वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने।।
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२५ मीटर ऊँची भगवान शिव की प्रतिमा |
भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान को अलंकृत करता हुआ, श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर गोमती द्वारका और बैत द्वारका के मध्य मार्ग में स्थित है। नागेश्वर मन्दिर के पीठासीन देवता जिनकी नागों के ईश्वर, नाग जो हमेशा से भगवान शिव के कण्ठ की शोभा है, के रुप में उपासना की जाती है। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन विष ( आध्यत्मिक अर्थ - किसी भी प्रकार की नकारात्मकता ) तथा विष जनित रोगों से मुक्ति प्रदान करता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का पौराणिक महत्व
द्वारिका नगरी इस मन्दिर से दूरी १८ किमी के लगभग है। ऐसी प्राचीन मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण, भगवान शिव का रुद्राभिषेक यही पर किया करते थे। जिससे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्राचीनता का ज्ञान होता है। बाद में आदि गुरु शंकराचार्य के द्वाराकलिका पीठ पर अपने पश्चिमी मठ को स्थापित किया।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की पुराणों में वर्णित कथा
पहली कथा - प्राचीन काल में देवी पार्वती के वरदान के मद में चूर एक राक्षसी जिसका नाम दारुका था। उसे देवी पार्वती ने एक वन के देखभाल की जिम्मेदारी दी थी। इसलिए वह जहा जाती थी अपने साथ उस वन को भी ले जाती थी। उसका पति राक्षस दारुक बहुत बलशाली था। जो यज्ञ और ऋषि मुनियो द्वारा की जाने वाली पूजा को नष्ट करता रहता था। एक बार दारुक ने धर्मात्मा और सदाचारी शिवभक्त सुप्रिय वैश्य का अपरहण कर अपनी पुरी में ले जाकर कारागार में बंद कर दिया। कारागार में भी उसकी भक्ति में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं पड़ा अपितु उसने कारागार में बंद अन्य बंदियों को भी उसने शिव भक्ति के लिए जागरूक कर दिया। इसकी सूचना जैसे ही दारुक को मिली, उसने सुप्रिय और बंदियों को मारने के लिए आदेश दे दिया।
दारुक के आदेश को सुनकर भी सुप्रिय विचलित नहीं हुआ तथा बिना डरे उन्होंने मदद के लिए भगवान शिव को पुकारना प्रारम्भ कर दिया। भक्त की प्रार्थना को सुन कर भगवान शिव एक बिल से प्रकट हो गए तथा उनके साथ ही चार दरवाजों का एक सुन्दर मन्दिर प्रकट हुआ। जिसके मध्य भाग में एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकाशित हो रहा था उसके चारों तरफ शिव परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे। सुप्रिय ने सभी का पूजन किया तथा भगवान शिव ने उसकी पूजा से प्रसन्न होकर उसे पाशुपतास्त्र प्रदान किया। जिससे उसने दारुक राक्षस और उसकी सेना का अंत किया।
शिवभक्तों के प्रिय ज्योतिर्लिंग स्वरुप भगवान शिव नागेश्वर कहलाये तथा देवी पार्वती नागेश्वरी के रुप में दारुक की इस नगरी जिसे दारुका वन कहा जाता था में स्थापित हो गए।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग |
दूसरी कथा - वामन पुराण के अनुसार, बौने ऋषियों का समूह जिन्हे बालाखिल्या कहा जाता था ने दीर्घ अवधी तक दारुकवन में भगवान शिव की आराधना की। उनकी भक्ति की और धैर्य की परीक्षा के लिए भगवान शिव एक नग्न तपस्वी का रूप धारण करके जिसने सिर्फ नाग को धारण किया हुआ था। उस स्थल पर आ गए जहां पर बालाखिल्या तपस्या कर रहे थे। नग्न तपस्वी के इस रुप को देख कर ऋषि पत्निया उनकी और आकर्षित हो गयी तथा अपने अपने पतियों को छोड़ कर उस नग्न तपस्वी के पीछे पीछे चलने लगी। इस पर वे ऋषि अत्यधिक चिंतित तथा क्रोघित हो गए और उन्होंने अपने धैर्य पर अपना नियंत्रण खो दिया। तथा उनके श्राप के फलस्वरुप उस नग्न तपस्वी का लिंग पृथ्वी पर गिर गया। जिससे पूरी सृष्टि में एक विशेष प्रकार की विनाशकारी हलचल उत्पन्न हो गयी। सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से प्रार्थना की वे अपना लिंग वापस ले ले अन्यथा सृष्टि का विनाश निश्चित है। भक्तो के रक्षक महादेव ने उनकी प्रार्थना को मान देते हुए अपना लिंग वापस ले लिया। तब बालाखिल्या ऋषि के अनुरोघ पर भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग का रुप धारण कर दारुकवन में निवास करने का वरदान दिया।
भक्ति के सन्मुख नतमस्तक नागेश्वर भगवान
नामदेव नाम के भगवान शिव के एक भक्त थे। वह उस समय के एक मात्र संत थे, जिन्होने भगवान शिव को अपने गीत समर्पित किये थे। एक दिन वह भगवान नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने भजन गा रहे थे। अन्य भक्त जो उनके पीछे खड़े थे। उन्हें भगवान के दर्शन नहीं हो पा रहे थे। इस पर उन्होंने नामदेव से एक तरफ हटने के लिए कहा। इस पर नामदेव ने उन लोगो से उस दिशा को बताने का अनुरोध किया जिधर वे खड़े हो सके। पीछे खड़े क्रोधित भक्तो ने उन्हें उठाकर दक्षिण दिशा में छोड़ दिया। तब भक्तो ने देखा ज्योतिर्लिंग का मुख दक्षिण दिशा की और सामना कर रहा था जबकि गोमुगम पूर्व की ही ओर था। अपने भक्त की भक्ति का मान रखने के लिए भगवान उसी दिशा में घूम गए जिस दिशा में उनका भक्त था। तब से आज तक शिवलिंग का मुख दक्षिण दिशा की ही ओर है।
नागेश्वर मन्दिर का मुख्य आकर्षण
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग उन खूबसूरत मन्दिरों में से एक है। जिसके मन्दिर परिसर के निकट ही २५ मीटर ऊंचाई की पद्यमासन मुद्रा में भगवान शिव की एक मूर्ति स्थापित की गयी है। जिसके आसपास पक्षियों के उड़ते हुए झुण्ड प्राकृतिक सुन्दरता को बड़ा देता है। मन्दिर के गर्भगृह में स्थित ज्योतिर्लिंग की बात करें तो यह ज्योतिर्लिंग सामान्य ज्योतिर्लिंगों से थोड़ा बड़ा है। जिसके ऊपर चांदी की परत चढाई गयी है। नागेश्वर शिवलिंग पत्थर से बना हुआ है, जिसे द्वारका शिला के नाम से जाना जाता है, जिस पर छोटे चक्र होते है। द्वारका शिला की विशेषता है कि वह ३ मुखी रुद्राक्ष के आकार का होता है। ज्योतिर्लिंग के ऊपर चांदी का नाग भी बना हुआ है।
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द्वारका शिला से बना हुआ नागेश्वर शिवलिंग |
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का समय
नागेश्वर मन्दिर प्रातः ६:०० बजे से अपराह्न १२:३० बजे तक तथा सायं ५:०० बजे से रात्रि ९:०० बजे तक खुला रहता है। जिनमें किये जाने वाले अनुष्ठान इस प्रकार है -
- प्रातः आरती - प्रातः ५:०० बजे
- अभिषेकम - प्रातः ६:०० बजे और अपराह्न १२:३० बजे
- दोपहर आरती - अपराह्न १२:०० बजे
- श्रृंगार दर्शन - सायं ४: बजे से सायं ४:३० बजे तक
- सायं आरती - सायं ७ बजे से सायं ७:३० बजे तक
- रात्रि आरती - रात्रि ९:०० बजे से रात्रि ९:३० बजे तक
विशेष :- इन सेवाओं और अनुष्ठानों के समय में विशेष दिनों में परिवर्तन किया जा सकता है।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर
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नागेश्वर मन्दिर में की जाने वाली विशेष पूजा
मन्दिर में भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए वहां दैनिक अनुष्ठानो के अतिरिक्त कुछ विशेष पूजा का भी प्रावधान है। जो इस प्रकार है -
रुद्राभिषेक - यह भगवान शिव के रुद्र रुप को शान्त करने हेतु की जाने वाली सबसे मुख्य पूजा है। जिसमें दूध, घी, दही, मधु और शक्करा को मिला कर पंचामृत बनाया जाता है तथा पंचामृत और जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। इस अभिषेक को करने वाला समस्त सांसारिक भोगों को प्राप्त करता है।
लघुरुद्र पूजा - यह अभिषेक स्वास्थ्य और धन से सम्बंधित समस्याओं का निवारण करने हेतु इस पूजा को किया जाता है।
💥 मन्दिर में की जाने वाली किसी भी प्रकार की पूजा व दैनिक अनुष्ठानों में पुरुषों को धोती पहनना अनिवार्य है। जब आप भगवान श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन प्राप्त कर लेते है तो आप को दर्शन के उपरान्त ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति तथा उसकी महत्ता से जुडी हुई कथा को अवश्य ही सुनना चाहिए, तभी दर्शन से मिलने वाले पुण्यों का फल प्राप्त होता है।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर प्रवेशद्वार |
नागेश्वर मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य पर्व
प्रत्येक शिव तीर्थ की ही भांति मन्दिर में भी सोमवार, प्रदोष, अमावस्या को पाक्षिक और माह के अनुसार मानाया जाता है। परन्तु इसके अतिरिक्त श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में महाशिवरात्रि, श्रावण मास और श्रावण मास का प्रत्येक सोमवार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस समय पूरा मन्दिर परिसर रुद्र मन्त्रों के जाप से गूंजता रहता है। जिसमे आध्यात्मिक आभा का अनुभव करने के लिए देश के विभिन्न कोनों से श्रदालु भक्त द्वारका के श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंचते है।
कैसे पहुँचे भगवान शिव के नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए
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हवाई मार्ग द्वारा |
द्वारका के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा गुजरात के जामनगर में स्थित हवाई अड्डा है। जिसके लिए मुम्बई और दिल्ली से नियमित उड़ाने उपलब्ध है। जामनगर हवाई अड्डे से मन्दिर की दूरी लगभग १३८ किमी है। जिसे हवाई अड्डे के बाहर उपलब्ध टैक्सी से बड़ी ही सरलता से तय किया जा सकता है।
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रेल मार्ग द्वारा
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका में स्थित द्वारका रेलवे स्टेशन है जो नियमित ट्रेनों के माध्यम से देश के विभिन्न छोटे बड़े स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। स्टेशन के बहार निकलते ही ऑटो व टैक्सी उपलब्ध है। जो आपको अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए एक बेहरतीन साधन सिद्ध होते हैं।
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सड़क मार्ग के द्वारा |
गुजरात के विभिन्न शहर नियमित बस सेवा के द्वारा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। परन्तु यदि आप गुजरात के अतिरिक्त किसी भी अन्य राज्य के शहरों से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए पहुंचना चाहते है तो आप को सबसे पहले राजकोट पहुंचना होगा। जहां से ज्योतिर्लिंग की दूरी २२५ किमी के लगभग है। जिसके लिए राजकोट से बस, टैक्सी और ट्रेन की सुविधा बड़ी ही आसानी से मिल जाती है।
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