वेल्लोर, भारत देश के दक्षिणी भू -भाग तमिलनाडु राज्य का जिला और प्रशासनिक मुख्यालय है, जो तमिलनाडु के उत्तरपूर्वी भाग में पलार नदी के तट पर स्थित है। इस पर कई वर्षों तक पल्लव, चोल, विजय नगर साम्राज्य, मराठा, कर्नाटक साम्राज्य और ब्रिटिशों द्वारा शासन किया गया, जिसके कारण वेल्लोर शहर का विकास एक मिश्रित सांस्कृतिक धरोहर के रूप में हुआ। इस शहर का मुख्य योगदान १७वीं शताब्दी में कर्नाटक युद्ध के दौरान रहा है।
![]() |
अक्षांश और देशान्तर - १२. ९३४९६८,७९. १४६८८१ |
एक किंवदंती के अनुसार, प्रकृति ने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए इस क्षेत्र का घिराव बबूल के पेड़ों से कर लिया, जिसके कारण इसका नाम 'वेल्लोर' पड़ा।
वेल्लोर भारत का तैयार चमड़े के सामान का सबसे बड़ा निर्यातक जिला है। यहाँ देश के ३७% से अधिक तैयार चमड़े के उत्पादों का निर्यात होता है। व्यापर के साथ साथ ही सैन्य सेवा में इस जिले का उत्कृष्ट प्रदर्शन सदैव ही सराहनीय रहा है। जिले के अधिकाधिक पुरुषों ने राष्ट्रीय अदम्य भावना और साहस के साथ देश की सेवा के लिए खुद को सेना में समर्पित किया है। यहाँ के लोगों की वीरता को प्रमाणित करने के लिए वेल्लोर के घंटाघर जो १९२८ ईस्वी में बनाया गया था की इमारत पर उत्क्रेरित एक शिलालेख से मिलता है।
वेल्लोर देश में उच्च चिकित्सा और तकनीकी शिक्षा को प्रदान करने के लिए भी जाना जाता है। देश का पहला स्टेम सेल ट्रांसलेशनल रिसर्च सेण्टर दिसंबर २००५ में स्थापित किया गया था। केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इसके विश्वस्तरीय जैव रसायन और नैदानिक हेमेटोलॉजी विभाग के कारण इसे शिक्षा केंद्रों की श्रृंखला में चयनित किया गया।
वेल्लोर कैसे पहुँचे ?
वायु मार्ग से
वेल्लोर हवाई अड्डा १९३४ में, शहर के केंद्र से ११ किमी दूर अब्दुल्लापुरम में स्थित है। मद्रास फ्लाइंग क्लब के प्रशिक्षु पायलटों द्वारा नियमित उड़ानों की सुविधा के लिए जुलाई २००६ में भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण के निष्क्रिय हवाई अड्डे सक्रियण कार्यक्रम के दौरान इसे पुनः सक्रिय करने का प्रयास किया गया जिसका कार्य अभी भी प्रगति पर है।
वेल्लोर आने के लिए सबसे निकटम हवाई अड्डा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा चेन्नई हवाई अड्डा है। जो देश के सभी प्रमुख बड़े और छोटे हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ हैं। यहाँ से आप वेल्लोर के लिए बस, प्राइवेट टैक्सी या कैब ले सकते हैं।
रेल मार्ग से
वेल्लोर में तीन प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं - वेल्लोर काटपाडी जंक्शन, वेल्लोर छावनी और वेल्लोर टाउन। वेल्लोर काटपाडी जंक्शन जो देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। यह दक्षिण भारत का प्रमुख और व्यस्ततम जंक्शन हैं। वेल्लोर छावनी, वेल्लोर काटपाडी जंक्शन से ८ किमी दूर विलुप्पुरम तिरुपति ब्रॉड गेज लाइन पर सूर्यकुलम में है। जहां से ईमयू और यात्री ट्रेनों द्वारा आप तिरुपति, चेन्नई और अरकोनम रेलवे स्टेशनों से आसानी से पहुंच सकते है। वेल्लोर टाउन स्टेशन कोनावट्टम में तिरुवन्नामलाई के माध्यम से वेल्लोर काटपाडी जंक्शन और वेल्लोर छावनीको जोड़ने वाली लाइन पर है।
सड़क मार्ग से
वेल्लोर, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों के प्रमुख शहरों द्वारा सड़क से NH ४०, NH ४४, NH ४८ और NH ५४४ के माध्यम से जुड़ा हुआ हैं। वेल्लोर में सिटी बस सेवा उपलब्ध है, जो शहर, उपनगरों और दर्शनीय स्थलों को जोड़ती है। यहाँ पर दो बस स्टेशन हैं - टाउन बस टर्मिनल (वेल्लोर किल्ले के सामने) और दूसरा सेन्ट्रल बस टर्मिनल (ग्रीन सर्किल के पास)।
वेल्लोर यात्रा को अविस्मरणीय बनाने वाले प्रमुख स्थान
क्या आप वेल्लोर जाने की योजना बना रहे हैं ? यहाँ वेल्लोर में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहें हैं, जो तमिलनाडु के इस शहर को ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा के लिए एक प्रसिद्ध स्थान बनाती है। सुनिश्चित करें की आप अपनी यात्रा पर स्थानों की यात्रा जरूर करें।
👉रामेश्वरम : एक अद्भुत धार्मिक तीर्थयात्रा, पिछला लेख पढ़ने के लिए क्लिक करे।
वेल्लोर किला
जैसा कि इतिहासकारों ने अपनी अपनी कृतियों में उल्लेख किया है उससे पता चलता है कि "पृथ्वी पर वेल्लोर के किले जैसा दूसरा किला कोई भी नहीं है"। किले को दक्षिणी भारत में सैन्य वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है और अपनी भव्य प्राचीर, चौड़ी खाई और निर्माण के लिए जाना जाता है। इसके चारों ओर एक गहरी पानी की खाई है, जिसमें किसी समय में १०,००० मगरमच्छ झुण्ड में रहते थे और किले में घुसने वाले हर घुसपैठिए को अपना आहार बनाने को तत्पर रहते थे। किले की प्राचीर की चौड़ाई इतनी है की इस पर आप समान्तर दो गाड़ियां चला सकते है। किले का निर्माण अरकोट और चित्तौड़ जिलों की पास के खदानों से मिलने वाले ग्रेनाइट से किया गया गया है।
![]() |
वेल्लोर किले का आकाशीय दृश्य |
किले का विस्तार १३३ एकड़ (लगभग ०. ५४ वर्ग किमी) के क्षेत्र में है और एक टूटी हुई पर्वत शृंखला के भीतर २२० मी (लगभग ७२० फ़ीट) की ऊंचाई पर सहित है। साथ ही साथ यह प्राकृतिक संरचना बाहरी आक्रमण के समय किले को एक अतिरिक्त सुरक्षा पंक्ति प्रदान करती है। ऐसा माना जाता है कि किले में १२ किमी दूर विरिनजिपुरम की ओर जाने के लिए एक सुरंग है जो आक्रमण के समय राजघराने के लोगों को किले से सुरक्षित निकलने में सहायता करती थी परन्तु एसआई के शोधकर्ताओं को अपनी जाँच में इस तरह के किसी भी मार्ग का कोई भी प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं।
![]() |
वेल्लोर किला |
वेल्लोर किले में शाही बंदियों टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद उसकी माँ, पत्नी और बच्चों को बंदी बना कर रखा गया था। जिन्हें १८०६ के विद्रोह के बाद कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया गया था। जिनकी मृत्यु के बाद उनकी कब्रें किले के पूर्वी हिस्से में बनायीं गयी है। वेल्लोर किले में युद्धबंदी के रूप में अंतिम युद्धबंदी श्रीलंका के अन्तिम शासक श्री विक्रम राजसिंह (१७९८-१८१५) व् उनका परिवार था जिन्होंने अपने अन्तिम १७ साल वहां पर व्यतीत किये।
समय : प्रातः ८ बजे से सायं ६ बजे तक
जलकंदेश्वर मंदिर
जलकंदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक मन्दिर है जो वेल्लोर किले में स्थित है। जिसका निर्माण विजय नगर के महाराज सदाशिवदेव महाराय के शासनकाल के दौरान किया गया था। पुरानी कथाओं के अनुसार, इस स्थान पर एक विशाल चींटी - पहाड़ी थी, जहां अब मंदिर का गर्भ गृह है।चिन्ना बोम्मी रेड्डी जो विजय नगर के सरदार थे, को भगवान शिव ने सपने में आकर के इस स्थान पर मंदिर के निर्माण करने की आज्ञा दी। चूंकि लिंगम पानी से घिरा हुआ था तो देवता को जलकंदेश्वर "पानी में रहने वाले शिव" (तमिल में अनुवादित) के नाम से पुकारा जाता है। मन्दिर में श्री अखिलंदीश्वरी अम्मा की मूर्ति भी है, जो भगवान जलकंदेश्वर की पत्नी है।
![]() |
जलकंदेश्वर मंदिर |
मंदिर का निर्माण जल की अगाजी (अगाजी का हिंदी अर्थ कुंड) के मध्य में हुआ है, जिसका पानी मंदिर के चारों ओर एक माला की तरह प्रतीत होता है। इस कुंड की परिधि ८००० फीट है। मंदिर के भीतरी हाल कल्याण मण्डपम में दो मुखी मूर्ति है, जो एक बैल और एक हाथी की है। देवता की मूर्ति को अभिषेक (स्नान) कराने के लिए इस्तेमाल में आने वाला जल मंदिर के भीतर मौजूद प्राचीन कुँए गंगा गौरी तीर्थम से ही निकला जाता है।
मंदिर की मुख्य विशेषता वह पर उपस्थित नंदी की मूर्ति के पीछे एक मिट्टी का दीपक है, जिसके बारे में कहा है की जब कुछ लोग इस पर हाथ रखते हैं तो वह घूमता है। जिससे संकेत प्राप्त होता है की आप की मनोकामना पूरी होगी की नहीं। चैत्र पूर्णिमा, महाशिवरात्रि, आदिपुरम, विनायक चतुर्थी, नवरात्री मंदिर में मनायें जाने वाले प्रमुख पर्व हैं।
![]() |
जलकंदेश्वर मन्दिर के हॉल की नक्काशी |
स्थान :बालाजी नगर, वेल्लोर किला, तमिलनाडु
समय :प्रातः ८ बजे से सायं ६ बजे तक
सेंट जॉन चर्च
श्रीपुरम स्वर्ण मन्दिर
![]() |
श्रीपुरम स्वर्ण मन्दिर |
स्थान : जावडी हिल्स, अलंगयम, कवलूर, तमिलनाडु
समय : प्रातः ८ बजे से अपराह्न १२ बजे तक तथा अपराह्न ३ बजे सायं ७:३० बजे तक
रत्नागिरी मुरुगन मन्दिर
यदि आप वेल्लोर में घूमने के लिए और स्थानों की खोज कर रहे हैं, तो रत्नागिरी मुरुगन मन्दिर को अपनी सूची में शामिल करना न भूलें। १४वीं शताब्दी में अरुणागिरि नाथर द्वारा बनवाया गया यह मन्दिर एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है।
![]() |
भगवान बाला मुरुगन अपनी पत्नी वल्ली और देवसेना के साथ |
![]() |
मुरुगन मन्दिर |
जिसे अक्टूबर-नवम्बर के माह में मनाया जाता है। इस समय मन्दिर में सबसे ज्यादा श्रदालु भगवान श्री मुरुगन के दर्शन के लिए आते हैं। जुलाई-अगस्त के महीने में आदि क्रुथुकाई भी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। त्योहारों में भगवान मुरुगन और उनकी पत्नी देवी वल्ली और देवसेना की मूर्तियों को सोने और चांदी के आभूषणों से सजाया जाता है। फिर मूर्तियों को मंदिर के चारों ओर स्वर्ण रथ पर बैठा कर मंदिर की परिक्रमा कराई जाती है।
श्री मार्गबंदेश्वर मन्दिर
![]() |
श्री मार्गबंदेश्वर मन्दिर |
समय : प्रातः ६ बजे से अपराह्न १२ बजे तक तथा अपराह्न ४:३० बजे सायं ८ बजे तक
पाळमथी हिल्स
पाळमथी हिल्स को बालमथी हिल्स के नाम से भी जाना जाता है, जो पूर्वी घाट का एक क्षेत्र है। ओटेरी झील और पाळमथी रिजर्व फॉरेस्ट से युक्त पाळमथी हिल्स प्रदूषण और मुख्य शहर से दूर पशु पक्षियों की देशी प्रजातियों के साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है। पाळमथी मंदिर एक हिन्दू मन्दिर है, जो पाळमथी पहाड़ी की चोटी पर भगवान मुरुगन को समर्पित है। इस मन्दिर की यात्रा अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव है क्योंकि मन्दिर में देवता के दर्शन तभी हो सकते हैं जब आप सीधी खड़ी सीढ़ियों पर चढ़ने की मेहनत करने की चुनौती स्वीकार करते हैं।
![]() |
ओटेरी झील |
स्थान :वेल्लोर तमिलनाडु
समय :प्रातः ६ से सायं ८ बजे तक
अमिर्थी जुलाँजिकल पार्क
![]() |
अमिर्थी जूलॉजिकल पार्क |
दिल्ली गेट
![]() |
दिल्ली गेट |
समय : प्रातः ९ से सायं ५ बजे तक
कैगल जल प्रपात
![]() |
कैगल जलप्रपात |
समय : दिन में कभी भी
कप और तश्तरी जल प्रपात
![]() |
कप और तश्तरी जलप्रपात |
कप और तश्तरी जल प्रपात की ऊंचाई १५० फीट है और यह देखने में एक अद्भुत दृश्य बनाती है जो चारों ओर से हरे भरे वृक्षों और बेलों से घिरा हुआ हैं। पहाड़ी को आसपास के स्थानीय निवासियों द्वारा जमाधी हिल के रूप में जाना जाता है। जल प्रपात को अपना यह नाम सथुवाचारी नगर निगम द्वारा एक टैंक के कारण दिया गया है। जो एक कप और तश्तरी के आकार का होता है। इसके ठन्डे और साफ पानी में कूदने और तरोताजा होने का अपना ही मजा है। जल प्रपात में ऊपर इसके शीर्ष तक जाने के लिए सीढियाँ भी है जहाँ से आप गिरते हुए पानी को पास से देख सकते हैं। यूं तो यह जल प्रपात बड़ा नहीं है परन्तु प्रकृति के प्रेमी हाइकर्स और डे ट्रिपर्स जो एक ही दिन में एक दिलचस्प यात्रा का आनंद लेना चाहते हैं, वो इस स्थान का चुनाव करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं। यहाँ पर घूमने का मजा तब ही है जब सूरज की गर्मी कम या न के बराबर हो।
समय :दिन में कभी भी
सरकारी संग्रहालय वेल्लोर
सरकारी संग्रहालय वेल्लोर, ऐतिहासिक वेल्लोर किले भीतर है, जिसकी स्थापना १९८५ में की गयी थी। वेल्लोर की संस्कृति पर कई संस्कृतियों का आदिपत्य रहा है जिनकी कला, पुरातत्व साक्ष्य, नृविज्ञान, भूविज्ञान, वनस्पति विज्ञान आदि के द्वारा दर्शाया गया हैं। पर्यटको को आकर्षित करने के लिए प्रवेश द्वार पर १६ फीट ऊँची ट्राइनोसाँरस का मॉडल प्रदर्शित किया गया है। वेल्लोरे किले से खोजी गयी १८वीं शताब्दी की दो तोपों को भी प्रवेश स्थल के पास ही रखा गया है। इसके अतरिक्त पत्थर की मुर्तिया, हीरो स्टोन्स, विभिन्न स्थानों से मिले शिलालेख और गन पाउडर फ्लास्क, तोप के गोले आदि भी आकर्षण का केंद्र है। इस संग्रहालय में आठ अलग अलग गैलरी है जो क्रमशः इस प्रकार है -
परिचयात्मक गैलरी - इस गैलेरी में जिले की ऐतिहासिक तस्वीरें हैं जैसे स्मारक, वेल्लोर और तिरुवन्नामलाई के भौगोलिक मानचित्र प्रदर्शित किये गए है।
पत्थर की मूर्तियां गैलरी - इस शासनकाल में पल्लव,चोल और विजयनगर राजवंशों जैसे ऐतिहासिक राज्यों का शासन था। इन राजवंशो की पत्थर की मूर्तियां इस गैलरी में प्रदर्शन के लिए रखी गयी हैं।
आर्ट गैलरी - विभिन्न कलाकारों की चित्र कला को इस गैलरी में प्रदर्शन के लिए रखा गया हैं।
मुद्रशास्त्रीय गैलरी - सिक्के इतिहास को जानने का अमूल्य स्रोत हैं। इस गैलरी में दक्षिण भारत के साथ साथ उत्तर भारत के सिक्के प्रदर्शन के लिए रखे गये हैं।
कांस्य गैलरी - दक्षिण भारतीय कांस्य कलात्मक रूप से अद्वितीय हैं जिसे वेल्लोर और तिरुवन्नामलाई जिलों से प्राप्त किया गया है। इस गैलरी का मुख्य आकर्षण श्रीलंका के अन्तिम शासक श्री विक्रमराज सिंह की प्राचीन वस्तुएँ हैं।
प्राकृतिक विज्ञान गैलरी - जूलॉजिकल महत्व के संरक्षित नमूने,मूंगा, समुद्री घोड़े महत्वपूर्ण वानस्पतिय औषधीय पौधे और इसके उपयोग और खनिज और जीवाश्म इस गैलरी के मुख्य आकर्षण है।
2 टिप्पणियाँ
Nice information you shared !!!
जवाब देंहटाएंJankari ke liye धन्यवाद Great job☺
जवाब देंहटाएं