम शासकों का शासन था। उनके इस विस्तार और मुस्लिम शासकों को प्ररास्त करने के उद्देश्य में उनका सहयोग कछार के राजा और वर्तमान मेघालय के जयंतिया के राजा ने दिया। किन्तु इस पूरी सेना के प्रयास निष्फल हो गया क्योंकि जब तक युद्ध के लिए सब प्रकार से तैयारियां हो पाती तब तक राजा स्वर्गदेव रुद्रसिंह की तबीयत खराब हो गयी। और अगस्त १७१४ ईस्वी में गुवाहाटी में उनके अस्थायी शिविर में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके शरीर को थाई-अहोम प्रथा के अनुसार दफनाने के उद्देश्य से वर्तमान शिवसागर जिले के चराईदेव ले जाया गया। कुछ स्रोत इस विचार को अस्वीकार करते हुए बताते है की उत्तरी गुवाहाटी में उनका हिन्दू रीतिरिवाजों के अनुरूप अन्तिम संस्कार किया गया था। जबकि कुछ मानते है वहा सिर्फ उनकी छोटी उंगली को जलाया गया था।
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उनके दूसरे बेटे प्रमत्त सिंह ने राजगद्दी पर बैठने के उपरांत अपने पिता की स्मृति में जिस स्थान पर उनकी मृत्यु हुई थी उसी स्थल पर एक मन्दिर निर्माण का निश्च्य किया। १७४९ ईस्वी में मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ जिसके बाद राजा प्रमत्त सिंह ने मन्दिर में एक शिवलिंग की स्थापना करते हुए उसका नाम रुद्रेश्वर शिवलिंग रखा। चूंकि शिवलिंग का नाम रुद्रेश्वर शिवलिंग था इसलिए भगवान शिव के इस मन्दिर का नाम रुद्रेश्वर मन्दिर और उस स्थल का नाम रुद्रेश्वर पड़ा।
रुद्रेश्वर मन्दिर का आर्किटेचर
मन्दिर का निर्माण अहोम और मुगल वास्तुशास्त्र को मिलकर किया गया था। जिसमें मन्दिर का डिजाइन मुगल समाधि की नकल है। निर्माण के समय दैनिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए व भण्डारण के लिए भूमिगत कक्षों का निर्माण किया जिसके द्वार मन्दिर में सामने की ओर उपस्थित थे। भूमिगत कक्षों के ऊपर ही उस विशेष कक्ष निर्माण किया गया है, जिसमें भगवान शिव अपने लिंगम रूप में उपस्थित है। इस कक्ष को मणिकुट के नाम से जाना जाता है। जिसका शाब्दिक अर्थ है - गहना झोपड़ी। मन्दिर की संरचना के निर्माण में ड्रेनेज और एयर वेंटिलेशन का पूरा ध्यान रखा गया था। मन्दिर को चारो ओर से ईंट की दीवार से संरक्षित किया गया था। मन्दिर में अहोम कल के दो शिलालेख पाए गए थे जो उनके द्वारा किये गए निर्माण में उनके योग्यदान का वर्णन करता है।
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मन्दिर के पास ही एक जलकुण्ड जिसे कोंवारी पुखुरी कहा जाता है स्थित है। जिसका प्रयोग अहोम राजा रुद्रसिंह की रानियों और राजकुमारियों के द्वारा स्नान और जल क्रीड़ा के लिए किया जाता था। कोंवारी पुखुरी से पूर्व दिशा में दो अन्य जलकुंड है जिसका प्रयोग सिपाहियों द्वारा किया जाता था। इस जल कुंड को हिलोदरी पुखुरी कहा जाता है। हिलोदरी का शाब्दिक अर्थ है - बन्दूकधारी या तोपखाने में नियुक्त सैनिक।
अहोम साम्राज्य के अंत और असम में ब्रिटिश शासन के उदय के साथ ही मन्दिर अपनी अधिकांश भूमि और अन्य विशेषाधिकारो से वंचित हो गया। १९५० में आये तीव्र भूकम्प ने इस मन्दिर को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया। स्थानीय लोगो द्वारा मन्दिर में पूजा व समारोहों के आयोजन के लिए पुनः मणिकुट व ढांचे का निर्माण किया गया।
वर्तमान समय में मन्दिर के संक्षरण का कार्य भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने अधिकार में ले लिया। तथा मन्दिर के जीर्णोद्धार में असम सरकार भी पीछे नहीं है उन्होंने भी इसमें अपना अतुलनीय सहयोग प्रदान किया है। परन्तु इन सबके फलस्वरूप भी मन्दिर का निर्माण कार्य अभी बाकी है।
रुद्रेश्वर मन्दिर में दर्शन का समय
मन्दिर भगवान शिव के दर्शन के लिए प्रातः ६:०० बजे से रात्रि ९:०० बजे तक खुला रहता है।
रुद्रेश्वर मन्दिर आने का सबसे बढ़िया समय
यूँ तो पूरा असम ही गर्मी और बरसात के समय में बिल्कुल भी यात्रा के लिए अनुकूल समय नहीं है। अतः सबसे बढ़िया समय शरद ऋतू ( सितम्बर से फरवरी ) का है जिस समय तापमान औसतन दिन में २७ डिग्री तथा रात्रि में १५ डिग्री तक रहता है।
रुद्रेश्वरमन्दिर में दर्शन के पूर्व क्या करें या क्या न करें
मन्दिर में दर्शन के लिए जाते समय पारम्परिक वेशभूषा का पालन करें। अर्थात पुरुष भक्त शर्ट पैंट, धोती या पायजामा के साथ अधोवस्त्र धारण करें वही महिला भक्त साड़ी अथवा सलवार कुर्ता का चुनाव कर सकती है।
- यह नियम विदेशी पर्यटकों के लिए भी मान्य है।
- मन्दिर में दर्शन के लिए जाने से पूर्व सन्ना कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- प्राचीन पूजा पदतियो को सम्मान दे।
- मन्दिर में तथा उसके परिसर में किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित है अतः इस नियम का सख्ती से पालन करे।
- मन्दिर तथा उसके परिसर में इधर उधर कूड़ा न फैलये।
रुद्रेश्वर मन्दिर में कैसे पहुँचे?
हवाई मार्ग के द्वारा
सबसे निकटतम हवाई अड्डा गुवाहाटी में स्थित लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। जो देश के प्रत्येक छोटे बड़े हवाई अड्डे से व्यवस्थित रूप से जुड़ा हुआ है। जहा से मंदिर की दूरी लगभग ३० किमी के आसपास पड़ती है।
रेल मार्ग के द्वारा
सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन गुवाहाटी में स्थित गुवाहाटी रेलवे स्टेशन है। जो देश के मुख्य रेलवे स्टेशनों के साथ ही साथ असम के अन्य शहरों से मीटर और ब्रॉड गेज के द्वारा व्यवस्थित रूप से जुड़ा हुआ है। जहा से मंदिर की दूरी लगभग ३० किमी के आसपास पड़ती है।
सड़क मार्ग के द्वारा
सबसे निकटतम बस स्टेशन शांतिपुर बस स्टॉप है जहा से मन्दिर की दूरी २१ किमी के आसपास है। विकल्प के र्रोप में आप मन्दिर के लिए मिलने वाली किराये पर टैक्सी या ऑटो भी ले सकते है।
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