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कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर कुंबला

कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर, कासरगोड जिले से उत्तर में लगभग १३ किमी की दूरी पर स्थित कुंबला नामक शान्त और मनोहर भूभाग पर बना हुआ, पवित्र हिन्दू देव स्थल है। स्थानीय मान्यताओं को माने तो माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के जिस बालगोपाल स्वरुप की उपासना की थी, उसे स्वयं श्री कृष्ण ने ऋषि कण्व को प्रदान की थी। वही कृष्णशिला मूर्ति जिसमें एक शिशु की समस्त विशेषता है इस मन्दिर का मुख्य विग्रह है। पुरातत्व ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, कुंबला जो की कदंब राजवंश की राजधानी थी, के राजा जयसिंह द्वारा कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। राजा जयसिंह के शासनकाल की मुख्य विशेषतः थी की, उनके राज्य का प्रशासन कार्य भी कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण के नाम पर ही किया जाता था और किसी भी उत्तराधिकारी का राज्याभिषेक भी कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर में कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण के समक्ष ही किया जाता था। 


कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर विग्रह

image source - google by official website of Kanipura Sri Gopalakrishna Temple


कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर की स्थापना ऋषि कण्व के द्वारा कराई गयी थी, इसलिए मन्दिर की पवित्रता पर किसी भी युग में आंच नहीं आयी और इसके सभी उपासक आज भी ब्राह्मण समुदाय के ही है।  


अभिलेखों में मन्दिर की सत्यता 

मन्दिर को "ऋषि प्रतिष्ठा" की उपाधि मिली है, क्योकि कि मूर्ति को हजारों वर्ष पूर्व ( द्वापर युग में ) भगवान कृष्ण के निर्देशानुसार महर्षि कण्व द्वारा स्थापित किया गया था। अतः मन्दिर परिसर से विग्रह को स्थानांतरित करना असम्भव और अव्यवहारिक है। 

पाम लीफ साहित्य में वर्ष १६५० में कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर में की जाने वाली पूजाओं का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त मंदिर की महिमा और प्राचीनता का वर्णन वर्ष १९२३ में विद्वानों द्वारा लिखे गए साहित्यो में भी मिलता है। मन्दिर का ध्वज स्तम्भ जो की ताम्ब्र पत्र से सुसज्जित है , उस पर उभारे गए  सन्देश से ज्ञात होता है मंदिर के ध्वजस्तम्भ का पुर्न निर्माण वर्ष १९११ में कराया गया था। तांबे की एक शिलालेख जिसमें कुंबला के राजा द्वारा तंत्री को दान में दी गयी भू सम्पत्ति का वर्णन है, मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ट भूमि को दर्शाता है। 


कुंबला नाम से जुडी किंवदंती 

कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर कुंबला
कुम्भिनी

कुंबला को प्राचीन काल में कनिपुरा या कनियारा के नाम से भी जाना जाता था, जो कण्वपुरा से उत्पन्न हुआ था। चूँकि ऋषि कण्व ने कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर की स्थापना की थी इस लिए इस क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्र को कण्वपुरा के नाम से जाना जाता था। मन्दिर के पूर्व में दो मील के क्षेत्र को कण्व पीठ ( कन्नूर )और पेजावर मठ जो की मन्जेश्वर के पास था को कण्व तीर्थ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता था। शहर का नाम कुंबला अभ्रंश रूप है "कुम्भ होल" का, जहां होल का अर्थ है नदी। मान्यतानुसार ऋषि कण्व ने जिस बालगोपालकृष्ण की पूर्ण श्याम ग्रेनाइट की एक सुंदर छवि की स्थापना करने के बाद ऋषि ने मन्थ्रोडका के साथ देव मूर्ति का अभिषेक किया। मन्थ्रोडका जिसे ऋषि ने कई युगों तक अपने कमण्डल में सुरक्षित रखा था ने एक नदी का रूप धारण किया और मन्दिर से निकल कर पश्चिमी समुद्र में अपना विलय कर लिया। चूँकि कुम्भ होल जिसे कुम्भिनी भी कहा जाता है के नाम पर धीरे धीरे इसका नाम कुंबला पड गया। 


कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर की ऐतिहासिक महत्ता  

कुंबला, जो कुंबला के शासकों की सबसे प्रिय राजधानी थी। जिसे बाद में माईपदी में स्थानांतरित कर दी गयी थी। कुंबला के किले के खंडहर आज भी देखे जा सकते है जो उसके राजनीतिक महत्त्व को दर्शाते है। कुंबला के शासकों ने कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर को जीर्णोद्धार करके एक नया रूप प्रदान किया। यद्यपि मधुर मन्दिर के  श्रीमद अनंतेश्वर और सिद्धिविनायक उनके दैनिक पूजा के देव थे। तदपि किसी भी उत्तराधिकारी का राज्याभिषेक श्री गोपालकृष्ण मन्दिर में ही किया जाता था। यक्षगान के जनक कहे जाने वाले पार्थ सुब्बा ने मधुर श्री गणपति और कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण की प्रशंसा में अनेक गीतों की रचना की है। १७९७ में मुडप्पा सेवा में कन्नड़ भाषा में उनका नाम खुदा हुआ ताम्बे का "धारा बॉटल" भेंट किया गया था, जो आज मधुर मंदिर में उपयोग किया जाता है। 


कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर में पूजा का समय 


मन्दिर के दक्षिण प्रांगण में श्री महागणपति का छोटा सा मन्दिर है। इसके अतिरिक्त उपदेवता के रूप में मन्दिर में पीलीचामुंडी देवी की पूजा भी मंदिर में की जाती है।


मन्दिर का द्वार प्रातः ५:०० बजे खुलता है। प्रातः भक्तों द्वारा पूजा के लिए ६:३० बजे से ११:०० बजे तक का समय निर्धारित किया गया है जिसमे प्रातः मुख्य पूजा का समय ७:३० बजे का है। अपराह्न १२:३० बजे दोपहर पूजा की जाती है। तीर्थ प्रसाद का वितरण अपराह्न १२:३० बजे से अपराह्न १:०० बजे तक सभी भक्तो के लिए किया जाता है। अपराह्न १ बजे से २:०० बजे तक अन्ना संथारपाणे का पालन किया जाता है। मन्दिर के द्वार भक्तो के लिए पुनः सायं ५:३० बजे खोला जाता है। रात्रि पूजा का समय ८:०० बजे का है जिसमें भक्त पूरी उत्साह के साथ उपस्थित होते है। 


मन्दिर में की जाने वाली विशेष पूजा को रंग पूजा कहा जाता है जिसकी दर १४०० भारतीय रूपये है। इसके अतिरिक्त उजीपाट की करीब ४१ सामग्री है। जिसमे सबसे प्रसिद्ध पाल पायसम है। यद्यपि कृष्ण की मूर्ति नवनीत मूर्ति अर्थात मक्खन से प्रेम करने वाले की है परन्तु उजीपाटों की सूची में मक्खन को सम्मिलित नहीं किया गया है। सहायक देवताओं के उजीपाट की अलग सूची उपलब्ध है। 


कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर में मनाया जाने वाला समारोह 

यहाँ मनाया जाने वाला वार्षिकोत्सव मकर संक्रमम या कुंबले बेदी है। यह पांच दिवसीय उत्सव मलयालम महीने धनु के अंतिम दिन कोडियेट्टम से प्रारम्भ होकर मकरम माह ( मध्य जनवरी ) में एक अरत्तू  के साथ समाप्त होता है। थिदम्बु नृत्य, कासरगोड में मनाया जाने वाला मंदिरों का मुख्य कला रूप है जो किसी भी मंदिर समारोह का मुख्य आकर्षण है। मूर्ति बरगद के पेड़ के मंच पर विराजमान है जिसका प्रदर्शन लगभग डेढ़ घंटे तक चलता है। "बाली" मूर्ति को पूजाघर के ऊपर ले जाने का एक पारम्परिक विशिष्ट तरीका है। जिसमे मूर्ति जो की सुन्दर फूलो और आभूषणों से सजी हुई होती है को सिर पर ले कर मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करता है। पूजा चंदमेलम और वाद्यों के ताल के अनुसार चलती है। जिसमे पहले मूर्ति लेकर घूमने वाला पहले अपने एक हाथ से मूर्ति को पकडे रहता है किन्तु बाद में वह अपने सहारे को हटा देता है और तेजी से मंदिर के चारो ओर परिक्रमा करता है। 


कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर कुंबला
बाली

कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर में तीर्थयात्रियों के क्या करें 

  • मन्दिर प्रशासन अपने परिसर में आये सभी भक्तों को पूर्ण सम्मान प्रदान करता है और उनकी सभी प्रकार से सहायता करने को तैयार रहता है। इसी श्रेणी में विकलांग व्यक्तियों को सामान्य कतार में प्रतीक्षा किये बिना ही सीधे मन्दिर के कोविल में प्रवेश कर सकते है। इसके लिए उन्हें द्वार के पास ही एक प्रकार का विशेष पास प्रोटोकॉल सेक्शन के अंतर्गत प्रदान किया जाता है। व्हीलचेयर की सुविधा भी द्वार पर ही उपलब्ध है। 
  • मन्दिर के गेट के भीतर किसी भी प्रकार के वाहन का प्रवेश वर्जित है। अतः तीर्थ यात्रा के उद्देश्य से आये सभी भक्तजनों की पार्किंग के लिए एक विशेष विशाल क्षेत्र आवंटित किया गया है। अतः आने वाले भक्तों से आशा की जाती है वे अपने वाहनों को व्यवस्थित ढंग से पार्क करे और प्रवेश मार्ग को अवरुद्ध न करे। 
  • भक्तों से अनुरोध है की वे मन्दिर में प्रवेश करने के पूर्व अपने जूते निर्देशित फुटवियर स्टैण्ड पर ही रखने का कष्ट करे। 
  • मन्दिर में की जाने वाली सेवा / पूजा की जानकारी "मन्दिर सूचना केन्द्र" से प्राप्त कर सकते है। 
  • मन्दिर में भगवान श्री कृष्ण का  स्वादिष्ट प्रसाद भोजन के रूप में सभी भक्तों को निर्धारित समय पर प्राप्त होता है। जिसे अन्नप्रासद अथवा अन्नधा सोहा नामक सेवा कहा जाता है। यदि आप मंदिर में है तो इस सेवा का लाभ अवश्य प्राप्त करे। 
  • मन्दिर हर समय सुरक्षा की दृष्टि से सी सी टीवी की निगरानी में रहता है अतः कोई भी ऐसा कार्य न करे जिससे आप की तकलीफ बढ़ जाये। 


कनिपुरा श्री गोपालकृष्ण मन्दिर कैसे पहुंचे?

सड़क मार्ग से 

यूँ तो पूरा केरल ही सड़क मार्ग और रेल मार्ग के सुनियोजित तंत्र से जुड़ा हुआ है इसलिए कासरगोड पहुंचना भी बहुत ही सुगम है। मैंगलोर से कुंबला की दूरी लगभग ४२ किमी है जिसे न एच ६६ के द्वारा मैंगलोर, थलापड़ी और उप्पला रोड के द्वारा तय किया जा सकता है। दूसरा मुख्य मार्ग कासरगोड से कुंबला का है जिसकी दूरी लगभग १३ किमी है यह भी न एच ६६ के द्वारा कासरगोड, मोगलपुत्तूर होतें हुए कुंबला से जुड़ता है।  

रेल मार्ग से 

सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कुबला रेलवे स्टेशन है। जहा से शांत और सुरम्य मन्दिर द्वार तक पहुंचने के लिए आप अपने पैरों का सहारा ले सकते है। स्टेशन से मंदिर द्वार की पैदल दूरी पांच मिनट की है। 

हवाई मार्ग से 

सबसे निकटतम हवाई अड्डा मैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जहा से मंदिर परिसर की दूरी ५० किमी है। हवाई अड्डे के बाहर से बस अथवा टैक्सी के द्वारा मैंगलोर शहर तक पहुंच सकते है।  यहाँ से निजी अथवा राजकीय वाहन के द्वारा मन्दिर परिसर तक पहुंच सकते है।  





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