पारम्परिक विरासत और अदूषित, शान्त, प्राकृतिक अलंकरण का शुद्ध समागम, तमिलनाडु का समुद्र तटीय पवित्र शहर रामेश्वरम, जो आकर्षक पंबन द्वीप का हिस्सा है तथा पड़ोसी देश श्री लंका (प्राचीन नाम सोलन) के सबसे करीब है। पंबन पुल प्रसिद्ध शहर रामेश्वरम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। पवित्र चार धामों में से एक के रूप में इस शहर का हिन्दुओं के लिए विशेष महत्व है। भले ही आप धार्मिक रूप से इच्छुक नहीं हैं, रामेश्वरम की यात्रा आपको आध्यात्मिक रूप से उत्तेजित और आश्चर्यचकित कर देगी। यह बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर से चारों ओर से घिरा हुआ, एक सुन्दर शंख आकार का द्वीप है। यहाँ भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसे बाद में विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोडी नाम के स्थान पर तोड़ दिया गया था।
दंतकथा
रामायण के अनुसार, प्रभु श्री राम, जो की भगवान विष्णु के सातवें अवतार है। राक्षस राज रावण द्वारा अपनी भार्या जानकी जी हरण करने के बाद उसे शुभ गति प्रदान कर माता जानकी के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान किया तो माता जानकी को वो सभी स्थान दिखाने शुरू किये। जहाँ उन्होंने और उनकी सेना ने किस किस स्थान पर क्या क्या क्रियायें की थी। इसी वर्णन मे जब उन्होंने समुद्र के किनारे पर पहुंचे तो उन्होंने माता जानकी को वो स्थान भी दिखाया जहाँ उन्होंने सेतु निर्माण के पूर्व भगवान शिव की उपासना की थी। तब श्री राम ने लंका युद्ध में अर्जित अपने पापों (राक्षस राज रावण जो कि एक ब्राम्हण था की मृत्यु से ब्रह्म हत्या का पाप भगवान श्री राम को लगा था) का प्रायश्चित करने का विचार किया। अतः वह तपस्या करने के इच्छुक थे,परन्तु तत्कालीन ऋषि मुनियों ने विचार कर प्रभु से इस पाप से मुक्ति पाने हेतु शिवलिंग की स्थापना व पूजा करने की सलाह दी। तब श्री राम ने अपने विशेष सलाहकार भक्त शिरोमणि हनुमान जी को हिमालय से लिंग लाने का आदेश दिया परन्तु हनुमान जी द्वारा शिवलिंग लाने में विलम्ब जानकर माता सीता ने समुद्र के किनारे उपलब्ध बालू से बालू का एक शिवलिंग निर्मित किया, जिसे गर्भगृह का शिवलिंग कहा जाता है।
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माता जानकी द्वारा निर्मित शिवलिंग |
रामेश्वरम शहर के दर्शनीय मन्दिर
रामनाथस्वामी मन्दिर
रामेश्वरम को जो असमान्य बनाता हैं, वह यह है कि हालांकि यह शहर मुख्य रूप से भगवान राम से जुड़ा है, लेकिन इसका प्रधान मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। रामनाथस्वामी (रामेश्वरम का अर्थ संस्कृत में "राम के भगवान" (राम ईश्वरम) है, जो रामनाथस्वामी मन्दिर के पीठासीन देवता भगवान शिव का एक विशेष नाम है) मन्दिर इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि द्वादश ज्योतिर्लिंगों (प्रकाश का स्तम्ब) में से एक है। यह पूरे भारत का एक मात्र मन्दिर है जहाँ दो शिवलिंग है और उन दोनों की पूजा सभी दर्शनार्थियों द्वारा की जाती है। रामेश्वरम शहर का रामनाथस्वामी मन्दिर वैष्णव व शैव दोनों समुदाय के लिए पवित्रस्थल है। मंदिर का निर्माण १२वीं शताब्दी के बाद से विभिन्न शासकों द्वारा किया गया था। जो दर्शनार्थी हिन्दू नहीं है, वे इसके १२०० से अधिक नक्काशीदार बलुआ पत्थर के खम्बों के शानदार हॉल में सबसे अधिक रूचि लेंगे, जो बाहरी गलियारे का निर्माण करते है। छत रंगीन कमलों के नक्काशी से आच्छादित हैं। दुर्भाग्य से अब बढ़ी हुई सुरक्षा व्यवस्था के कारण अब मन्दिर क्षेत्र में छायाचित्रण (फोटोग्राफी) की अनुमति नहीं है। मोबाइल फोन और कैमरे सहित सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को मन्दिर मे प्रवेश करने से पहले भण्डारण काउंटर पर जमा कराया जाता हैं।
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रामनाथस्वामी शिवलिंग |
मंदिर प्रातः ५ बजे से अपराह्न १ बजे तक और अपराह्न ३ बजे से ९ बजे रात्रि तक खुला रहता है। प्रातः ५ बजे से प्रातः ६ बजे तक स्फटिक लिंगम दर्शन करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। श्री चक्र और स्फटिक लिंगम की स्थापना हिन्दू भिक्षु शंकराचार्य ने की थी। नया स्फटिक लिंगम जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी द्वारा स्थापित किया गया जो फरवरी २०२१ में दक्षिणानमाय श्रृंगेरी शारदा पीठम के ३६वें शंकराचार्य थे।
मन्दिर आर्किटेक्चर
गर्भगृह में दो शिवलिंग हैं - प्रथम श्री सीता-राम द्वारा निर्मित रेत से, मुख्य देवता के रूप में निवास करते हुए, रामलिंगम और द्वितीय कैलाश से राम भक्त हनुमान द्वारा लाया गया, जिसे विश्वलिंगम कहा जाता है। राम ने निर्देश दिया था कि हनुमान द्वारा लाये गए विश्वलिंगम की पूजा पहले की जानी चाहिए यह परम्परा आज भी जारी हैं।
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रामनाथस्वामी मन्दिर गोपुरम |
दक्षिण भारत की अपनी ही एक देवस्थलों की निर्माणशैली हैं। जिसका असर आपको यहाँ भी देखने को मिलेगा। मन्दिर परिसर के चारों ओर पूर्व से पश्चिम तक लगभग ८६५ फीट और उत्तर से दक्षिण तक लगभग ६५७ फीट लम्बाई का परिसर है जो ऊँची ऊँची दीवारों से घिरा है। चारों दिशाओं मे मंदिर में प्रवेश के लिए चार प्रवेश द्वार है। मंदिर का दूसरा गलियारा बलुआ पत्थर के खम्बों, बीम और छत से बना है। मन्दिर के पश्चिम में तीसरे गलियारे का मिलन बिंदु (जक्शन) और पश्चिम गोपुरम (विशाल टॉवर) से सेतुमाधव मन्दिर तक जाने वाला पक्का मार्ग एक शतरंज बोर्ड के रूप में एक अनूठी आकृति का निर्माण करता है जो की मन्दिर का एक आकर्षण बिंदु हैं, जिसे चोककट्टन मदपम के नाम से जाना जाता है। जहां उत्सव देवताओं को सजाया जाता हैं।
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रामनाथ स्वामी मंदिर का गलियारा |
मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लम्बा गलियारा माना जाता है। जिसकी ऊंचाई लगभग ६.९ मीटर, पूर्व से पश्चिम तक ४०० फीट और उत्तर से दक्षिण ६४० फीट है। भीतरी गलियारा पूर्व और पश्चिम मे लगभग २२४ फ़ीट और उत्तर और दक्षिण में ३५२ फीट है। इस प्रकार गलियारों की सम्पूर्ण लम्बाई ३८५० फीट है। बाहरी गलियारे मे लगभग १२१२ स्तम्भ है। जिनकी ऊंचाई फर्श से छत के बीच तक करीब ३० फीट हैं। मुख्य मन्दिर या राजगोपुरम ५३ मीटर ऊँचा है। मन्दिर का विस्तार ६ हेक्ट के विशाल क्षेत्र में है।
प्रारम्भिक काल में रामनाथस्वामी मंदिर एक फूस का शेड था। वर्तमान संरचना कई सदियों में अनन्य व्यक्तियों द्वारा किये गए कार्यो का परिणाम है। रामनाथस्वामी और उनकी पत्नी देवी पवर्तवर्धनी के लिए एक गलियारे से अलग अलग मंदिर हैं। देवी विशालाक्षी, सायनगरी, विष्णु और गणेश सभी के लिए अलग अलग मन्दिर का निर्माण मंदिर क्षेत्र में ही किया गया है। मन्दिर में देवी विशालाक्षी के गर्भ -गृह के निकट ही ९ ज्योर्तिलिंग है, जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित बतायें जाते हैं।
हनुमान मन्दिर
हनुमान मन्दिर रामनाथस्वामी मन्दिर से थोड़ी दूरी पर लक्ष्मण मन्दिर के बगल में स्थित है। जो काळे पत्थर पर उकेरित अद्भुत पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति है। पंचमुखी हनुमान, हनुमान जी का सबसे शक्तिशाली स्वरुप है, जिनके पांच शीश पांच शक्तिशाली देवताओं का प्रतिनिधित्व करते है। प्रवेश द्वार से मंदिर तक भगवान का मुख विपरीत दिशा में है।
धनुषकोडी मन्दिर
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कोथंदरामास्वामी मन्दिर |
धनुषकोडी मंदिर, जिसे कोथंदरामास्वामी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। मूल मंदिर ५००-१००० साल पुराना है। इस मंदिर में भक्त भगवान राम की मूर्ति को हाँथ में अपना धनुष या कोठंडम पकडे हुए दर्शन कर सकते है। किवदंती अनुसार यह वह स्थान हैं जहां विभीषण, भगवान श्री राम की शरण मे आये थे और यहीं पर भगवान ने उनका राज्याभिषेक किया था।
अग्नितीर्थम
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अग्नितीर्थम |
पूरे रामेश्वरम और उसके आसपास ६४ तीर्थम (पवित्र जल कुंड) है। स्कन्द पुराण के अनुसार इनमें से २४ तीर्थम प्रमुख हैं। २४ में से १४ मंदिर के परिसर में तालाब और कुंओ के रूप में है। इन जल कुंडो में स्नान करना रामेश्वरम की तीर्थयात्रा का प्रमुख पहलू हैं जिसे एक तपस्या के बराबर माना जाता हैं। कुल २२ तीर्थम रामनाथस्वामी मंदिर परिसर में ही है। सबसे प्रमुख तीर्थम अग्नि तीर्थम हैं। मांन्यता अनुसार जो भी श्रद्धालु इसमें स्नान करते है उनके सारे पाप धूल जाते हैं।
एकान्त राम
तंगचिडम स्टेशन के पास एक जीर्ण मंदिर है। जिसे 'एकांत' राम' का मंदिर कहते हैं। अब इस मंदिर के अवशेष ही बाकी है। रामनवमी के पावन पर्व पर यहाँ एक अलग ही प्रकार की रौनक देखने को मिलती है। मन्दिर में श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मण और हनुमान जी की सुन्दर प्रतिमायें हैं। यहाँ पर भगवान राम की मूर्ति कुछ इस प्रकार बनाई गयी है जैसे वह कोई गंभीर विषय पर वार्ता कर रहे हो तथा एक अन्य मूर्ति में ऐसा जान पड़ता है जैसे वो सीता जी की ओर देख कर मंद मुस्कान के साथ कुछ कह रहे हो। यह दोनों मूर्तियां बड़ी ही मनोरम हैं। यहाँ सागर की लहरें बिलकुल शांत शायद इसीलिए इस स्थान का नाम एकांत राम है।
देवी मन्दिर
जिसप्रकार से रामनाथस्वामी मन्दिर में भगवान शिव दो शिवलिंगो में विराजमान है उसी प्रकार देवी पार्वती भी यहाँ दो अलग अलग मूर्तियों में स्थापित की गयी है। जिनमें से एक मूर्ति को पर्वतवर्द्धिनी तथा दूसरी मूर्ति को विशालाक्षी के नाम से भक्तों द्वारा बुलाया जाता है। मन्दिर के पूर्व द्वार के बाहर हनुमान जी की मुर्तिया स्थापित है।
सीता कुंड
रामेश्वरम में कई ऐसे जलकुंड है जहाँ स्नान करने से प्राणी मात्र को समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है उनमें से सीता कुंड जो की रामनाथस्वामी मंदिर के पूर्वी द्वार पर स्थित है को मुख्य स्थान प्राप्त है। प्राचीन कथानुसार यह वही स्थान है जहाँ माता सीता ने अपना सतीत्व प्रमाणित करने की परीक्षा दी थीं। माता सीता के अग्नि में प्रवेश करते ही अग्नि बुझ गयी और अग्नि कुंड से जल उमड़ आया।
विल्लीरणि तीर्थ
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विल्लूरणि तीर्थ |
रामेश्वरम के अन्य दर्शनीय स्थल
धनुषकोडी का एरी घोस्ट टाउन
१९६४ में रामेश्वरम के पास स्थित धनुषकोडी के फलते-फूलते व्यापारिक शहर की टक्कर लगभग १७० मील प्रति घंटे की गति से आते एक चक्रवात से हुई जिसमे सम्पूर्ण नगर और एक यात्री ट्रेन पूर्णतया नष्ट हो गयें। अनुमान के अनुसार लगभग २००० के आसपास जान की हानि हुई। शहर का अधिकांश हिस्सा समुद्र में डूब गया। सरकार ने इसे घोस्ट टाउन घोषित कर दिया, जो रहने के लिए पूर्णतया वर्जित हैं। रेत के नीचे एक रेलवे ट्रैक भी है। जो धनुषकोडी के एक घाट पर समाप्त होती थी। जहाँ से श्रीलंका नौका द्वारा जाया जा सकता था। हालाँकि अब एक नयी सुंदर सड़क जो धनुषकोडी से होते हुए अरिचल मुनई (इरोजन पॉइंट) में भूमि भाग के अंत तक जाती है।अरिचल मुनई जो की तकनीकी रूप से भारत और श्रीलंका के बीच की सीमा है। चूंकि दोनों देशों की दूरी केवल १८ समुद्री मील है, जो एक व्यावहारिक सीमा रेखा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को पूरा नहीं करता है। इसलिए दोनों देशों की सरकारों ने एक आंतरिक सहमति से ही सीमा रेखा का निर्धारण कर लिया है।
आदि सेतु एवं राम सेतु
रामेश्वरम से सात मील दक्षिण मे एक स्थान है जिसे 'दर्भशयनम' कहते हैं, यह वही स्थान है जहाँ से सेतुबंध के कार्य का शुभारम्भ हुआ था। इस कारण इस स्थान को आदि सेतु के नाम से जाना जाता है।
जब भी कही राम की चर्चा हो और उनकी सेना द्वारा निर्मित सेतु का वर्णन न हो यह तो असंभव हैं। चूना पत्थर की एक शृंखला, जिसे एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है, श्रीलंका के तट तक फैली हुई है। रामायण में उल्लेखित राम सेतु इसे ही कहा जाता है और इसके अवशेष धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली रेखा के रूप में आज भी उपलब्ध हैं जिसकी पुष्टि नासा द्वारा भी की गयी है। यह भी कहा जाता है की १४८० के चक्रवात के पूर्व तक इस सेतु पर चलना सम्भव था। यह सेतु राम काल में पांच दिन में राम नाम के साथ उच्च तकनीक द्वारा बनाया गया था। इस सेतु की लम्बाई १०० योजन व चौड़ाई १० योजन थी।
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पंबन ब्रिज
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पंबन और अन्नाई इंदिरा गाँधी रोड ब्रिज |
पंबन द्वीप दो उल्लेखनीय पुलों द्वारा भारतीय मुख्य भूमि से जुड़ता हैं। एक है पंबन ब्रिज जो की भारत का सबसे पुराना समुद्री पुल है। जो १९१४ से कार्यान्वित है। दूसरा अन्नाई इंदिरा गाँधी रोड ब्रिज है। जो की १९८८ में आम लोगों के लिए खोल दिया गया था और रेलवे ब्रिज के समानांतर चलता है। यह भारत का दूसरा सबसे लम्बा समुद्री पुल (२.३५ किमी ) है।
गंधमादन पर्वत
रामेश्वरम शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी सी पहाड़ी है। हनुमान जी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मरी थी। बाद में लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुन्दर सा मंदिर बना हुआ है। जहां राम के चरण एक चक्र पर छाप के रूप में पूजे जाते है। इसे पादुका मंदिर या रामरपथम मंदिर के नाम से जाना जाता है।
जल पक्षी अभयारण्य
पक्षी और प्रकृति प्रेमियों के लिए पक्षी अभयारण्य एक प्रकार का स्वर्ग है। यहाँ आप दिसम्बर से मार्च तक के महीने मे जाये यदि आप भाग्यशाली हुए तो आप को फ्लेमिंगो पक्षी जो ऑस्ट्रेलिया से भारत की यात्रा करते हैं, देखें जा सकते है। इसके अतरिक्त चित्रगुड़ी, कांजीरंकुलम और सक्काराकोट्टई पक्षी अभयारण्य है। जहाँ प्रचुरमात्रा में सारस, पेलिकन और आइबिस को देखा जा सकता है।
कलाम नेशनल मेमोरियल
भारत के ११वे राष्ट्रपति ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम जी का जन्मस्थान रामेश्वरम है। उनके पैतृक घर जो मस्जिद स्ट्रीट पर है, को अब एक संग्रहालय में परिणित कर दिया गया है। जिसका रखरखाव उनके बड़े भाई करते हैं। संग्रहालय प्रातः ८ बजे से सायं ७ बजे तक खुला रहता है। यहाँ आपको उनके विषय में जैसे उनकी डिग्री और उनके द्वारा अर्जित पुरस्कार आदि बहुत कुछ जानने को मिलेगा।
सी वर्ल्ड एक्वेरियम
सी वर्ल्ड एक्वेरियम रामेश्वरम बस स्टैण्ड के सामने स्थित एक प्राकृतिक आवास है, जिसमे पानी के नीचे के जीवों का वर्गीकरण है - यह राज्य में अपनी तरह का एकमात्र है जो विदेशी प्रजातियों सहित विभिन्न समुद्री जीवन रूपों से भरा है। यहाँ पर सीपियों-कौड़ियों से बनी वस्तुएँ आप को यादगार के रूप मे लेने को आसानी से मिल जाएंगी।
वॉटर स्पोर्टस
रामेश्वरम एक समुद्र तटीय द्वीप हैं। उन्होंने इस जल संसाधन का चतुराई से उपयोग किया है। पर्यटको के लिए कई तरह के वाटर स्पोर्टस का आयोजन किया है। तो समुंद्र तट पर आप लेट सकते है या फिर रोमांचक खेलों का आनंद ले उन्हें अपनी इस यात्रा की सुन्दर यादों में संजो सकते है। संगमल में स्थित होली वाटर स्पोर्ट्स, जिसके खुलने का समय १० बजे से सायं ७ बजे तक रहता है आपको जल क्रीड़ाओं का आनंद उठाने का मौका देता है। यहाँ आप जेट स्की, कयाकिंग, स्टैंडप बोर्ड, विंड सर्फ़िंग, केले के नाव की सवारी इत्यादि का आनंद उठा सकते हैं।
रामेश्वरम कैसे पहुंचे?
रामेश्वरम में एक अच्छी तरह से जुड़ा रेलवे स्टेशन के साथ-साथ सड़कों काअच्छा नेटवर्क हैं। तमिलनाडु के मदुरै शहर से २०० किमी से भी कम दुरी पर हैं। भारत के अधिकांश प्रमुख शहर रेल, उड़ान और सड़क द्वारा मदुरै से जुड़े हुए हैं। मदुरै से आप बस, प्राइवेट टैक्सी और रेलवे द्वारा रामेश्वरम पहुंच सकते हैं।
रामेश्वरम का मौसम
रामेश्वरम की यात्रा का सबसे बढ़िया समय सर्दियों का महीना है। जब सूरज गर्म और चिलचिलाता नहीं है। पूरे दिन आप बाहर घूमने का आनंद ले सकते हैं। स्थिर तापमान और सूर्य की गर्मी आपकी त्वचा को जलाए बिना एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक जाना आसान बना देता है।
ग्रीष्म ऋतु रामेश्वरम मे मार्च के अंत मे शुरू होती है और मई के अंत तक जारी रहती है। गर्मी के दिन आमतौर पर गर्म और आर्द्र होते हैं, हालांकि समुद्र की ठंडी हवा शाम को सुखद बना देती है पर दिन की चिलचिलाती गर्मी थकान को पैदा करती है जिससे दिन में निकलना संभव नहीं बनता है।
वर्षा ऋतु तटीय क्षेत्र होने के कारण जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीनों मे भारी वर्षा के कारण जगह जगह कीचड़ और चक्रवात के कारण पर्यटक जाने से बचते हैं।
शरद ऋतु रामेश्वरम में शीतकाल नवम्बर के मध्य से शुरु होता है और फरवरी के अंत तक चलता है। यहाँ की ठंड उत्तरी राज्यों की ठण्ड जैसी नहीं पड़ती हैं। दिन ठन्डे और सुहावने होते है। रात काफी ठंडी होती है। यही वो समय है जब आप यहाँ घूमने का मन बना सकते हैं।
3 टिप्पणियाँ
Very nice
जवाब देंहटाएंGreat ROHIT... Feeling like visited these places ..... Jai shree ram.... Om namah shivay
जवाब देंहटाएंBeautiful Temples. Galiyara n paduka impresive. Great work...
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