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मधुर महागणपति मंदिर कासरगोड

मधुर महागणपति मंदिर कासरगोड
श्रीमद अनंतेश्वर सिद्धिविनायक मन्दिर
सनातन भारत की अमूल्य धरोहर उसके धार्मिक तीर्थ स्थल व उसके मन्दिर है, जिसने 
प्राचीन भारत और उसकी सनातन संस्कृति को आज भी जनमानस के मन मस्तिष्क में हिन्दू धर्म को जीवित रखा है। ऐसे मन्दिरों को देखने के बाद मन सिर्फ और सिर्फ आध्यात्म की ओर ही झुकाव लेने लगता है। ऐसा ही एक अद्भुत मन्दिर कासरगोड जिले से ७ किमी की दूरी पर हरी भरी प्रकृति की गोद स्थित मधुवाहिनी नदी के तट पर मधुर नाम के छोटे से स्थल पर निर्मित मधुर मन्दिर या श्रीमद अनंतेश्वर सिद्धिविनायक मन्दिर एक प्रसिद्ध हिन्दू पूजा स्थल है। हालांकि मधुर मन्दिर में शासन करने वाले देवता भगवान मदनंथेश्वर  ( भगवान शिव का ही एक रूप ) हैं जिसका अर्थ है काम का अंत करने वाले देवता, लेकिन मन्दिर को प्रसिद्धि महागणपति के कारण प्राप्त हुई। यह मन्दिर तुलुनाडु में स्थित छः सबसे प्रमुख गणपति मन्दिरों में से एक है। शिवलिंग की ऊंचाई आम शिवलिंगों के सामान्य ही है परन्तु भगवान श्री गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग २ मीटर है और समय के साथ ही साथ बढ़ रही है। इस मूर्ति को १०वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। 

मन्दिर से जुडी किंवदंतियाँ 

जैसा सभी को पता है, किसी भी किंवदंती का स्रोत जनमानस ही होता है जो उस स्थल पर निवास करता है। इसलिए मन्दिर से जुडी हुई अनेक किंवदंतियाँ है जिसमे से प्रमुख इस प्रकार है -


एक स्थानीय लोककथा के अनुसार, स्थानीय तुलु मोगर समुदाय की मदारु नाम की बुजुर्ग महिला को एक उदभाव मूर्ति ( जिसका निर्माण किसी मानव के द्वारा न किया गया हो ) के रूप में शिवलिंग की प्राप्ति हुई। ऐसी बुजुर्ग महिला के नाम पर इस मंदिर का नाम मघुर मंदिर पड़ा। 


एक दूसरी स्थानीय लोककथा के अनुसार, मन्दिर के पुजारी के छोटे बेटे ने अपने खेलते समय श्री कोविल की दक्षिण दीवार पर एक सुन्दर सा गणेश जी के चित्र का निर्माण किया। जिसे अगले दिन देखने पर उसे आश्चार्य हुआ क्योंकि मंदिर की दीवार पर बनी हुई छवि कुछ बड़ी और मोटी हो गयी थी। जिसके आकार में आज भी बदलाव हो रहा है। गणेश जी की इस छवि को बालक द्वारा "बोड्डाज्जा" या "बोड्डा गणेश" के नाम से बुलाया जाने लगा। 


मधुर महागणपति मंदिर कासरगोड
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण किंवदंती कुंबले सेमे की किंवदंती है, जिसके अनुसार टीपू सुल्तान ने कूर्ग, तुलुनाडु और मालाबार पर अपनी विजय यात्रा के दौरान इस देव स्थल को ध्वस्त करने का इरादा लिए इस स्थल पर पहुंचा। लम्बी और थकाने वाली यात्रा में इस मंदिर तक पहुंचते पहुंचते उसे व उसकी सेना को तीव्र प्यास का अनुभव होने लगा जो की स्वाभाविक था। उसने व उसकी  मन्दिर  रूक कर मंदिर के कुण्ड के स्वच्छ और मीठे जल से  अपनी प्यास बुझाई। उसके बाद शिव कृपा  उसका मंदिर को ध्वस्त करने का विचार बदल गया, किन्तु अपने मौलवियों और सेना को निराश न करने के उद्देश्य से उसने मंदिर के एक स्थल पर अपनी तलवार से हमला करके मन्दिर को ध्वस्त करने का निशान वह छोड़ दिया, जिसे आज भी देखा जा सकता है। 

मन्दिर की वास्तुशैली 

मन्दिर का निर्माण १०वीं शताब्दी में कुंबला के मायपाडी शासकों के द्वारा करवाया गया था। मन्दिर के वर्तमान स्वरुप को १५वीं शताब्दी में पुननिर्मित किया गया था। भव्य मधुर मन्दिर न केवल भक्तों को बल्कि वास्तुशात्र के दिग्गजों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। जिन्हें हिन्दू और जैन स्थापत्य शैली के मिश्रण में रूचि है। 


मधुर महागणपति मंदिर कासरगोड
Image Source- Google Image by Pratheep.com
मन्दिर में तीन स्तरीय गुम्बद है, जिसके शीर्ष दो मंजिलों में ताम्बे के प्लेट की हुई छत है। जबकि सबसे नीचे की छत पर सुन्दर टाइल की छत है। परिसर में उपस्थित जटिल नक्काशीदार लकड़ी के खम्भे और बीम एक बीते युग के शिल्पकारों की कलात्मक गुणवत्ता और वस्तुज्ञान को दर्शाता हैं। मन्दिर की दीवारों और छतों को भारतीय पौराणिक कथाओं को दर्शाते हुए सजाया गया है। गर्भगृह के सामने का मण्डप जिसे नमस्कार मण्डपम कहते है, रामायण के दृश्यों को दर्शाती लकड़ी की नक्काशी से सुशोभित किया गया है। मन्दिर परिसर के अन्दर एक गहरा कुंड है, जिसका पानी सूर्य की किरणों से अछूता रहता है। मन जाता है इस जल में कई औषदीय गुण उपस्थित है। 

मधुर मन्दिर में भगवान मदनंथेश्वर और गणपति के अतिरिक्त मुख्य गर्भगृह में देवी पार्वती भी उपस्थित है। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर में मधुर मन्दिर के छः अन्य उपदेवताओं - काशी विश्वनाथ, धर्मस्थल, सुब्रमण्य, परमेश्वरि देवी दुर्गा, वीरभद्र और गुलिका है जिनके लिए अलग से छोटे छोटे मंदिर है। 


मन्दिर के पूजा का समय 

मन्दिर प्रातःकाल ७:३० बजे से अपराह्न १:३० बजे तक और सायं ५:३० बजे से रात्रि ८:०० बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है। इस समयावधि में उदयास्थमन पूजा, सहस्त्र अप्पा सेवा और पंचकजय्या और महा पूजा के रूप में देवता की की जाने वाली सबसे प्रसिद्ध सेवा है। महापूजा का समय प्रातः ८:०० बजे, अपराह्न १२:३० बजे और रात्रि ८:०० बजे का है। उदयास्थमन पूजा "महागणपति" को दी जाने वाली सेवा है। अप्पा सेवा से रूप में मधुर मन्दिर का प्रसिद्ध प्रसाद "अप्पा" बहुत ही स्वादिष्ट प्रसाद है। इसे प्रतिदिन बनाया जाता है। जो भी भक्त यहाँ पूजा करते है वह इसे मन्दिर प्रशासन के द्वारा बनाये गए काउंटर से प्राप्त करने का लाभ ले सकते है। सहस्त्र अप्पा सेवा मधुर मन्दिर में की जाने वाली सबसे प्रमुख सेवा है।  इसमें एक हजार अप्पों का नैवेद्य भगवान को अपनी मन्नत पूरा होने पर चढ़ाया जाता है। क्योकि भक्तों का मन्ना है, की यह एक प्रकार का भगवान को दिया गया धन्यवाद है।  जिसे प्रसाद के रूप में भक्त अपने घर ले जाते है तथा अपने कुटुंब के साथ बड़े ही चाव से ग्रहण करते है। सहस्त्र अप्पा सेवा के अतिरिक्त एक और पूजा दी जाती है, जिसे मूदप्पम सेवा कहा जाता है। जिसमें महागणपति की प्रतिमा को अप्पम से ढ़क दिया जाता है। यह पूजा सामुदायिक पैमाने जाता है। इस दौरान मन्दिर में एक बड़ी भीड़ दृष्टिगोचर होती है। मन्दिर प्रसादम के रूप में भक्तों को निःशुल्क भोजन भी उपलब्ध कराता है। 


मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य उत्सव 

विनायक चतुर्थी, नवरात्री, विशु और शिवरात्रि मधुर मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य उत्सव है। पांच दिवसीय वार्षिक उत्सव का प्रारम्भ मेदविशु संक्रम दिवस पर पर कोडियेट्टू से होती है। गणेश चतुर्थी और मधुर बेदी नामक उत्सव मन्दिर के ऐसे उत्सव है जिसमे देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त गण मंदिर में आते है। मधुर बेदी एक पांच दिवसीय रंगा रंग उत्सव है जिसमें चौथे दिन भगवान की उत्सव मूर्ति ( थिदंपु ) को जुलुस में शामिल किया जाता है।


वेद कक्षा 

मन्दिर ग्रीष्म के अवकाश के दौरान युवाओं को वेद की शिक्षा प्रदान करने के लिए कक्षा ( क्लासेज ) का आयोजन करता है। जिसमें केरल और कर्नाटक के छात्र वैदिक अध्ययन करने के लिए आते हैं। जिनके रहने और भोजन की सभी व्यवस्थाए मंदिर प्रबंधन समिति के द्वारा की जाती है। इस समय पूरा मंदिर ही वेद मंत्रोच्चार से गूंजता रहता है।    


मधुर महागणपति मंदिर कासरगोड
प्रकृति की गोद में आयोजित वेद कक्षा 

मधुर महागणपति मंदिर तक कैसे पहुंचे ?

मधुर गणपति मन्दिर के निकट बहने वाली मदुवाहिनी नदी वर्षा काल में मंदिर में बहती है।  इन दिनो में मंदिर के तंत्री ( पुजारी ) श्रीकोविल ( गर्भगृह ) तक बड़ी गोल नावों के द्वारा आते है। अतः वर्षा की ऋतु के अतिरिक्त आप कभी भी मंदिर में जा सकते है किन्तु सबसे अच्छा समय सितम्बर से मार्च माह का समय है, जब दक्षिण भारत का मौसम अन्य माह की अपेक्षा कुछ ठंडा व सुहावना होता है। यूँ तो पूरा केरल ही सड़क मार्ग और रेल मार्ग के सुनियोजित तंत्र से जुड़ा हुआ है इसलिए कासरगोड पहुंचना भी बहुत ही सुगम है। 


सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कासरगोड रेलवे स्टेशन जहा से शांत और सुरम्य मन्दिर द्वार की दूरी ९ किमी है। जिसके लिए ऑटो रिक्शा बड़ी ही सुगमता से उपलब्ध है। 


सबसे निकटतम हवाई अड्डा मैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जहा से मंदिर परिसर की दूरी ६४ किमी है। आने वाले दर्शनार्थी यहाँ से निजी अथवा राजकीय वाहन के द्वारा मन्दिर परिसर तक  पहुंच सकते है।  


मधुर महागणपति मंदिर का पता 

मधुर मन्दिर / श्री मदनंथेश्वर सिद्धि विनायक मन्दिर 
नीरचल - कोट्ट्ककनी 
मधुर रोड, मधुर 
कासरगोड जिला 
केरल 
भारत 
६७११२४ 


  



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