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परशुराम कुण्ड

परशुराम कुण्ड अरुणाचल प्रदेश के लोहित नदी की निचली पहुंच में मिश्मी पठार के तेलु शती या तैलंग क्षेत्र में ब्रम्हपुत्र के पठार पर स्थित एक पवित्र हिन्दू तीर्थ स्थल है। परशुराम कुण्ड, जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम को समर्पित एक लोकप्रिय स्थल है।  जो आसपास के राज्य असम,मणिपुर के लोगो के साथ ही साथ देश के कोने-कोने और विदेशों से भगवान परशुराम के भक्तों और ऋषि मुनियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। स्थानीय मान्यता है की इसके जल में डुबकी लगते ही सारे पाप धुल जाते है।


परशुराम कुण्ड
परशुराम कुण्ड अरुणाचल प्रदेश

परशुराम कुण्ड से जुडी किंवदंती 

"जितने मुख उतनी बात।" ऐसा किसी भी धार्मिक स्थल के सम्बन्ध में कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। ऐसा ही परशुराम कुण्ड के सन्दर्भ में भी है। प्रत्येक ग्रन्थ जिसमे परशुराम कुण्ड का वर्णन किया गया है सबने अलग अलग प्रकार से अपनी कथा का उल्लेख किया है। सबसे प्रचलित कथा के अनुसार,


त्रेता में ऋषि जमदग्नि और रेणुका के यहाँ परशुराम जी का जन्म हुआ था। एक दिन रेणुका गंगा में स्नान करने के बाद वापस आश्रम जा रही थी की उन्होंने गन्धर्वो के राजा चित्ररथ को अप्सराओ के साथ क्रीड़ा करते हुए देखा। जिसे देखकर वह इतनी मन्त्रमुद्ध हो गयी की, विकार स्वरुप वह अपने मार्ग से भटक गयी तथा उनमे चित्ररथ के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो आया। जब वह गीले वस्त्रों में एक बुझे हुए मन से आश्रम पहुंची। उनके पति जमदग्नि उन्हें इस अवस्था में देख कर और लौटने में हुई देरी को अपने दिव्य ज्ञान से जान गए तथा अपना आत्म संयम खो बैठे। उन्होंने अपने पुत्रों को माता को मारने के लिए कहा। परन्तु परशुराम को छोड़ कर किसी ने भी उनके क्रूर आदेश का पालन नहीं किया। चूँकि वह अपने पिता के तप की शक्ति को भलीभांति जानते थे। अतः उन्होंने अपनी माता व अपने भाइयों का फरशा से गाला काट दिया। उनके इस कृत्य से उनके पिता उन पर प्रसन्न हो उनसे वरदान मांगने को कहा। जिस पर उन्होंने पिता से अपनी माता व अपने सभी भाइयों को पुर्न जीवित करने का वरदान माँगा। 


ऋषि जमदग्नि ने पुत्र को दिए गए वरदान को तो साकार कर दिया, परन्तु उन्हें मातृ हत्या के पाप से मुक्त न कर पायें। जिसके चिन्ह के रूप में फरशा उनके हाथ में चिपक गया था। इस पर उन्होंने परशुराम को ब्रह्मकुंड की तीर्थ यात्रा करने और उसके जल से हाथ धोने का सुझाव दिया। परशुराम ने अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में उपस्थित लोहित नदी के तट पर पहुंचे और उन्होंने जैसे ही अपना हाथ लोहित नदी के जल से धोया उनका फरशा तुरंत ही उनके हाथ से हट गया। क्योंकि उसके जल में सभी के पापों को धोने की शक्ति थी। जिसे बाद में परशुराम कुण्ड के नाम से जाना जाने लगा और वहां रहने वाले ऋषियों मुनियो द्वारा उस स्थल को एक पूज्य स्थल के रूप में चिन्हित किया गया। 


आधुनिक परशुराम कुण्ड 

साधुओं द्वारा स्थापित परशुराम कुण्ड का स्थल वर्ष १९५० में आये असम में भूकंप तक सुरक्षित था तथा पूरी तरह से ढंका हुआ था। भूकम्प के बाद उस स्थल का पूरा ही नक्शा बदल गया। कुंड के मूल स्थान पर अब एक तेज धरा बह रही है। तथा प्राचीन बड़े बड़े पत्थर जल में समा गए है। इस प्रकार पुराने के स्थान पर एक नए कुंड का निर्माण हो गया है। 


परशुराम कुण्ड
परशुराम कुण्ड

परशुराम मेला 

१९७२ से नियमित रूप से मनाया जाने वाला कार्यक्रम है जिसे मकर संक्रान्ति के दिन आयोजित किया जाता है। इस दिन देश के विभिन्न हिस्सों से तीर्थयात्री व साधु सन्यासी यहाँ स्नान करने के लिए आते है। इस प्रकार यदि कहा जाये की इस समय लोहित जिला एक छोटे से भारत में बदल जाता है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस लिए इसे देखते हुए इसे "पूर्व का कुम्भ मेला" के नाम से भी जाना जाता है। 


परशुराम कुण्ड में क्या करे ?

परशुराम कुण्ड
मेला बाजार
परशुराम कुण्ड एक धार्मिक आध्यत्मिक उत्साह से भरा हुआ एक अद्भुत तीर्थ स्थल है। कुंड तक पहुंचने के लिए लगभग ५०० सीढ़ियां उतरनी पड़ती है। किन्तु उससे पहले भगवान शिव और ऋषि परशुराम के भव्य मन्दिरों में दर्शन करने का आनन्द ले सकते है। इसके बाद थोड़ा ही आगे बढ़ने पर आप गायों को दान करने वाले भक्तो को देख सकते है। 

परशुराम मेला में आने वाले तीन सप्ताह के लिए तेजू में एक अस्थायी "मेला बाजार" का आयोजन किया जाता है। जिसमे पहाड़ी जनजातियों के द्वारा गायों, फर से बनने वाले गलीचे और ऊनि कपडे तथा स्थानीय सामान लाया जाता है। 


इसके अतिरिक्त झील तक तेजू से एक पूरा दिन बिताने के लिए ट्रैकिंग की सुविधा भी उपलब्ध है। लोहित नदी में रिवर राफ्टिंग और मछली पकड़ना इस यात्रा को और भी रोचक बना देता है। 


परशुराम कुण्ड तक कैसे पहुंचे?

हवाई मार्ग से परशुराम कुण्ड

सबसे निकटतम हवाई अड्डा डिब्रूगढ़ ( २०० किमी ) और मोहनबारी हवाई अड्डा ( २०० किमी ) है, जो असम राज्य में स्थित है। जो इस तीर्थस्थल को देश से जोड़ता है।


रेल मार्ग से परशुराम कुण्ड

अभी तक परशुराम कुण्ड के लिए कोई भी सीधा रेल मार्ग उपलब्ध नहीं है। परन्तु परशुराम कुण्ड के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन तिनसुकिया रेलवे स्टेशन ( १६० किमी ) है। यह भी असम राज्य में ही स्थित है।


सड़क मार्ग से परशुराम कुण्ड

यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा संसाधन सड़क मार्ग है। परन्तु कुंड तक पहुंचने के लिए अरुणाचल प्रदेश राज्य परिवहन की बसे व निजी वाहन भी तिनसुकिया से ही उपलब्ध है। साथ ही साथ गुवाहाटी से तेजू और नामसाई के लिए भी रात्रि बस सेवा उपलब्ध है।


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