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Kashi Vishwanath temple (काशी विश्वनाथ मंदिर)

भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित वाराणसी Kashi Vishwanath Temple ( काशी, बनारस के नामों से भी वर्णित ) सृष्टि का सबसे जीवित प्राचीनतम शहर, जो जम्बूखंड की सांस्कृतिक राजधानी है। इस वाराणसी शहर के केन्द्र में माया के बंधनो से मुक्ति प्रदान करने वाला प्राचीन स्तम्भ रुपी ज्योतिर्लिंग मन्दिर, जिसे बाबा विश्वनाथ मन्दिर, विश्वेश्वर मन्दिर आदि नामो से जाना जाता है, कि महिमा का वर्णन वेद, पुराण, उपनिषद, ऋषि-मुनि, देव तक कर पाने में सक्षम नहीं है। यह मध्य गंगा घाटी में पहली प्रमुख शहरी बस्तियों में से एक थी।

असि सम्भेदतोगेन काशीसंस्थोऽमृतो भवेत्।
देहत्यागोऽत्रवैदानं देहत्यागोऽत्रवैतप:॥

स्कंदपुराण (2/53/7) में वर्णित निरन्तर अपनी आत्मा के ही साथ क्रीड़ा करने वाले, सदा आत्मा के ही साथ योग स्थापित रखने वाले तथा अपनी आत्मा में ही संतृप्त रहने वाले व्यक्ति को योग की सिद्धि प्राप्त करने में विलम्ब नहीं लगता। वह सिद्ध उससे कभी दूर नहीं होता।

पवित्र kashi vishwanath temple का ज्योतिर्लिंग न केवल भारतीय अपितु विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। जिन्होंने सनातन और अध्यात्म के मार्ग का चुनाव किया है। 


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

पुराणों में Kashi Vishwanath Temple का ज्योतिर्लिंग

मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका घाट 

'ब्रह्म’ का ना तो कोई नाम है और न रूप, इसलिए वह मन, वाणी आदि इन्द्रियों का विषय नहीं बनता है। वह तो सत्य है, ज्ञानमय है, अनन्त है, आनन्दस्वरूप और परम प्रकाशमान है। वह निर्विकार, निराकार, निर्गुण, निर्विकल्प तथा सर्वव्यापी, माया से परे तथा उपद्रव से रहित परमात्मा ..कल्प के अन्त में अकेला ही था।

 कल्प के आदि में उस परमात्मा के मन में ऐसा संकल्प उठा कि 'मैं एक से दो हो जाऊँ'। यद्यपि वह निराकार है, किन्तु अपनी लीला शक्ति का विस्तार करने के उद्देश्य से उसने साकार रूप धारण कर भगवान शिव ने अपनी शक्ति और आभा के साथ पंचकोशी नाम के एक शहर की स्थापना की। इस पंचकोशी शहर में भगवान शिव ने एक सुंदर पुरुष की रचना की, इस पुरुष का नाम उन्होंने विष्णु रखा। इस पुरुष ने अनेको वर्षों तक उसी स्थल पर भगवान शिव की आराधना की। जिसके परिणाम स्वरुप पंचकोशी में अनेक जलधाराओं का निर्माण हो गया। 

इन जलधाराओं को देखकर विष्णु अत्यधिक विस्मित हो गए तथा उन्होंने जैसे ही अपना शीश झुकाया, उनके कान से निकल कर मुक्तामय (मणिमय) कुण्डल गिर गया। जिस जगह पर यह मुक्तामय कुण्डल गिरा था उस स्थल का नाम मणिकर्णिका पड़ा। भगवान शिव ने तब अपने त्रिशूल में पंच कोशी के मणिकर्णिका जल से भरे क्षेत्र को ग्रहण कर लिया। तदोपरांत विष्णु की नाभि से एक कमल के पुष्प का जन्म हुआ जिस पर एक पुरुष ब्रह्मा विराजित थे। भगवान शिव ने ब्रह्मा को पचास करोड़ योजन के क्षेत्र पर सृष्टि की स्थापना का आदेश दिया तथा विष्णु को उनके द्वारा रचित सृष्टि के पालन का कार्य दिया। अपने कर्मों और उसके बन्धन से लोगों को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपनी पंचकोशी नगरी को ब्रह्मा जी की इस सृष्टि से अलग कर लिया।

 तथा मणिकर्णिका जल से भरा क्षेत्र जिसे उन्होंने त्रिशूल में ग्रहण कर लिया था को बाहर निकाल कर बाहर रख दिया तथा स्वयं उद्धारकर्ता मुक्तिदाय ज्योतिर्लिंग रुप में उसी स्थान पर स्थित हो गए। चूंकि काशी सृष्टि से पहले भी थी और अंत तक रहेगी इसलिए इसे अविमुक्तेश्वर क्षेत्र और ज्योतिर्लिंग को अविमुक्तेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।  

Kashi Vishwanath Temple का इतिहास 

Kashi Vishwanath Temple का इतिहास समय में विनाश और पुर्न निर्माण के इर्द गिर्द घूमता रहा है। ११९४ में पहली बार कुतुब-उद-दीन ऐबक की सेना के द्वारा मन्दिर को नष्ट किया गया था। जिसका पुर्न निर्माण इल्तुतमिश के शासन के दौरान किया गया। जिसे बाद में फिर से सिकंदर लोदी के शासनकाल में फिर से ध्वस्त कर दिया गया। अकबर के शासन काल में मन्दिर को एक बार फिर से राजा मान सिंह के द्वारा बनवाया गया। जिसे बाद में मुग़ल शासक औरंगजेब ने नष्ट कर दिया किन्तु कच्छ की रानी के कहने पर की मन्दिर का पुनः निर्माण करवाए तो उसने अपने धार्मिक विश्वास के कारण वह पर मस्जिद का निर्माण करवाया तथा मन्दिर में स्थित ज्ञानवापी कूप के नाम पर मस्जिद को ज्ञानवापी नाम दिया। 

Kashi Vishwanath Temple की वास्तु सुंदरता 

वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मन्दिर हिंदुओं के प्राचीन मन्दिरों में से एक है, जो कि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। जिसमे अनन्त काल से भगवान शिव के ज्योतिर्लिङ्ग स्वरूप की पूजा होती है। मन्दिर में मुख्य देवता का शिवलिंग विग्रह 60 सेंटीमीटर (24 इंच) लंबा और 90 सेंटीमीटर (35 इंच) परिधि में एक चांदी की वेदी में रखा गया है। 

मुख्य मन्दिर एक चतुर्भुज आकार में निर्मित है और अन्य देवताओं के मन्दिरों से घिरा हुआ है। परिसर में विभिन्न छोटे-छोटे मन्दिर जिनके देवता काल भैरव, कार्तिकेय, अविमुक्तेश्वर, विष्णु, गणेश, शनि, शिव और पार्वती है, स्थित हैं। मन्दिर के उत्तर में एक छोटा कुआं है जिसे ज्ञानवापी कूप कहा जाता है। ज्योतिर्मय शिवलिंग काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भ द्वार के भीतर जाते ही चाँदी के ठोस हौदे के बीच सोने की गोरी पीठ पर ज्योतिर्मय काशी विश्वेश्वर लिंग का अलभ्य दर्शन मिलता है। श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर के परिसर के भीतर ही नहीं अपितु बाहर और भी अनेक देव- मूर्तियाँ हैं। विश्वनाथ मन्दिर के पश्चिम में बने मण्डप के बीचो- बीच भगवान वेंकटेश्वर की लिंग मूर्ति है। दक्षिण ओर के मन्दिर में अविमुक्तेश्वर लिंग है। सिंह द्वार के पश्चिम में सत्यनारायणादि देव विग्रह हैं। सत्यनारायण मंदिर के उत्तर में शनेश्वर लिंग है। इनके समीप दण्डपाणीश्वर पश्चिम के मण्डप में ही हैं। इसके उत्तर एक मन्दिर में जगत्माता पार्वती देवी की दिव्य मूर्ति है। इसी गलियारे के अंतिम कोने में श्री विश्वनाथ जी के ठीक सामने माँ अन्नपूर्णा विराजमान हैं।


काशी विश्वनाथ मन्दिर कॉरिडोर
काशी विश्वनाथ मन्दिर कॉरिडोर
Image Source - Google by Navbharat Times 

इतिहास के पन्नों को पलटने पर ज्ञात होता है कि kashi vishwanath temple का जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र के द्वारा करवाया गया था। सन 1777-80 में औरंगजेब द्वारा नष्ट मन्दिर इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मन्दिर का अपने पूर्व स्थल से हट कर पुनः निर्माण करवाया गया। 

बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण पत्रों से मन्दिर के शिखरों को सुसज्जित करवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी के मंडप का निर्माण करवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी को देवताओं का वास स्थान माना जाता है। यहां बाबा विश्वनाथ के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण मन्दिरों की भी स्थापना समय-समय पर की गई जिनका बनारस के जनमानस के दिलों  में अत्यंत पवित्र स्थान है। जिनमें से कई में बाबा विश्वनाथ के दर्शन उपरांत दर्शन करना शुभ एवं अनिवार्य माना जाता है। 

श्री काशी विश्वनाथ धाम में माता अन्नपूर्णा का मंदिर भी स्थित है। जो अत्यंत महत्वपूर्ण मन्दिर है। दिनांक 15-11-2021 को कनाडा के संग्रहालय से प्राप्त माता अन्नपूर्णा की मूर्ति जो 108 वर्ष पहले भारत से वहां ले जाई गयी थी,  देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के अथक प्रयासो से भारत वापस लाई गई, जिसकी स्थापना प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने 15-11-2021 को श्री काशी विश्वनाथ धाम में की। 

श्री काशी विश्वनाथ धाम का नव भव्य स्वरूप

श्री काशी विश्वनाथ धाम का मुख्य आकर्षण मन्दिर परिसर के अतिरिक्त निर्मित भवनों तथा आध्यात्मिक व धार्मिक महत्व की संरचनाएं हैं। कॉरिडोर निर्माण / विस्तार के दौरान आसपास के घरों के अंदर स्थित 27 मन्दिरों को उनके विग्रह के सहित प्राप्त हुए। इन सभी 27 मन्दिरों का पुरातन भव्यता के साथ जीर्णोद्धार करके एक अमूल्य  मणिमाला की तरह पुनर्स्थापित किया गया है। निर्मित नवीन परिसर की विशेषताएं निम्न है –

काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मन्दिर 

मन्दिर परिसर 

श्री काशी विश्वनाथ धाम का मुख्य आकर्षण मन्दिर परिसर है जिसके प्रदक्षिणा पथ में चार भव्य द्वारों का निर्माण किया गया है। वास्तुकला के दृष्टिगत काशी की वास्तु कला तथा आध्यात्मिक भाव को समाहित करते हुए परिसर को मेहराब, बेलबूटे, स्तंभों की बनावट, प्रदक्षिणा मार्ग तथा प्रस्तर की जालियों से सुसज्जित किया गया है। 

वाराणसी गैलरी 

इस भवन का क्षेत्रफल 375 वर्ग मीटर है। उक्त भवन मल्टीपरप्स हॉल और सिटी म्यूजियम के बीच करुणेश्वर महादेव मन्दिर के पास स्थित है। उक्त भवन की आंतरिक दीवारों पर चित्रों के माध्यम से आध्यात्मिक व धार्मिक आख्यानों का उल्लेख किया गया है।

सिटी म्यूजियम 

इस भवन का क्षेत्रफल 1143 वर्ग मीटर है, जो वाराणसी गैलरी व मुमुक्षु भवन के बीच में स्थित है। यह भवन यात्रियों को प्राचीन वस्तुओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने की सुविधा के दृष्टिगत बनाया गया है। 

मुमुक्षु भवन 

उपरोक्त भवन 1161 वर्गमीटर में निर्मित है जो मन्दिर चौक के भव्य द्वार के ठीक बाद स्थित है। इसे आने वाले सभी वृद्ध यात्रियों व अस्वस्थ लोगों की देखभाल के लिए निर्मित किया गया है।
मंदिर प्रवेश द्वार
मंदिर प्रवेश द्वार 

वैदिक केंद्र 

यह भवन 986 वर्गमीटर में निर्मित है। भवन का निर्माण आध्यात्मिक प्रदर्शनी, सभा / समारोह आयोजित करने हेतु किया गया है। 

टूरिस्ट फैसिलिटी सेंटर 

यह भवन 1061 वर्गमीटर में निर्मित है। भवन के निर्माण का उद्देश्य मणिकर्णिका घाट पर लकड़ियों का एक हाल बना कर व्यवस्थित करना तथा ऊपरी मंजिल पर यात्रियों हेतु सुविधा केंद्र बनाकर विभिन्न प्रकार की जानकारियों को उपलब्ध कराना है। उक्त भवन संपूर्ण घाट परिक्षेत्र में आने वाले यात्रियों के लिए न केवल सुविधा केंद्र होगा बल्कि घाटों के निकट होने के कारण व्यावसायिक रूप से भी महत्वपूर्ण होगा।

आध्यात्मिक बुक स्टोर 

यह भवन 311 वर्ग मीटर में निर्मित है। उक्त भवन सिटी म्यूजियम व वाराणसी गैलरी के साथ एक प्लाजा में बनाया गया है, जिसमें आध्यात्मिक पुस्तक का भंडार या दुकान होगी। 

गंगा व्यू कैफे 

इस भवन का निर्माण यात्रियों श्रद्धालुओं पर्यटकों को काशी एवं मां गंगा का विहंगम दृश्य अवलोकित कराने के साथ-साथ अल्प जलपान के दृष्टिगत कराया गया है।

Kashi Temple Vishwanath का महत्व 

माँ अन्नापूर्णा (पार्वती) के साथ भगवान शिव अपने त्रिशूल पर काशी को धारण करते हैं और कल्प के प्रारम्भ में अर्थात सृष्टि रचना के प्रारम्भ में उसे त्रिशूल से पुन: भूतल पर उतार देते हैं। शिव महापुराण में श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा कुछ इस प्रकार बतायी गई है–''परमेश्वर शिव ने माँ पार्वती के पूछने पर स्वयं अपने मुँह से श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा कही थी। उन्होंने कहा कि वाराणसी पुरी हमेशा के लिए गुह्यतम अर्थात अत्यन्त रहस्यात्मक है तथा सभी प्रकार के जीवों की मुक्ति का कारण है। इस पवित्र क्षेत्र में सिद्धगण शिव-आराधना का व्रत लेकर अनेक स्वरूप बनाकर संयमपूर्वक मेरे लोक की प्राप्ति हेतु महायोग का नाम 'पाशुपत योग' है। पाशुपतयोग भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रकार का फल प्रदान करता है। 

भगवान शिव ने कहा कि ''मुझे काशी पुरी में रहना सबसे अच्छा लगता है,इसलिए मैं सब कुछ छोड़कर इसी पुरी में निवास करता हूँ। जो कोई भी मेरा भक्त है और जो कोई मेरे शिवतत्त्व का ज्ञानी है, ऐसे दोनों प्रकार के लोग मोक्षपद के भागी बनते हैं, अर्थात उन्हें मुक्ति अवश्य प्राप्त होती है। इस प्रकार के लोगों को न तो तीर्थ की अपेक्षा रहती है और न विहित अविहित कर्मों का प्रतिबन्ध। इसका तात्पर्य यह है कि उक्त दोनों प्रकार के लोगों को जीवन्मुक्त मानना चाहिए।वे जहाँ भी मरते हैं,उन्हें तत्काल मुक्ति प्राप्त होती है।'' इस प्रकार द्वादश ज्योतिर्लिंग में श्री विश्वेश्वर भगवान विश्वनाथ का शिवलिंग सर्वाधिक प्रभावशाली तथा अद्भुत शक्तिसम्पन्न लगता है।काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है।इसे आनन्दवन,आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र तथा काशी आदि अनेक नामों से स्मरण किया गया है।

वास्तव में काशी पुरी अनाहत चक्र का प्रतीक है जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। इस जगत् का प्रलय होने पर भी जीवात्मा /आत्मा अथार्त अविमुक्त काशी क्षेत्र का नाश नहीं होता है। ब्रह्मा जी जब नई सृष्टि प्रारम्भ करते हैं, उस समय भगवान शिव काशी को अथार्त जीवात्मा/ आत्मा को पुन: भूतल पर स्थापित कर देते हैं। 

Kashi Vishwanath Temple  में अनेक विशिष्ट तीर्थ हैं, जिनके विषय मे कहा गया है कि ‘विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग बिन्दुमाधव ढुण्ढिराज गणेश, दण्डपाणि कालभैरव, गुहा गंगा (उत्तरवाहिनी गंगा), माता अन्नपूर्णा तथा मणिकर्णिक आदि मुख्य तीर्थ हैं। काशी क्षेत्र में मरने वाले किसी भी प्राणी को निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है। जब कोई मर रहा होता है, उस समय भगवान.श्री विश्वनाथ उसके कानों में तारक मन्त्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन के चक्कर से छूट जाता है, अर्थात इस संसार से मुक्त हो जाता है।

पाँच कोस के क्षेत्रफल वाले काशी क्षेत्र को शिव और पार्वती ने प्रलयकाल में भी कभी त्याग नहीं किया है। इसी कारण उस क्षेत्र को ‘अविमुक्त’ क्षेत्र कहा गया है। जिस समय इस भूमण्डल की जल की तथा अन्य प्राकृतिक पदार्थों की सत्ता (अस्तित्त्व) नहीं रह जाती है, उस समय में अपने विहार के लिए भगवान जगदीश्वर शिव ने इस काशी क्षेत्र का निर्माण किया था। कार्तिकेय ने अगस्त्य जी को बताया कि यह काशी क्षेत्र भगवान शिव के आनन्द का कारण है, इसीलिए पहले उन्होंने इसका नाम ‘आनन्दवन’ रखा था। काशी क्षेत्र के रहस्य को ठीक-ठीक कोई नहीं जान पाता है।श्रीस्कन्द ने कहा कि उस आनन्दकानन में जो यत्र-तत्र सम्पूर्ण शिवलिंग हैं, उन्हें ऐसा समझना चाहिए कि वे सभी लिंग आनन्दकन्द रूपी बीजो से अंकुरित (उगे) हुए हैं। 

जीवन के सबसे अंतिम पड़ाव के दौरान, मोक्ष प्राप्ति की लालसा लिए यहां व्यक्ति आने की कामना करते हैं ।मणिकर्णिका घाट के विषय में कहा जाता है कि यहां जलाया गया शव सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है, उसकी आत्मा को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि अधिकांश लोग यही चाहते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद उनका दाह-संस्कार बनारस के मणिकर्णिका घाट पर ही हो। 

पंच कोशी यात्रा

काशी शब्द का अर्थ है, प्रकाश देने वाली नगरी। जिस स्थान से ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलता है, उसे काशी कहते हैं। काशी-क्षेत्र की सीमा निर्धारित करने के लिए पुरातन कालमें पंचकोशी मार्ग का निर्माण किया गया। जिस वर्ष अधिमास (अधिक मास) लगता है, उस वर्ष इस महीने में पंचक्रोशीयात्रा की जाती है।

 

पंच कोशी यात्रा मानचित्र
पंच कोशी यात्रा मानचित्र 

पंचकोशी यात्रा के कुछ नियम है, जिनका पालन यात्रियों को करना पड़ता है। परिक्रमा नंगे पांव की जाती है। वाहन से परिक्रमा करने पर पंचकोशी-यात्रा का पुण्य नहीं मिलता। शौचादि क्रिया काशी-क्षेत्र से बाहर करने का विधान है। परिक्रमा करते समय शिव-विषयक भजन-कीर्तन करने का विधान है। 

कुछ ऐसे भी यात्री होते हैं, जो सम्पूर्ण परिक्रमा दण्डवत करते हैं। यात्री हर-हर महादेव शम्भो, काशी विश्वनाथ गंगे, काशी विश्वनाथ गंगे, माता पार्वती संग का मधुर गान करते हुए परिक्रमा करते हैं। साधु, महात्मा एवं संस्कृतज्ञ यात्री महिम्नस्त्रोत, शिवताण्डव एवं रुद्राष्टक का सस्वर गायन करते हुए परिक्रमा करते हैं। महिलाएं सामूहिक रूप से शिव-विषयक लोक गीतों का गायन करती हैं। परिक्रमा अवधि में शाकाहारी भोजन करने का विधान है।

पंचकोशी यात्रा मणिकर्णिका घाट से प्रारम्भ होती है। सर्वप्रथम यात्रीगण मणिकर्णिका कुण्ड एवं गंगा जी में स्नान करते हैं। इसके बाद परिक्रमा-संकल्प लेने के लिए ज्ञानवापी जाते हैं। यहां पर पंडे यात्रियों को संकल्प दिलाते हैं। संकल्प लेने के उपरांत यात्री श्रृंगार गौरी, बाबा विश्वनाथ एवं अन्नपूर्णा जी का दर्शन करके पुन:मणिकर्णिका घाट लौट आते हैं। यहां वे मणिकर्णिकेश्वर महादेव एवं सिद्धि विनायक का दर्शन-पूजन करके पंचक्रोशी यात्रा का प्रारम्भ करते हैं। 

गंगा के किनारे-किनारे चलकर यात्री अस्सी घाट आते है। यहां से वे नगर में प्रवेश करते है। लंका, नरिया, करौंदी, आदित्यनगर, चितईपुर होते हुए यात्री प्रथम पडाव कन्दवा पर पहुंचते हैं। यहां वे कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन-पूजन करके रात्रि-विश्राम करते हैं। रास्ते में पडने वाले सभी मंदिरों में यात्री देव-पूजन करते हैं। अक्षत और द्रव्य दान करते हैं। 

परिक्रमा-अवधि में यात्री अपनी पारिवारिक और व्यक्तिगत चिन्ताओं से मुक्त होकर पांच दिनों के लिए शिवमय, काशीमय हो जाते हैं। दूसरे दिन भोर में यात्री कन्दवा से अगले पड़ाव के लिए चलते हैं। अगला पड़ाव है भीम चण्डी। यहां यात्री दुर्गा मंदिर में दुर्गा जी की पूजा करते हैं और पहले पड़ाव के सारे कर्मकाण्ड को दुहराते हैं। पंचकोशी यात्रा का तीसरा पडाव रामेश्वर है। यहां शिव-मंदिर में यात्री -गण शिव-पूजा करते हैं। 

चौथा पड़ाव पांचों-पाण्डव है। यह पड़ाव शिवपुर क्षेत्र में पडता है। यहां पांचों पाण्डव (युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल तथा सहदेव) की मूर्तियां हैं। द्रौपदीकुण्ड में स्नान करके यात्रीगण पांचों पाण्डवों का दर्शन करते हैं। रात्रि-विश्राम के उपरांत यात्री पांचवें दिन अंतिम पड़ाव के लिए प्रस्थान करते हैं। अंतिम पड़ाव कपिलधारा है। यात्रीगण यहां कपिलेश्वर महादेव की पूजा करते हैं। 

काशी परिक्रमा में पांच की प्रधानता है। यात्री प्रतिदिन पांच कोस की यात्रा करते हैं। पड़ाव संख्या भी पांच है। परिक्रमा पांच दिनों तक चलती है। कपिलधारा से यात्रीगण मणिकर्णिका घाट आते हैं। यहां वे साक्षी विनायक (गणेश जी) का दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी भगवान शंकर के सम्मुख इस बात का साक्ष्य देते हैं कि अमुक यात्री ने पंचक्रोशीयात्रा कर काशी की परिक्रमा की है। इसके उपरांत यात्री काशी विश्वनाथ एवं काल-भैरव का दर्शन कर यात्रा-संकल्प पूर्ण करते हैं।

Kashi Vishwanath Temple पूजा का समय 

Kashi  Vishwanath temple
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग श्रृंगार 
Kashi  Vishwanath Temple सुबह २:३० मिनट पर खुलता है। जिनमें पांच बार भगवान शिव की आरती की जाती है। पहली आरती जिसे मंगला आरती कहा जाता है।
🔱 मंगला आरती - प्रातः ३:०० बजे से ४:०० बजे तक
🔱 भोग आरती    - प्रातः ११:१५ बजे से अपराह्न १२:२० बजे तक 
🔱 संध्या आरती  - सायं ७:०० बजे से रात्रि ८:१५ बजे तक 
🔱 श्रृंगार आरती  - रात्रि ९:०० बजे से रात्रि १०:१५ बजे तक
🔱 शयन आरती  - रात्रि १०:३० बजे से रात्रि ११:०० बजे तक 

ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए पुरुषों को धोती-कुर्ता और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना आवश्यक है। 

काशी विश्वनाथ मन्दिर के सांस्कृतिक आयोजन

मन्दिर ३५०० वर्षों के इतिहास के साथ शैव पूजा के केन्द्रीय स्थल के रुप  जाता है। मन्दिर में निम्न त्योहारों का आयोजन किया जाता है जो इस प्रकार है -

मकर संक्रान्ति 

मकर संक्रान्ति वह दिन है जब हिन्दू जगत के पालक सूर्य देवता उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते है। इस दिन लाखों की संख्या में लोग गंगा सागर और प्रयाग में डुबकी लगाते है तथा भगवान सूर्य को अर्ध्य देते है। काशी में इस दिन गंगा के घाटों पर स्नान के बाद लोग विश्वनाथ मन्दिर में भगवान शिव की पूजा करते है। 

महा शिवरात्रि 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दुग्ध अभिषेक 

महाशिवरात्रि फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की ६वीं रात को मनाई जाती है। महाशिवरात्रि उस रात को चिन्हित करती है जब भगवान शिव ने देवी पार्वती से हुआ था तथा प्रसन्न होकर भगवान शिव ने तांडव किया था। इस दिन सभी भक्त दिन भर उपवास रखते है तथा पूरी रात जागते रहते है और भजन कीर्तन करते है। शिवलिंग पर उस दिन बेलपत्र, फल-फूल, दूध तथा गंगाजल चढ़ाते है। इस दिन विदेशों से भी शिव भक्त काशी पहुंचते है तथा बाबा के दर्शन करते है। 

श्रावण माह 

श्रावण माह भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है। इस महीने के प्रत्येक सोमवार को मन्दिर को विशेष रुप से सजाया जाता है। श्रावण मास में मन्दिर दूर दूर से आने वाले और स्थानीय भक्तो से खचाखच भरा रहता है। श्रावण माह के पहले सोमवार में भगवान शिव के पार्थिव रुप शिवलिंग का भव्य श्रृंगार किया जाता है। दूसरे सोमवार को भगवान शिव और माता पार्वती की चल प्रतिमाओं को भव्यता के साथ सजाया जाता है। तीसरे सोमवार को अर्धनारीश्वर और चौथे सोमवार को रुद्राक्ष का भव्य श्रृंगार किया जाता है। इनके अतिरिक्त पूरे सावन माह में  प्रत्येक दिन भगवान शिव का तथा उनके परिवार का श्रृंगार होता है। जिसमें झूला श्रृंगार का आकर्षण दूर दूर से भक्तों को मन्दिर आने के लिए मजबूर कर देता है। 

देव दीपावली 

देव दीपावली जिसे देवताओं की दिवाली के रुप में भी जाना जाता है काशी विश्वनाथ मन्दिर में मनाया जाने वाला सबसे शुभ उत्सव है। जिसे कार्तिक पूर्णिमा के दिन ( दिवाली के १५ दिन बाद ) मनाया जाता है। गंगा के तट पर सभी घाटों की सीढ़िया, गंगा और मन्दिरो के परिसरों को एक लाख से अधिक मिट्टी के दीपों से जगमगा दिया जाता है। इसके पीछे की मान्यता है कि इस दिन देवी देवता गंगा में स्न्नान करने के लिए काशी में अवतरित होते है। त्योहार को त्रिपुरा पूर्णिमा स्न्नान के रुप में भी मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों के बाहर सुन्दर रंगोली का निर्माण करते है था घरों को और गलियों को दियो से सजाते है। दिन में देवताओं के विभिन्न रूपों की झांकी निकली जाती है तथा रात को आतिशबाजी का आयोजन किया जाता है। 
देव दीपावली देव दीपावली देव दीपावली

अन्नकूट 

अन्नकूट भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरुप को समर्पित एक उत्साह के प्रतीक का पर्व है। भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इन्द्र का गर्व चूर करने के लिए पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। ग्वालों ने अपने परिवार और पशुओं के साथ भगवान कृष्ण को घेर लिया तथा उन्होंने एक भव्य भोज का आयोजन किया। इसप्रकार से अन्नकूट की परम्परा का आरम्भ हुआ। काशी विश्वनाथ मन्दिर में दैनिक अनुष्ठान और आरती के बाद भगवान को ५६ भोग, अनेकों प्रकार की स्वादिष्ट मिठाइयां अर्पित की जाती है। इसके बाद भक्तो में प्रसाद के रूप में इसको वितरित कर दिया जाता है। काशी विश्वनाथ मन्दिर में प्रत्येक वर्ष इस पर्व का पूरा पूरा आनन्द भगवान और उनके भक्तों द्वारा लिया जाता है। 

रंगभरी या आमलकी एकादशी 

फाल्गुन ( फरवरी-मार्च ) के महीने में पड़ने वाली एकादशी काशी विश्वनाथ मन्दिर में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उत्सव है। माना जाता है, आमलकी, जिसमे किसी भी प्रकार की पाप को नष्ट करने की शक्ति है, स्वयं ब्रह्म स्वरुप है। भक्त इस दिन गंगा के जल में स्न्नान करने के बाद आमलकी के वृक्ष पर जल, पुष्प तथा धूप अर्पित करते है तथा उसके बाद भगवान परशुराम की पूजा अर्चना करते है। 

अक्षय तृतीया  

अक्षय तृतीया वैदिक पंचांग के चार सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है। यह वैशाख मास ( इंग्लिश कैलेंडर के अप्रैल - मई ) की अमावस्या के बाद पड़ने वाला तीसरा दिन है। चूंकि यह उत्सव देवी लक्ष्मी की समर्पित है इस लिए इस दिन को काशी विश्वनाथ मन्दिर में बड़ी धूम धाम से उत्साह के साथ मनाया जाता है। तथा आने वाले भक्तजन यथा योग्य धन, वस्त्र, भोजन और कम्बल इत्यादि का दान करते है। 

Kashi  Vishwanath Temple का ज्योतिर्लिंग से जुड़े कुछ रोचक तथ्य 

🔱 पुराणों में काशी की महिमा का वर्णन किया गया है जिसमे उल्लेख किया गया है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है। 
🔱 मन्दिर का शिखर स्वर्ण निर्मित है। 
🔱 काशी में स्थित पवित्र गंगा के घाटों पर स्न्नान करने के बाद पवित्र विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
🔱 मन्दिर के गर्भगृह में एक मण्डप और शिवलिंग है। जिसके चारों ओर एक वेदी बनी हुई है।
🔱 मान्यता है जब धरती का निर्माण हुआ तो पहली सूर्य की किरण काशी में ही पड़ी थी। 
🔱 ऐसी मान्यता है कि एक भक्त को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे और जब वो उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी और तभी से भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ विराजमान हैं।  

Kashi  Vishwanath Temple के आसपास स्थित मन्दिर

गुरू दत्तात्रेय भगवान का मंदिर

भगवान गुरु दत्तात्रेय
भगवान गुरु दत्तात्रेय 
काशी के प्राचीन मोहल्ला ब्रह्माघाट में दो सौ साल से भी ज्यादा पुराना गुरू दत्तात्रेय भगवान का मंदिर स्थित है।  वेद, पुराण, उपनिषद और शास्त्रों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव सतयुग में हुआ था। वैसे तो दक्षिण और पश्चिम भारत में भगवान दत्तात्रेय के ढेर सारे मंदिर हैं लेकिन इन मंदिरों में विग्रह कम उनकी पादुका ही ज्यादा है। काशी स्थित यह देवस्थान उत्तर भारत का अकेला है।
 भगवान दत्तात्रेय के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अब तक देह त्याग नहीं किया है।

 वो पूरे दिन भारत के अलग अलग क्षेत्रों में विचरते रहते हैं तथा हर रोज गंगा स्नान के लिए प्रात:काल काशी में मणिकर्णिका घाट पर आते हैं। मणिकर्णिका घाट स्थित भगवान दत्तात्रेय की चरण पादुका इस बात का प्रमाण है। कहते हैं कि ब्रह्माघाट स्थित मंदिर में भगवान दत्तात्रेय के दर्शन मात्र से मनुष्य को सफेद दाग जैसे असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है। देश का अकेला मंदिर जहां मिलता है भगवान का एकमुख स्वरूप दत्तात्रेय का विग्रह हर जगह तीन मुखों वाला मिलता है लेकिन काशी अकेला ऐसा स्थान है जहां एक मुख वाला विग्रह विराजमान है।

 दत्तात्रेय भगवान ने ही बाबा कीनाराम को अघोर मंत्र की दीक्षा दी थी। आप गुरु गोरक्षनाथ के भी गुरु थे। कलियुग में आज भी यदि सच्चे मन से स्मरण किया जाए तो दत्तात्रेय भगवान भक्त के सामने आज भी हाजिर हो जाते हैं। 

काशी के संहार भैरव का मन्दिर 

काशी के संहारक भैरव
काशी के संहारक भैरव 

अलौकिक हैं मीरघाट के संहार भैरव। त्रिपुरा भैरवी से चितरंजन पार्क की तरफ जाने वाली गली में एक बड़ा सा फाटक पड़ता है। इस फाटक में एक छोटे से ताखे पर विराजमान हैं संहार भैरव। काशी खंड और शिव पुराण में संहार भैरव का उल्लेख बताता है कि बाबा भोलेनाथ ने मनुष्य को आफत बलाओं से बचाने के लिए यह स्वरूप धारण किया था।

 कहते हैं कि मनुष्य पर जब कभी बड़ी आफत विपदा आती है तो इन सबका एकमात्र इलाज संहार भैरव का दर्शन है। वैसे तो भैरव के दर्शन का विधान मुख्य रूप से रविवार और मंगलवार को है लेकिन संहार भैरव के यहां कभी भी किसी भी दिन हाजिरी लगायी जा सकती है।संहार भैरव के दर्शन से तमाम समस्याओं से निजात पाने वाले लोगों का कहना है कि बाबा अपने नाम के अनुरूप हर मुसीबत का संहार कर देते हैं।

काशी के प्रसिद्ध घाट 

पुराणों के मुताबिक, सप्त पुरियों को मोक्ष स्थल कहा गया है अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका। काशी में पांच नदियों का संगम पंच गंगा घाट पर है। गंगा ,जमुना ,सरस्वती ,किरणा और धूतपापा। काशी में 7 किलोमीटर लंबी घाटों की श्रृंखला है और 90 से ऊपर गंगा घाट है, जो और कहीं नहीं है। सबसे खास बात है कि आसमान से देखने पर अर्ध चंद्राकर दिखाई पड़ते हैं। बाबा विश्वनाथ के माथे गंगा का चंद्र दिखता है।

अस्सी घाट
अस्सी घाट 
प्रसिद्ध घाटों में दशाश्वमेध, मणिकार्णिंका, हरिश्चंद्र और तुलसीघाट की गिनती की जा सकती है।वाराणसी के घाटों का दृश्य बड़ा ही मनोरम है। भागीरथी के धनुषाकार तट पर इन घाटों की पंक्तियाँ दूर तक चली गई हैं। प्रात: काल तो इनकी छटा अपूर्व ही होती है। काशी में लगभग 84 घाट हैं, जिनमें चुनिंदा पांच पावन घाटों को पंचतीर्थों के एक सूत्र में पिरोया गया है। ये वो घाट हैं, जो पौराणिक काल से मनुष्यों को उनके पापों से मुक्त कर, जीवन जीने की नई दिशा धारा प्रदान करते आ रहे हैं। इन घाटों से होती हुई गंगा नदी के दिव्य स्पर्श का अनुभव पाने के लिए, देश-विदेश से श्रद्धालु भौगोलिक सीमा लांघ, खिंचे चले आते हैं।

विश्व प्रसिद्ध अस्सी घाट

पौराणिक महत्व रखने वाले काशी के पांच तीर्थों में से एक, अस्सी घाट, का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। यह घाट शाम के वक्त होनी वाली गंगा आरती के लिए विश्व विख्यात है। यहां पर्यटकों को शाम की गंगा आरती का आनंद लेते हुए देखा जा सकता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस घाट का नामकरण अस्सी नामक प्राचीन नदी का गंगा के साथ संगम के कारण हुआ। कहा जाता है इसी स्थल पर मां दुर्गा ने दुर्गाकुंड तट पर विश्राम किया था और अपनी तलवार यहीं छोड़ दी थी, जिस के गिरने से यहां असी नदी प्रकट हुई। इस घाट पर विशेषकर विदेशी पर्यटक आना ज्यादा पसंद करते हैं।

पावन तीर्थ, दशाश्वमेध घाट

पंचतीर्थों के नाम से विख्यात काशी के पांच घाटों में दशाश्वमेध घाट का अपना विशेष स्थान है। यह घाट गोदौलिया से गंगा जाने वाले मार्ग पर स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार राजा दिवोदास ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ करवाए थे जिसके बाद इस स्थान को दशाश्वमेध घाट का नाम प्राप्त हुआ।दशाश्वमेध घाट पर ही जयपुर नरेश जयसिंह द्वितीय का बनवाया हुआ मानमंदिर या वेधशाला है। दशाश्वमेध घाट तीसरी सदी के भारशिव नागों के पराक्रम का स्मारक है। उन्होंने जब-जब अपने शत्रुओं को पराजित किया तब-तब यहीं अपने यज्ञ का अवभृथ स्नान किया।
मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका घाट 

महाश्मशान, मणिकर्णिका घाट

बनारस के सभी गंगा घाट किसी न किसी धार्मिक मान्यता व कथाओं की माला से गूंथे गए हैं।माना जाता है कि जब शिव विनाशक बनकर सृष्टि का विनाश कर रहे थे तब काशी नगरी को बचाने के लिए विष्णु ने शिव को शांत करने के लिए तप प्रारंभ किया।भगवान शिव और पार्वती जब इस स्थान पर आए तब शिव ने अपने चक्र से गंगा नदी के किनारे एक कुंड का निर्माण किया।कहा जाता है एक बार माता पार्वती का कर्ण फूल यहां के कुंड में गिर गया था, जिसे ढूंढने का काम भगवान शिव ने किया। इस घटना के बाद, इस स्थल को मणिकर्णिका का नाम मिला। इस घाट को महाश्मशान भी कहा जाता है।


जीवन के सबसे अंतिम पड़ाव के दौरान, मोक्ष प्राप्ति की लालसा लिए यहां व्यक्ति आने की कामना करते हैं ।मणिकर्णिका घाट के विषय में कहा जाता है कि यहां जलाया गया शव सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है, उसकी आत्मा को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि अधिकांश लोग यही चाहते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद उनका दाह-संस्कार बनारस के मणिकर्णिका घाट पर ही हो।


प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था। इस घाट की विशेषता ये हैं, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती। इसी कारण इसको महाश्मशान नाम से भी जाना जाता है।

रत्नेश्वर या मातृऋण मन्दिर
रत्नेश्वर या मातृऋण मन्दिर 

प्रथम विष्णु तीर्थ आदिकेशव घाट

काशी के प्रमुख पौराणिक मंदिरों में, अपनी दिव्य छवि के लिए प्रसिद्ध, आदिकेशव मंदिर, धार्मिक पर्यटकों के बीच, काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर की निर्माण कहानी, भगवान विष्णु के काशी आगमन से जुड़ी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु यहां स्थित घाट पर सबसे पहले पधारे थे, जिसके बाद उन्होंने स्वयं अपनी प्रतिमा यहां स्थापित की। वर्तमान में यह स्थल आदिकेशव घाट के नाम से जाना जाता है।इस घाट को गंगा-वरूणा संगम घाट भी कहा जाता है, क्योंकि इसी स्थान पर दैविक नदी गंगा और वरूणा का मिलन होता है।

पंच नदियों का मिलन स्थल पंचगंगा घाट

काशी के 84 घाटों में, इस घाट की भी गिनती, पंचतीर्थों में होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस घाट पर गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण और धूतपापा नदी का मिलन होता है। इसी वजह से इस घाट को 'पंचगंगा' कहा गया है। इसी पावन घाट के सानिध्य में आकर संत कबीर ने गुरू रामानंद से दीक्षा प्राप्त की थी । घाट के उपरी भाग की सीढ़ियां आज भी अपनी प्रारंभिक सरंचना के द्वारा घाट की सुंदरता पर चार-चांद लगा रही हैं।

अन्य घाट

पंचतीर्थों के नाम से प्रसिद्ध इन घाटों के बाद अन्य घाट हैं - हरिश्चंद्र घाट, केदार घाट, तुलसीघाट, राजेन्द्र घाट, चेतसिंह घाट और राज घाट आदि । पंचतीर्थ घाटों की भांति इन घाटों का भी अपना अलग धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व है। मानसिक व आत्मिक शांति के लिए इन घाटों से अच्छा स्थान और कोई नहीं हो सकता।

विश्वनाथ गली 

वाराणसी की सबसे प्राचीन और साल भर सबसे व्यस्ततम सड़क, विश्वनाथ गली है। जो ज्ञानवापी चौक से दशाश्वमेध घाट तक ३०० मीटर एक लम्बी गली है। चहल-पहल वाली इस गली में सस्ती दरों पर तरह-तरह के सामान बिकते हैं। आधुनिक या पारंपरिक परिधान, घरेलू सामान, घरेलू सामान, देवताओं की पीतल की मूर्तियां आदि आसानी से मिल सकते हैं। गली स्थानीय भोजन और मिठाइयों के लिए भी जानी जाती है।
विश्वनाथ गली विश्वनाथ गली विश्वनाथ गली

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन की आस मन में रखकर मन्दिर तक कैसे पहुंचे ?

सबसे निकटतम हवाई अड्डा बाबतपुर में स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जहां से मन्दिर की दूरी २५ किमी के लगभग है। निजी और सार्वजनिक किराये पर उपलब्ध टैक्सियां और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित बसें सीधे मन्दिर तक की सेवा प्रदान करती है जो मन्दिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा साधन है।


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मन्दिर, वाराणसी रेलवे स्टेशन द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और मन्दिर कई रेलवे स्टेशनों के करीब है। वाराणसी सिटी स्टेशन सिर्फ 2 किमी दूर है और वाराणसी जंक्शन मुख्य मन्दिर से लगभग 6 किमी दूर है। मडुवाडीह स्टेशन भी लगभग 4 किमी दूर है। यह सभी स्टेशन भारत के प्रमुख महानगरों से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। इसलिए, आप बिना किसी परेशानी के आसानी से अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। 

उत्तर प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों के लिए लगातार निजी और सार्वजनिक बसों और अन्य सड़क परिवहन सेवाओं के साथ, वाराणसी में एक विस्तृत सड़क नेटवर्क है। आप विश्वनाथ गली के साथ ही साथ ऑटो रिक्शा या टैक्सी द्वारा विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मन्दिर तक पहुँच सकते हैं।




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